RE: Hindi Lesbian Stories समलिंगी कहानियाँ
मस्त कर गया पार्ट --17
फ़िर सुबह हुई और शफ़ात अपने हॉस्टल के लिये निकल गया! जाते जाते मैने उससे उसका मोबाइल नम्बर ले लिया! उसने भी "हाँ ले लीजिये, कभी काम आयेगा" कहते हुए, खुशी खुशी अपना नम्बर दिया और मेरा दिल्ली वाला नम्बर ले लिया!
पूरी रात सोया नहीं था, इसलिये उसके जाते ही मैं वापिस सो गया! आधा घंटा ही हुआ था, कि दरवाजे पर खट खट हुई! मैं सिर्फ़ शॉर्ट्स मे था, फ़िर भी उठा और दरवाजा खोला! देखा, शिवेन्द्र था!
सुबह के ८ ही बजे थे और वो ज्यादातर ९ बजे तक आता था! इस टाइम उसे घर मे देख कर मुझे सर्प्राइज़ हुआ! मैने उसे कमरे मे बुलाया!
"इतनी जल्दी? और मुझ से क्या काम आ गया?" मैने पूछा!
"वो... कुछ का..म था... आपके पिताजी से आपके बारे मे पूछा तो उन्होने आपके रूम मे ही आने को कह दिया..." शिवेन्द्र कुछ सकपकाया हुआ था!
"ऐसा क्या काम आ गया, कि तुम सुबह सुबह, टाइम से पहले ही..." मैने अंगडाई लेते हुए कहा!
अंगडाई लेने से मेरी बॉडी खिंची और मेरी शॉर्ट्स, जिसमे मेरा लौडा सुबह सुबह की ठनक मे खडा हुआ था, थोडी नीचे सरक गयी और शॉर्ट्स का इलास्टिक बैंड लगभग मेरी झाँटों वाले हिस्से को दिखाने लगा!
"वो.. कल रात... जब घर लौटे... तो... वो..."
"तो क्या?"
"वो गुडिया..."
ये सुनते ही मेरा माथा ठनका!
"गुडिया क्या?"
"वो गुडिया... ने मुझे..."
"साफ़ साफ़ बोलो ना... गुडिया ने क्या... ठीक है, बेझिझक बोलो..."
"वो गुडिया ने बताया, कि कल दोपहर मे रजधारा मे, झरने के ऊपर... आप ने मुझे और गुडिया को..."
"ओह... हाँ... देखा तो था.."
"भैया जी... मैं यही कहने आया था..."
"क्या?"
"पेट का सवाल है... किसी से कुछ कहियेगा नहीं..."
"क्यों?"
"किसी को पता चल गया तो मैं कहीं का नहीं रहूँगा... आप के पिताजी तो मुझे नौकरी से निकाल ही देंगे... कोई और भी मुझे नौकरी पर नहीं रखेगा... बीवी है, २ बच्चे हैं... उनका पेट कैसे पालूँगा..."
"ये बात तो मेरे दिमाग मे आयी ही नहीं थी... मुझे कल ही इस बात का फ़ायदा उठा लेना चाहिये था..." मैने अपने आप से कहा! फ़िर मेरी आखों के सामने कल दोपहर का पहाडी वाला सीन दुबारा नाच गया! बस फ़र्क ये था, कि इस इमेजिनरी सीन मे, शिवेन्द्र का १२इँच का अजगर, चट्टान पर टिकी गुडिया की चुत की बजाय मेरी गाँड मे अन्दर बाहर हो रहा था!
"क्या सोचने लगे भैया जी? मेरी खातिर, मेरे बच्चो की खातिर... क्षमा कर दीजिये... भूल जाइये कि आपने कुछ देखा था... और मैं कोई जबर्दस्ती थोडी कर रहा था... गुडिया को भी तो मजा लेना था... वो तो दोनो की रजामन्दी से हो रहा था..."
"ह्म्म्म..." मैने जान बूझ के सीरिअस होते हुए कहा!
"आप चाहे, तो मैं आपके लिये कुछ भी कर जाऊँगा..."
"कुछ भी?" मैने उसकी गरज को टटोलने के लिये पूछा!
"हाँ भैया जी.. कुछ भी..."
"ठीक है, शाम को काम खत्म कब करते हो?"
"जी.. जब बाबूजी घर आ जाते हैं, मैं कार गैराज मे रख के अपने रूम पर चला जाता हूँ..."
"रूम पर और कौन कौन रहता है?" मैं प्लान बनाने लगा!
"२ ३ और ड्राइवर्स रहते हैं..."
"ठीक है... आज शाम को, काम खत्म करके, रूम पर जाकर, खाना वाना खा कर, ११ बजे तक वापिस आ जाना..."
"यहीं?"
"हाँ यहीं... घर वाले सब सो चुके होंगे... मैं चुप चाप गेट खोल के तुम्हे अन्दर ले लूँगा!"
"पर करना क्या है?"
"तुमसे मतलब? तुम चाहते हो ना कि मैं कल वाली बात किसी को ना कहूँ?"
"जी..." उसने घिघियाते हुए कहा!
"तो ठीक है... मैं किसी को नहीं कहूँगा... लेकिन अगर तुम रात को ११ बजे नहीं आये तो कल से नौकरी पर मत आना..." मैने थोडा टाइट होते हुए कहा!
"और हाँ, लुंगी कुर्ते मे आना..."
"जी भैया जी... आ जाऊँगा..." कह कर वो दबे पाँव मेरे रूम से निकल गया!
अब मुझे कुछ कुछ आइडिया लग रहा था, कि आज रात क्या होने वाला है... या यूँ कहिये कि मैं आज रात के प्लान बनाने मे जुट गया था!
तभी मुझे शफ़ात के कहे लफ़्ज़ याद आ गये... "...आज जब शिवेन्द्र उसकी ले रहा था, और जो उसकी गाँड दिख रही थी..."
मैने झट से शफ़ात को कॉल कर दिया!
"क्या बात है भैया... रात का नशा अभी उतरा नहीं और आपने कॉल भी कर दिया..." शफ़ात ने अल्साई आवाज़ मे कहा!
"तुझे अपनी कल वाली ख्वाहिश पूरी करवानी है क्या?" मैने उसको डायरेक्टली पूछा!
"कौनसी ख्वाहिश?" उसकी अल्साई आवाज़ एक दम से चौकन्नी हो गयी!
"वही... शिवेन्द्र की गाँड मे डालने की..." मैने उसे ललचाते हुआ कहा!
"क्या बोल रहे हो भैया... कल तो मैं कुछ और भी माँग लेता तो शायद वो भी मिल जाता..." वो खुशी से उछल पडा!
"ठीक है, तो फ़िर आज रात ठीक १२ बजे मेरे घर आ जाना, मैं मेन डोर खुला छोड दूँगा! तू चुप चाप सीधे मेरे रूम मे आ जाना... लेकिन कोई शोर मत करना... बाकी तू समझदार है..."
मैने जान बूझ कर शफ़ात को १ घंटे देर का टाइम दिया था! मेरे दिमाग मे कई आइडियाज़ आ और जा रहे थे!
मैने इसके पहले कभी किसी की मजबूरी का ऐसे फ़ायदा नहीं उठाया था... लेकिन आज तो फ़ायदा खुद चल के मेरे लौडे पर दस्तक दे रहा था! थोडी ही देर मे मेरे प्लान के सारे स्टैप्स साफ़ साफ़ सेट हो गये थे! और मैं निश्चिन्त हो कर वापिस सो गया!
शाम हुई तो मैं बेसब्री से ११ बजने का इन्तेज़ार करने लगा! १० बजते बजते सब सो चुके थे! मैं छत पर चहल कदमी करने लगा! तभी गली मे घुसता हुआ शिवेन्द्र दिखा! मैं फ़टाफ़ट नीचे आया और मेन डोर खोल कर उसे अन्दर ले लिया और शफ़ात के लिये डोर खुला छोड के शिवेन्द्र को लेकर अपने रूम मे आ गया!
"जी भैया जी... बोलिये... क्या करना है?"
मुझे लगा कि शायद उसे भी आइडिया हो गया था, कि मैने उसे किस काम के लिये इतनी रात मे स्पेशिअली लुंगी मे बुलवाया था! क्योंकि जब वो रूम मे घुसा तो मैने नोटिस किया कि उसने लुंगी के नीचे कुछ नहीं पहना था और उसका १२इँची अजगर बार बार हिल हिल कर लुंगी के कपडे को झटके दे रहा था! शायद, शिवेन्द्र जिस 'काम' की कल्पना कर रहा था, उस की वजह से उसके अजगर की नींद टूट चुकी थी!
होता भी यही है, बडे लँड के मालिकों को अपने लँड पर इतना गुरूर होता है, कि सोचते हैं की सब उनके लँड के पीछे हैं! ऐसा ही कुछ शिवेन्द्र ने भी सोचा था, कि मैने उसको अपनी गाँड मरवाने के लिये बुलवाया है! कुछ हद तक वो सही सोच भी रहा था, लेकिन मेरे प्लान्स कुछ और थे!
"चल मेरे कपडे खोल... पहले मेरी शर्ट के बटन्स खोल..." मैने उसको हुकुम दिया!
"जी भैया जी..." अभी सब उसके मुताबिक ही चल रहा था! उसने बडे मन से मेरी शर्ट के बटन्स खोलने शुरु किये! उसकी उंगलियाँ बटन्स खोलते हुए, बार बार मेरे निप्प्लस से खेल रही थी! लग रहा था, कि वो ख्यालो मे किसी लडकी के ब्लाउज़ के बटन्स खोल रहा था!
"जितना कहा जाये, उतना ही कर" मैने उसको डाँटते हुए कहा!
"जी भैया जी..."
"चल अब मेरी बनियार उतार..."
उसने धीरे धीरे मेरी बनियान उतारी... लेकिन इस बार उसके हाथों मे कम्पन था, शायद मेरी डाँट का असर था!
"चल, अब मेरी बगलो मे मुह घुसा, और याद रखना... जब तक मैं ना कहूँ, मुह हटाना नहीं..."
"जी... जी.. भैया जी..."
शिवेन्द्र ने मेरी बगल मे अपनी नाक रखी और कुछ देर बाद, जब वो साँस रोक नहीं पाया तो उसे मेरी बगलों की स्मेल लेनी ही पडी!
"अब राइट साइड वाली... और इस बार नाक नहीं... जीभ... समझा?"
"जी???" शिवेन्द्र ने करीब करीब पूछा!
"हाँ..." मेरे पास ज्यादा टाइम नहीं था!
उसने हिचकिचाते हुए, मेरी राइट अन्डर-आर्म को जीभ से चाटना शुरु कर दिया!
"ऐसे चाट, जैसे अपनी बीवी के मम्मे चूसता है और जैसे गुडिया की चूचियाँ खा रहा था..."
अब वो अपने होंठ और दाँत मेरी बगलों पर यूज़ कर रहा था! यह अनुभव मुझे बहुत ही बढिया लग रहा था!
"चल, अब अपना कुर्ता उतार दे..."
मेरे गुलाम ने मेरा आदेश सुनते ही अपना कुर्ता उतार दिया! उसकी छाती पर सही वाले घुँघराले बाल थे! वो फ़िर से मेरी अन्डर-आर्म्स पर लग गया! जब वो मेरी बगलें चूस रहा था, मैं उसके बडे बडे निप्प्लस से खेल रहा था! बीच बीच मे मैं उसके निप्प्लस को मरोड भी देता... और उसकी चीख सी निकल जाती!
"चल अब अपनी लुंगी खोल दे..."
"जी भैया जी.."
उसने बेधडक अपनी लुंगी खोल दी.. उस जैसे मर्दो को अपने लँड की वजह से कपडे खोलने मे कोई शरम तो होती ही नहीं है!
"चल अब घूम जा और अपनी गाँड की फ़ाँके खोल कर मुझे अपना छेद दिखा..."
एक आज्ञाकारी नौकर की तरह वो घूमा और गाँड फ़ैला का झुक गया!
"थोडा करीब आ..."
वो पीछे हुआ और मेरी ओर बढ गया!
"और करीब..."
अब उसका छेद बिल्कुल मेरी नजरों के आगे, मुझ से एक फ़ीट की दूरी पर था!
"ध्यान रखना... आवाज़ की तो..." कहते हुए, मैने अपनी सीधे हाथ की पहली उंगली, सूखी की सूखी, उसके छेद मे घुसा दी! उसका छेद बहुत ही टाइट था! अगर मैने ऑर्डर ना दिया होता तो वो चीख चुका होता! मैने अपनी उंगली वही रखी! उसकी मर्दानी चूत की मसल्स सिकुड खुल सिकुड खुल कर मेरी उंगली पर दबाव डाल रही थी! लेकिन जल्दी ही मेरी उंगली पर दबाव कम हो गया! मैने अपनी उंगली बाहर निकाल ली...
वो अभी भी वैसे ही झुका हुआ था! मैने अपनी पैन्ट खोली और अन्डरवीअर समेत नीचे गिरा दी!
पैन्ट गिरते ही उसे पता चल गया! वो घबरा कर उठा और मेरी ओर घूम कर बोला!
"भैया जी... ये सब हम से नहीं होगा... हम तो कुछ और समझे थे..."
"अभी तो कुछ हुआ ही कहाँ है... अभी तो बहुत कुछ होगा... चल घुटनो के बल बैठ जा और मेरे अजगर को नहला... देख ले... मेरा अजगर भी तेरे से ज्यादा फ़रक नहीं है..."
"नहलाऊँ? मतलब???"
"नहला मतलब... अपना मुह खोल... और अपने थूक से मेरे लँड को इतना चूस, इतना चूस... कि वो बिल्कुल साफ़ हो जाये, जैसे नहा के होता है..."
"भैया जी... मैने... पहले कभी लौडा नहीं चूसा है..."
"तो आज चूस... सोच ले..."
"जी..."
उसने अपना मुह खोला और मेरे खडे लँड का सुपाडा अपने मुह मे लिया... लेकिन बस उसके होंठ ही मेरे लँड को छू रहे थे! इस वजह से कुछ मजा नहीं आ रहा था!
"जैसे लॉलीपॉप चूसते हैं ना... वैसे.... तेरी जीभ, तेरा तालवा, तेरा हलक... सब कुछ मेरे लँड पर रगडना चाहिये... दाँतो के अलावा सब कुछ..."
अब उसे समझ आ गया था कि लँड कैसे चूसा जाता था... अब वो धीरे धीरे अपना मुह ऊपर नीचे करके मेरे लँड की चुसाई कर रहा था!
"चल, अब मेरा लँड छोड और मेरे गाँड के होल की चाट चाट के पूजा कर..."
शायद उसने इस बार रेज़िस्ट करना सही नहीं समझा क्योंकि उसे पता था कि रेज़िस्ट करने से कुछ होना तो था नहीं! पर गाँड चटवाने के लिये मुझे उसे बताना नहीं पडा! शायद उसे चूत मे जीभ देने का अच्छा अनुभव था! मेरी गाँडू गाँड का छेद तो उसकी जीभ लगते ही चौडा हो गया... और वो भी मेरे छेद को किसी लडकी की चूत का छेद समझ के खाने सा लगा! वो दाँतो से मेरे छेद की चुन्नटों को हल्के हल्के चबा भी रहा था! अब मेरा लँड और गाँड का छेद इतने गीले थे कि मैं उसके कुँवारे छेद की सवारी भी कर सकता था और उसके अजगर को अपनी मरदानी चूत के बिल मे भी पूरा का पूरा ले लेता! पर मेरा प्लान अभी एक चौथाई ही पूरा हुआ था!
"चल अब घूम जा... और बिस्तर पर उलटा हो कर लेट जा... और हाँ, अपना मुह तकिये मे कस के दबा लेना.. क्योंकि घर मे सब सो रहे हैं..."
"जी भैया जी.... जी???? क्या मतलब???"
"मतलब ये... कि अब मैं मेरे इस ९इँच के लँड से तेरी गाँड की सील तोडूँगा... और तेरे जैसे चोदूओं को तो पता होगा कि जब सील टूटती है तो कैसे चीखती है लौंडिया.... वैसे ही आज तू भी चीखेगा..." लेकिन मैं सिर्फ़ उसे डरा रहा था! मेरा इरादा उसे दर्द देने का नहीं था!
अगले पल मेरे बिस्तर मे, वो गबरु जवान, औंधे मुह, गाँड उठाये मेरे लँड का बेसब्री से इन्तज़ार करते हुए लेटा था! उस पोज़ मे उसका होल इतना टेम्प्टिंग था कि मैं ना चाहते हुए भी उसकी गाँड पर भूखे शेर की तरह टूट पडा और जीभ से उसके कुँवारे छेद को चाट चाट के इतना गीला कर दिया कि थूक बह बह कर बिस्तर पर गिरने लगा!
शायद ये मेरी चटाई का असर था कि जो छेद अभी कुछ देर पहले मेरी एक उंगली नहीं ले पा रहा था, वो अब खुला हुआ था... फ़िर भी मैने सावधानी बरतते हुए, धीरे धीरे अपना लँड, इँच दर इँच अन्दर देना शुरु किया!
मुश्किल से सुपाडा ही अन्दर गया था कि मुझे तकिये में से उसके गौं गौं की आवाज़े सुनाई देने लगी! मैं हँसने लगा! अभी तो ८ इँच तो बाहर ही थे... मैने हल्का सा धक्का दिया और मेरे लँड का १ और इँच उसकी ताजी ताजी गीली गाँड की सुरंग मे घुस गया! अब मैने उसे कुछ टाइम दिया और अपने लँड को वैसे ही उसकी गाँड मे अटकाये रखा... जैसे ही उसकी गाँड ने मेरे लँड की मोटाई को अड्जस्ट किया, उसके छेद की मसल्स मेरे लँड पर ढीली पड गई! मौका देखते ही मैने अगले ही झटके मे अपना लँड के २ इँच और अन्दर सरका दिये! इस बार थोडा आसान लगा! अगले झटके का इन्तजार करते करते मैं उसके ऊपर ही लेट गया और उसकी पीठ पर काटने लगा! शिवेन्द्र अब सही मुसीबत मे था... एक ओर गाँड मे लँड का दर्द और दूसरी ओर पीठ पर मेरे दाँत...
थोडी देर तक प्यार से उसकी पीठ पर काटने के बाद अचानक मैने उसके कँधे पर इतने जोर से काटा कि अगर उसका मुह तकिये मे ना होता तो उसकी चीख पूरे मोहल्ले को जगा देती! इस बेहिसाब दर्द ने उसका ध्यान गाँड के दर्द से हटा दिया और मैने उसी मौके का फ़ायदा उठा कर बाकी के ५ इँच भी एक झटके मे उसकी गाँड मे डाल दिये! अब वो बिस्तर पर चारो खाने चित्त था, और मैं उसके ऊपर...
अब उस से दर्द सहन नहीं हो रहा था! उसने तकिये से मुह निकाल से साइड किया और लम्बी लम्बी साँसें लेने लगा! मैने साइड से ही, वैसे ही लेटे लेटे, उसके होंठों को अपने मुह मे लिया और उन्हे चूसने लगा! उसके मोटे मोटे होंठों का स्वाद अलग ही था! अब उसके चेहरे से लग रहा था, कि उसे गाँड मे मेरे लँड से उतना दर्द नहीं हो रहा था! मैने उसके होंठों को छोडा और उसको उठाते हुए खुद भी थोडा उठ गया!
अब वो घोडा बन चुका था और मैं घुडसवार! मैने अपना लँड आधा उसकी गाँड से बाहर निकाला और धीरे धीरे अन्दर बाहर करने लगा! सच मे, किसी टाइट छेद का मजा ही अलग होता है... उसकी गाँड के सुरंग की दीवारो का एक एक इँच मेरे लँड की सही से मालिश कर रहा था! अब उसके मुह से भी, जो आवाजें निकल रही थी, उनमे कुछ कुछ मजा पाने वाली सिसकारियाँ भी थी! मैने अपनी स्पीड बढा दी... और उसकी आवाज़ें भी मस्त होने लगी... लग रहा था कि किसी स्ट्रेट को गे सैक्स मे लाना इतना डिफ़िकल्ट भी नहीं है!
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