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Thriller विक्षिप्त हत्यारा
विक्षिप्त हत्यारा
Chapter 1
कॉल बैल की आवाज सुनकर सुनील ने फ्लैट का द्वार खोला ।
द्वार पर एक लगभग तीस साल की बेहद आकर्षक व्यक्तित्व वाली और सूरत से ही सम्पन्न दिखाई देने वाली महिला खड़ी थी ।
सुनील को देखकर वह मुस्कराई ।
"फरमाइये ।" - सुनील बोला ।
"मिस्टर सुनील ।" - महिला ने जानबूझ कर वाक्य अधूरा छोड़ दिया ।
"मेरा ही नाम है ।" - सुनील बोला ।
"मैं आप ही से मिलने आई हूं, मिस्टर सुनील ।" - वह बोली ।
सुनील एक क्षण हिचकिचाया और फिर द्वार से एक ओर हटता हुआ बोला - "तशरीफ लाइये ।"
महिला भीतर प्रविष्ट हुई । सुनील के निर्देश पर वह एक सोफे पर बैठ गई ।
सुनील उसके सामने बैठ गया और बोला - "फरमाइये ।"
"मेरी नाम कावेरी है ।" - वह बोली ।
सुनील चुप रहा । वह उसके आगे बोलने की प्रतीक्षा करता रहा ।
"आप की सूरत से ऐसा नहीं मालूम होता जैसे आपने मुझे पहचाना हो ।"
"सूरत तो देखी हुई मालूम होती है" - सुनील खेदपूर्ण स्वर से बोला - "लेकिन याद नहीं आ रहा, मैंने आपको कहां देखा है ।"
"यूथ क्लब में ।" - कावेरी बोली - "जब तक मेरे पति जीवित थे, मैं यूथ क्लब में अक्सर आया करती थी ।"
"आपके पति..."
"रायबहादुर भवानी प्रसाद जायसवाल ।" - कावेरी गर्वपूर्ण स्वर में बोली - "आपने उन का नाम तो सुना ही होगा ?"
"रायबहादुर भवानी प्रसाद जायसवाल का नाम इस शहर में किसने नहीं सुना होगा !" - सुनील प्रभावित स्वर में बोला ।
रायबहादुर भवानी प्रसाद जायसवाल राजनगर के बहुत बड़े उद्योगपति थे और नगर के गिने-चुने धनाढ्य लोगों में से एक थे । सुनील उन्हें इसलिये जानता था, क्योंकि वे यूथ क्लब के फाउन्डर मेम्बर थे । यूथ क्लब की स्थापना में उनके सहयोग का बहुत बड़ा हाथ था । लगभग डेढ वर्ष पहले हृदय की गति रुक जाने की वजह से उनकी मृत्यु हो गई थी । मृत्यु के समय उनकी आयु पचास साल से ऊपर थी ।
सुनील ने नये सिरे से अपने सामने बैठी महिला को सिर से पांव तक देखा और फिर सम्मानपूर्ण स्वर में बोला - "मैं आपकी क्या सेवा कर सकता हूं, मिसेज जायसवाल ?"
"मिस्टर सुनील" - कावेरी गम्भीर स्वर में बोली - "सेवा तो आप बहुत कर सकते हैं लेकिन सवाल यह है कि क्या आप वाकई मेरे लिये कुछ करेंगे ?"
"रायबहादुर भवानी प्रसाद जायसवाल की पत्नी की कोई सेवा अगर मुझ से सम्भव होगी तो भला वह क्यों नहीं करूंगा मैं ?" - सुनील सहृदयतापूर्ण स्वर में बोला ।
"थैंक्यू, मिस्टर सुनील ।" - कावेरी बोली और चुप हो गई ।
सुनील उसके दुबारा बोलने की प्रतीक्षा करने लगा ।
"शायद आपको मालूम होगा" - थोड़ी देर बाद कावेरी बोली - "कि मैं रायबहादुर भवानी प्रसाद जायसवाल की दूसरी पत्नी थी और उनकी मृत्यु से केवल तीन साल पहले मैंने उनसे विवाह किया था । अपनी पहली पत्नी से रायबहादुर साहब की एक बिन्दु नाम की लड़की थी जो इस समय लगभग सत्तरह साल की है और, मिस्टर सुनील, बिन्दु ने अर्थात मेरी सौतेली बेटी ने ही एक ऐसी समस्या पैदा कर दी है जिसकी वजह से मुझे आपके पास आना पड़ा है । आप ही मुझे एक ऐसे आदमी दिखाई दिये हैं जो एकाएक उत्पन्न हो गई समस्या में मेरी सहायता कर सकते हैं ।"
"समस्या क्या है ?"
"समस्या बताने से पहले मैं आपको थोड़ी-सी बैकग्राउन्ड बताना चाहती हूं ।" - कावेरी बोली - "मिस्टर सुनील, बिन्दु उन भारतीय लड़कियों में से है जो कुछ हमारे यहां की जलवायु की वजह से और कुछ हर प्रकार की सुख-सुविधाओं से परिपूर्ण और किसी भी प्रकार के चिन्ता या परेशानी से मुक्त जीवन का अंग होने की वजह से आनन-फानन जवान हो जाती हैं । जब रायबहादुर साहब से मेरी शादी हुई थी उस समय बिन्दु एक छोटी-सी, मासूम-सी, फ्रॉक पहनने वाली बच्ची थी, फिर जवानी का ऐसा भारी हल्ला उस पर हुआ कि मेरे देखते-ही-देखते वह नन्ही, मासूम-सी, फ्रॉक पहनने वाली लड़की तो गायब हो गई और उसके स्थान पर मुझे एक जवानी के बोझ से लदी हुई बेहद उच्छृंखल, बेहद स्वछन्द, बेहद उन्मुक्त और बेहद सुन्दर युवती दिखाई देने लगी । सत्तरह साल की उम्र में ही वह तेईस-चौबीस की मालूम होती है । रायबहादुर के मरने से पहले तक वह बड़े अनुशासन में रहती थी क्योंकि रायबहादुर साहब के प्रभावशाली व्यक्तित्व की वजह से उसकी कोई गलत कदम उठाने की हिम्मत नहीं होती थी लेकिन पिता की मृत्यु के फौरन बाद से ही वह शत-प्रतिशत स्वतन्त्र हो गई है और अब जो उसके जी में आता है, वह करती है ।"
"लेकिन आप... क्या आप उसे... आखिर आप भी तो उसकी मां हैं ?"
"जी हां । सौतेली मां । केवल दुनिया की निगाहों में । खुद उसने कभी मुझे इस रुतबे के काबिल नहीं समझा । जिस दिन मैंने रायबहादुर साहब की जिन्दगी में कदम रखा था, उसी दिन से बिन्दु को मुझ से इस हद तक तब अरुचि हो गई है कि उसने कभी मुझे अपनी मां के रूप में स्वीकार नहीं किया, कभी मुझे मां कहकर नहीं पुकारा ।"
"तो फिर वह क्या कहती है आपको ?"
"पहले तो वह सीधे मुझे नाम लेकर ही पुकारा करती थी लेकिन एक बार रायबहादुर साहब ने उसे मुझे नाम लेकर पुकारते सुन लिया तो उन्होंने उसे बहुत डांटा । उस दिन के बाद उसने मेरा नाम नहीं लिया लेकिन उसने मुझे मां कहकर भी नहीं पुकारा ।"
"तो फिर क्या कहकर पुकारती थी वह आपको ।"
"कुछ भी नहीं । वह मुझे से बात ही नहीं करती थी इसलिये मुझे कुछ कह कर पुकारने की जरूरत ही नहीं पड़ती थी उसे । कभी मेरा जिक्र आ ही जाता था तो और लोगों की तरह वह भी मुझे मिसेज जायसवाल कह कर पुकारा करती थी । रायबहादुर साहब की मृत्यु के बाद से वह कभी-कभार घर पर आये अपने मित्रों के सामने मुझे ममी कह कर पुकारती है लेकिन इसमें उसका उद्देश्य अपने मित्रों के सामने मेरा मजाक उड़ाना ही होता है ।"
"लेकिन वह ऐसा करती क्यों है ?"
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08-02-2020, 01:06 PM,
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Thriller विक्षिप्त हत्यारा
राम ललवानी सुनील की ओर घूमा और गम्भीर स्वर से बोला - "तुमने यहां आकर खुद अपनी मौत को दावत दी है, मिस्टर । पूरन सिंह अभी तुम्हें शूट कर देगा । उसके बाद मैं पुलिस को फोन कर दूंगा कि मेरे घर में कोई चोर घुस आया है और उसको मेरे नौकर ने शूट कर दिया है ।"
"गुले गुलजार ।" - सुनील मुस्कराकर बोला - "जब तक तुम्हारा छोटा भाई मनोहर ललवानी उर्फ मुकुल इस इमारत में मौजूद है, तब तक तुम ऐसा नहीं कर सकते ।"
"क्यों ?"
"क्योंकि पुलिस को इसकी तलाश है, अगर पुलिस इसकी मौजूदगी में यहां आई तो इसका पुलन्दा बन्ध जायेगा ।"
"पुलिस को इसकी तलाश क्यों है ?"
"एक वजह हो तो बताऊं । पुलिस को पांच साल पहले बम्बई में हुई तीन हत्याओं की वजह से इसकी तलाश है । मरने वाली तीन लड़कियों में आखिरी तुम्हारी, इसकी और सोहन लाल की साझी माशूक गीगी ओब्रायन थी । राजनगर में उसी ढंग से हुई फ्लोरी नाम की लड़की की ताजी-ताजी हत्या के लिये भी पुलिस इसे तलाश कर रही है और फिर यह इस नाबालिग लड़की को भी तो भगा कर लाया है ।" - सुनील बिन्दु की ओर संकेत करता हुआ बोला ।
"तुम पागल हो । मुकुल का इन हत्याओं से कोई वास्ता नहीं है और बिन्दु अपनी मर्जी से यहां आई है ।" - राम ललवानी बोला ।
"नाबालिग लड़की की अपनी कोई मर्जी नहीं होती । कानून की निगाह में उसे हमेशा बरगलाया ही जाता है । और तुम्हारी जानकारी के लिये मैं आज ही तुम्हारे ससुर से मिला था । गीगी ओब्रायन की हत्या के संदर्भ में उसने मुझे एक बहुत शानदार कहानी सुनाई थी । राम ललवानी, तुम्हारी जानकारी के लिये अब तुम्हारा ससुर सेठ मंगत राम भी जातना है कि गीगी ओब्रायन की हत्या के इल्जाम में सुनीता को खामखाह फंसाकर तुमने उसके साथ कितना बड़ा फ्रॉड किया है !"
"बूढे का शायद दिमाग खराब हो गया है ।"
मुकुल एकाएक बेहद उत्तजित दिखाई देने लगा । उसने राम ललवानी की बांह थामी और कम्पित स्वर में बोला - "राम ! यह आदमी..."
"थोड़ी देर चुप रहो ।" - राम ललवानी कर्कश स्वर में बोला । उसने एक झटके से अपनी बांह छुड़ा ली ।
"यह बात तुम्हें कैसे मालूम है ?" - उसने सुनील से पूछा - "क्या यह बात तुम्हें सोहन लाल ने बताई थी ?"
"सोहन लाल ने मुझे कुछ नहीं बताया था लेकिन वह इस सारी घटना को एक हलफनामे के रूप में अपने वकीलों के पास छोड़ गया था । उसकी हत्या के बाद वकीलों ने वह हलफनामा पुलिस को सौप दिया है । मैंने उसकी कापी देखी है ।"
"उससे कोई फर्क नहीं पड़ता । इतने सालों बाद वह हलफनामा कोई मतलब नहीं रखता है ।"
"बहुत मतलब रखता है । वह हलफनामा चाहे यह जाहिर न कर सके कि हत्या तुम्हारे भाई और सुनीता में से किसने की थी लेकिन यह जाहिर कर ही सकता है कि तुम्हारा भाई अभी तक जिन्दा है ।"
"उसमें क्या होता है ! मनोहर ललवानी का मुकुल से सम्बन्ध जोड़ना इतना आसान नहीं है । मुकुल राजनगर से गायब हो रहा है ।"
"पुलिस तुमसे सवाल करेगी । वह तुम्हारे रेस्टोरेन्ट में गिटार बजाता था ।"
"मुझे इसके बारे में कुछ मालूम नहीं है । हां साहब, मेरे रेस्टोरेन्ट में गिटार बजाता था, लेकिन कल वह बिना मुझे नोटिस दिये नौकरी छोड़कर चला गया । कहां गया ? मुझे मालूम नहीं । उनकी कोई तस्वीर ? नहीं है, साहब । मैं भला किस-किस गिटार बजाने वाले की तस्वीर रख सकता हूं ? और आखिर रखूंगा भी कहां !"
"अपने आपको बहलाने की कोशिश मत करो, प्यारेलाल !" - सुनील बोला ।
राम ललवानी ने जोर का अट्टहास किया ।
सुनील ने बिन्दु की दिशा में देखा । बिन्दु अभी भी बड़ी तन्मयता से रिकार्ड सुन रही थी । कमरे में अन्य लोगों की मौजूदगी से वह बिल्कुल बेखबर थी ।
"कहने का मतलब ये है" - राम ललवानी बोला - "कि सोहन लाल का हत्यारा अब तुम पहले हो और बाकी सब कुछ बाद में । इसलिये..."
"मैंने सोहन लाल की हत्या नहीं की ।" - सुनील ने प्रतिवाद किया ।
"तुमने सोहन लाल की हत्या नहीं की ! हा हा हा ।" - राम ललवानी बोला - "अब तुम यह भी कहोगे कि जब थानेदार ने तुम्हें गिरफ्तार किया था, तब रिवाल्वर हाथ में लिये तुम सोहन लाल की लाश के सामने खड़े थे लेकिन तुमने उसकी हत्या नहीं की । तो फिर सोहन लाल की हत्या किसने की है ?"
"तुम्हारे भाई ने ।" - सुनील मुकुल की ओर उंगली उठाकर धीरे से बोला - "और अगर विश्वास न हो तो इसी से पूछ लो ।"
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08-02-2020, 01:06 PM,
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Thriller विक्षिप्त हत्यारा
सारा दिन सुनील राम ललवानी की शंकर रोड स्थित कोठी की निगरानी करता रहा ।
उसे वहां मुकुल या बिन्दु के दर्शन नहीं हुए ।
अन्धेरा होने के बाद सुनील ने कोठी के भीतर घुसने का निश्चय कर लिया ।
वह मोड़ काटकर कोठी के पिछवाड़े में पहुंचा । वहां एक जीरो वाट का बल्ब जल रहा था जिसका प्रकाश पिछवाड़े के लॉन का अन्धकार दूर करने के लिये काफी नहीं था । सुनील चारदीवारी फांद कर पिछवाड़े में कूद गया ।
पिछवाड़े के नीचे की मंजिल के कमरों में प्रकाश नहीं था । साइड के एक कमरे की खिड़की में प्रकाश था । सुनील ने उसमें से झांककर भीतर देखा । वह एक किचन थी । भीतर दो नौकर मौजूद थे ।
पहली मंजिल के साइड के एक कमरे में से काफी रोशनी बाहर फूट रही थी । कमरे में से संगीत की आवाज आ रही थी ।
सुनील उस कमरे की खिड़की के नीचे पहुंचा । काफी देर तक वहां कान लगाये खड़ा रहा लेकिन कमरे में से किसी के बोलने की आवाज नहीं आई । केवल विलायती गानों की स्वर लहरियां ही उनके कानों तक पहुंच रही थीं ।
सुनील ने दीवार का निरीक्षण किया ।
पानी का एक पाइप दीवार के साथ-साथ ऊपर की मंजिल की छत पर गया था । वह पाइप ऊपर की मंजिल की खिड़की के सामने से गुजरता था ।
सुनील ने मन-ही-मन फैसला किया । उसने जूते उतारकर पैंट में ठूंसे और चुपचाप पाइप के सहारे ऊपर चढने लगा ।
खिड़की के समीप पहुंकर उसने बड़ी सावधानी से भीतर झांका ।
वह एक विशाल कमरा था । एक कोने में एक रेडियोग्राम था जिसके सामने बिन्दु बैठी थी और बड़ी तन्मयता से रिकार्ड सुन रही थी । रेडियोग्राम से एकदम विपरीत दिशा में दीवार के साथ पड़े सोफे पर राम ललवानी और मुकुल बैठे थे । दोनों धीरे-धीरे बातें कर रहे थे ।
सुनील ने गरदन पीछे खींच ली और फिर सावधानी से पाइप से नीचे उतरने लगा ।
आधा रास्ता तय कर चुकने के बाद उसने दुबारा नीचे झांककर देखा और फिर उसका दिल धड़कने लगा ।
नीचे अन्धकार में एक साया खड़ा था जो सिर उठाकर उसी की ओर देख रहा था ।
सुनील को पाइप पर रुकता देखकर नीचे खड़ा साया धीमे स्वर में बोला - "मेरे हाथ में रिवाल्वर है । चुपचाप नीचे उतर आओ । जरा सी भी शरारत करने की कोशिश की तो शूट कर दूंगा ।"
सुनील पाइप पर नीचे सरकने लगा । साया उससे बहुत दूर था, इसलिये वह उस पर छलांग नहीं लगा सकता था ।
ज्यों ही सुनील के पांव धरती पर पड़े, साया आगे बढा ।
सुनील ने देखा वह एक लगभग पैंतीस साल का, लम्बा चौड़ा, पहलवान-सा आदमी था । उसके हाथ में वाकई रिवाल्वर थमी हुई थी जिसका रुख सुनील की ओर था ।
"आगे बढो ।" - वह बोला ।
सुनील आगे बढा । पहलवान ने उसकी पीठ के पीछे रिवाल्वर सटा दी और उसे टहोकता हुआ आगे बढाता चला गया ।
इमारत के साइड में एक द्वार था जिसके वे भीतर गए । सीढियों के रास्ते वे पहली मंजिल पर पहुंचे । वे एक गलियारे में से गुजरे । पहलवान ने उसे एक दरवाजे के सामने रुकने का संकेत किया ।
सुनील रुक गया ।
पहलवान के संकेत पर उसने दरवाजा खटखटाया ।
"कौन है ?" - भीतर से किसी की कर्कश स्वर सुनाई दिया ।
"पूरन सिंह, बॉस ।" - पहलवान बोला ।
"दरवाजा खुला है ।"
पूरन सिंह के संकेत पर सुनील ने दरवाजे को धक्का दिया । दरवाजा खुल गया और साथ ही संगीत की स्वर लहरियां बाहर फूट पड़ी । सुनील ने देखा, वह वही कमरा था जिसमें उसने थोड़ी देर पहले खिड़की के रास्ते भीतर झांका था ।
पूरन सिंह ने उसकी पसलियों को रिवाल्वर से टहोका । सुनील ने कमरे के भीतर कदम रखा ।
राम ललवानी और मुकुल वह दृश्य देखकर स्प्रिंग लगे खिलौने की तरह अपने स्थान से उठ खड़े हुए । बिन्दु ने एक बार भी सिर उठाकर देखने की तकलीफ न की कि भीतर कौन आया था । वह पूर्ववत् रेडियोग्राम के सामने बैठी रही ।
"बॉस" - पूरन सिंह राम ललवानी से सम्बोधित हुआ - "यह आदमी पिछवाड़े के पाइप के सहारे चढकर इस कमरे में झांक रहा था ।"
मुकुल की निगाहें सुनील से मिलीं और फिर मुकुल के नेत्र फैल गये ।
"राम" - वह हड़बड़ाये स्वर में बोला - "यह तो वही आदमी है जो..."
"शटअप !" - राम ललवानी मुकुल की बात काटकर अधिकारपूर्ण स्वर में बोला - "मैं जानता हूं यह कौन है ? आज के अखबार में इसकी तस्वीर छपी है । इसने सोहन लाल की हत्या की थी लेकिन पुलिस इन्स्पेक्टर से कोई यारी होने की वजह से यह अभी तक आजाद घूम रहा है ।"
मुकुल फौरन चुप हो गया ।
"पूरन सिंह, इसकी तलाशी ली ।" - राम ललवानी ने आदेशात्मक स्वर में कहा ।
पूरन सिंह ने नकारात्मक ढंग से सिर हिला दिया ।
"रिवाल्वर मुझे दो और इसकी तलाशी लो ।"
पूरन सिंह ने रिवाल्वर राम ललवानी की ओर उछाल दी जिसे उसने बड़ी दक्षता से लपक लिया ।
पूरन सिंह ने उसकी तलाशी ली ।
"इसके पास कुछ नहीं है ।" - थोड़ी देर बाद वह बोला । सुनील की दाईं आस्तीन पर उसका हाथ नहीं पड़ा था, जहां कि उसने स्लीव गन छुपाई हुई थी ।
राम ललवानी ने वापिस रिवाल्वर पूरन सिंह की ओर उछाल दी और बोला - "तुम जाओ ।"
पूरन सिंह रिवाल्वर लेकर कमरे से बाहर निकल गया । जाती बार वह दरवाजा बाहर से बन्द करता गया ।
कई क्षण कोई कुछ नहीं बोला ।
अन्त में सुनील ने ही शान्ति भंग की । वह राम ललवानी और मुकुल की ओर देखकर मुस्कुराया और फिर मीठे स्वर से बोला - "हल्लो, ललवानी बन्धुओ ।"
मुकुल एकदम चौंका । वह राम ललवानी की ओर घूमकर बोला - "राम, देखा । यह आदमी बहुत खतरनाक है । यह जानता है कि...."
"शटअप, मैन ।" - राम ललवानी बोला ।
मुकुल फिर कसमसा कर चुप हो गया ।
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