RE: Sex Hindi Kahani अधूरी जवानी बेदर्द कहानी
मैं बेमन से उनके साथ रवाना हुई !
हम एक सिटी बस में बैठे, हम आमने-सामने बैठे थे, जीजाजी ने चश्मा पहन रखा
था, मेरे सामने देखते ही उन्होंने आँख मार दी, मुझे अचानक एक पल के लिए
तो गुस्सा आ गया पर फिर याद आया कि आँख मारने वाला तो मेरा आशिक है, फिर
मैं मुस्कुरा दी।
होटल के सामने एक रेस्तराँ था, वहाँ हमने लस्सी पी, मुझे वैसे भी भूक लगी
हुई थी। रेस्तराँ वाले ने एक दस रूपये का सिक्का दिया जो जीजाजी ने मुझे
दे दिया।
मैंने पहली बार दस रूपये का सिक्का देखा था, मुझे बड़ा सुन्दर लगा था
जैसे सोने का हो !
सड़क पार करते ही होटल था, उसमें भी नीचे खाने का और फास्ट फ़ूड का स्थान
था और ऊपर रहने का होटल था। उसमें खास बात यह थी कि फास्ट फ़ूड वाले
रेस्तराँ से ही होटल में जाने की लिफ्ट थी।
जीजाजी का कमरा तीसरी मंजिल पर था, होटल पाँच मंजिल का था जिसमें
रिसेप्शन दूसरी मंजिल पर था। मुझे यह बड़ा अच्छा लगा कि मुझे रिसेप्शन के
सामने से नहीं जाना पड़ेगा।
हम दोनों लिफ्ट में चढ़े, जीजाजी ने 3 नंबर का बटन दबा दिया। लिफ्ट में हम
दो ही थे, लिफ्ट चलते ही जीजाजी मुझे पकड़ कर चूमने लगे।
मैंने कहा- मैं भागी नहीं जा रही हूँ, यहाँ छोड़ दो, कोई देख लेगा !
जीजाजी ने मुझे छोड़ दिया। लिफ्ट रुकी और जीजाजी ने कमरे का दरवाज़ा खोला
और हम कमरे में पहुँच गए।
कमरा ऐ.सी. था, ऐ.सी. टी.वी. सब चल रहे थे. बहुत ही शानदार कमरा था, बड़ा
सा पलंग, मेज-कुर्सी, अलमारी, अटेच्ड लेट-बाथ !
मैं सीधे फ्रेश होने बाथरूम में घुस गई। मैं बाथरूम से वापिस आई तो...
जीजाजी पलंग के पास खड़े थे !
मेरे बाहर आते ही उन्होंने मुझे अपनी बाँहों में ले लिया और अपने सीने से
चिपका लिया। मैं भी किसी बेल की तरह उनसे लिपट गई। हम खड़े-खड़े जैसे एक
दूसरे में समाना चाह रहे थे। हम करीब दो मिनट ऐसे ही एक दूसरे से चिपके
खड़े रहे, जीजाजी ने मुझे इतनी जोर से अपनी बाहों में भींच रखा था कि मेरी
हड्डियाँ कड़कड़ाने लगी थी। आज हम पहली बार रोशनी में एक दूसरे की बाहों
में समाये थे इसलिए मुझे उनसे शर्म आ रही थी, मैं अपना मुँह उनके सीने
में छिपा रही थी और वे बार-बार मेरा मुँह ऊपर कर चूमने की कोशिश कर रहे
थे।
हम दोनों को एक दूसरे से चिपक कर खड़े होने में असीम सुख मिल रहा था जैसे
कई जन्मों के बिछड़े प्रेमी प्रेमिका मिले हों।
फिर हम अलग हुए, हमारे चेहरे से मिलने की ख़ुशी फ़ूट रही थी। अलग होकर हम
दोनों ने लम्बी और गहरी सांसें ली यानि इतनी देर जैसे हमारी सांसें ही
रुक गई थी हम दोनों मुस्कुरा रहे थे, कुछ शर्म आ रही थी तो नज़रें भी चुरा
रहे थे और एक दूसरे को छिपी नजरों से देख रहे थे।
मेरे जीजाजी की नजरो में मेरे लिए प्रंशसा और चाहत का भाव था और मैं भी
उन्हें खुश होकर देख रही थी। मेरा विचार था कि मैं थोड़ी देर रुक कर गाँव
चली जाऊँगी !
फिर उन्होंने अपना बैग खोल कर अपनी लुंगी बाहर निकाली और अपने कपड़े
उतारने लगे। उन्हें कपड़े उतारते हुए कुछ शर्म आ रही थी इसलिए मैंने टीवी
चालू कर लिया और फिल्म देखने लगी, मेरी मनपसंद फिल्म 'जब वी मेट' आ रही
थी।
जीजाजी ने अपने कपड़े हेंगर पर टांगें और बाथरूम में चले गए। थोड़ी देर में
वापिस आये और मेरे पास आकर पलंग पर बैठ गए, मुझे फिर से बाहों में लेकर
चूमने लगे।
मैंने शरारत से कहा- इतनी अच्छी फिल्म आ रही है, देखने दो ना !
वो मुझे अपनी तरफ झुकाते अभी इससे भी अच्छी फिल्म हम बनाते हैं !
मैंने कहा- रुको, मेरी साड़ी में सलवटें पड़ जाएँगी !
उन्होंने कहा- यह बात तो सही है, फटाफट उतार देते हैं और कुछ पलो में
मेरी साड़ी जीजाजी के हाथ में थी।
जीजाजी मेरी साड़ी वार्डरोब में रख दी और मेरे बैग से मेरी सेक्सी मैक्सी
निकाल कर मुझे देते हुए कहा- चलो, फटाफट यह पहन कर आओ !
मैंने कहा- इसे पहननी क्या जरूरी है? ऐसे ही आ जाओ ना ! कुछ भी पहनो उसे
तो उतरना ही है। यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं।
पर उन्होंने कहा- नहीं, इसमें तुम बहुत सेक्सी लगती हो, इसे ही पहन कर आओ
! और नीचे पेटीकोट और चड्डी मत पहनना ! वैसे भी उनकी कोई जरुरत नहीं है।
ऐसा कहते हुए उन्होंने जबरदस्ती मुझे पलंग से नीचे खड़ा कर दिया। मैं
मैक्सी लेकर बाथरूम में गई क्योंकि उनके सामने मुझे शर्म आ रही थी और
अपने कपड़े बदले, पेटीकोट तो नहीं पहना पर चड्डी तो पहनी।
मैं बाहर आई तब तक वे पलंग पर लेट गए थे और बेसब्री से मेरा इंतजार कर
रहे थे। मैं उनके पास गई तो उन्होंने अपनी बाहें उठा कर मेरा स्वागत
किया। मैं भी उनकी बाहों में समां गई!
अब वे मुझे बुरी तरह से चूम रहे थे, उनके हाथ मेरे सारे शरीर पर घूम रहे
थे। मेरी मैक्सी कुछ ही पलों में मेरी कमर पर पहुँच गई थी, मैं शरमा कर
उसको बार-बार नीचे करने की असफल कोशिश कर रही थी !
वे मेरी पीठ की तरफ हाथ डाल कर मेरी ब्रेजरी के हुक खोलने की कोशिश कर रहे थे।
मैंने कहा- क्या हुआ? आपसे एक हुक भी नहीं खुला?
उन्होंने कहा- अभी खुल जायेगा, खुलेगा नहीं तो टूट जायेगा।
मैंने कहा- तोड़ना मत प्लीज ! नहीं तो आपको दूसरी दिलानी पड़ जाएगी।
मैं थोड़ी देर बिना हिले रही और उन्होंने उसे खोल दिया और मुझे सीधा करके
मेरे स्तन दबाने लगे। उन्होंने मेरी मैक्सी काफी ऊपर कर मेरे स्तनों को
नंगा कर दिया जो छोटे छोटे नारंगी के आकार के थे। वे उन्हें सहला रहे थे,
उनकी भूरी घुन्डियों को अंगूठे और अंगुली से मसल रहे थे। मुझे भी आनन्द आ
रहा था, मेरे मुँह से सिसकारियाँ निकल रही थी। मैंने उन्हें कहा- आपने कई
बार मेरे स्तनों की मांग की थी, अब ये आपके सामने हैं, जो करना है कर लो
इनका !
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