RE: Hindi Lesbian Stories समलिंगी कहानियाँ
यार बना प्रीतम - भाग (2)
गतान्क से आगे........
डर लग रहा है? कल खुद नाप लेना मेरी जान, पर घबरा मत, बहुत प्यार से दूँगा तुझे. प्रीतम का लंड लेने की कल'पना से मैं मदहोश सा हो गया. अब हम चलते चलते एक बाग में से गुजर रहे थे. अंधेरा था और आगे पीछे कोई नहीं था. प्रीतम ने अपना हाथ मेरी कमर में डाला और पैंट के अंदर डाल कर मेरे नितंब सहला'ने लगा. जब उस'की एक उंगली मेरे गुदा के छेद को रगड़'ने और मसल'ने लगी तो मैं मस्ती से सिसक उठा. प्रीतम मेरी उत्तेजना देख कर मुस्कराया और हाथ बाहर निकाल कर बीच की उंगली मुँह में लेकर चूस'ने लगा. मैने जब उस'की ओर देखा तो वह मुस्कराया पर कुच्छ बोला नहीं.
अब उस'ने फिर से हाथ मेरी पैंट और जांघीए के अंदर डाला और अपनी गीली उंगली धीरे धीरे मेरे गुदा में घुसेड दी. मैं मस्ती और दर्द से चिहुन्क कर रह गया और रुक गया. वह बोला.
चलते रहो यार, रूको नहीं, दर्द होता है क्या? दर्द ना हो इस'लिए तो मैने उंगली थूक से गीली की थी और उस'ने मुझे पास खींच'कर फिर चूमना शुरू कर दिया. मुझे अब बड़ा सुख मिल रहा था, लंड ज़ोर से खड़ा था और गान्ड में भी एक बड़ी मीठी कसक हो रही थी. प्रीतम अब पूरी उंगली अंदर डाल चुका था और इधर उधर घुमा रहा था जैसे मेरी गान्ड का अंदर से जायज़ा ले रहा हो. मुझे थोड़ा दर्द हो रहा था पर उस'में भी एक मिठास थी. जब मैने यह बात उससे कही तो फिर उस'ने मुझे ज़ोर से चूम लिया.
तू सच्चा गान्डू है मेरे यार मेरी तरह, तभी इतना मज़ा आ रहा है गान्ड में उंगली का. पर एक ही उंगली में तेरा यह हाल है मेरे यार, फिर आगे क्या होगा? खैर तू यह मुझ पर छोड दे. तू मेरे लंड का ख्याल रखना, मैं तेरी इस प्यारी कुँवारी गान्ड का ख्याल रखूँगा, बहुत प्यार से लूँगा तेरी. फाड़ूँगा नहीं.
मैं अब मानो हवा में चल रहा था. लग'ता था की कभी भी झड जाऊँगा. मैने भी एक हाथ उस'की पैंट में डाल दिया और उस'के चूतड सहला'ने लगा. बड़े ठोस और भरे हुए चूतड थे उसके. प्रीतम मुझे चूम'ता हुआ मेरी गान्ड में उंगली कर'ता रहा और हम चलते रहे. प्रीतम आगे बोला.
राजा, असल में मैं देख रहा था कि कितनी गहरी और कसी है तेरी गान्ड . एकदम मस्त और प्यारी निकली यार. लग'ता है कि कुँवारी है, कभी मरवाई नहीं लग'ता है? मैने जब कुँवारा होने की हामी भरी तो वह बड खुश हुआ. मुझे लगा ही इस'की सकराई देख कर. यार तू इस'में कुच्छ तो डाल'ता होगा मूठ मारते समय. मैने कुच्छ शरमा कर कहा कि कभी कभी पतली मोमबत्ती या पेन मैं ज़रूर डाल'ता था. वह खुश होकर बोला.
वाहा, मेरे यार, राजा, तूने अपनी कुँवारी गान्ड लग'ता है सिर्फ़ मेरे लिए संभाल कर रखी है, मज़ा आ गया राजा. उसका हॉस्टिल आ गया था. उस'ने उंगली मेरी गान्ड में से निकाली और हम अलग हो गये. हॉस्टिल के गेट पर खड़े होकर उस'ने मुझसे कहा.
देख मेरे प्यारे, आज मूठ नहीं मारना, मैं भी नहीं मारूँगा. अपनी मस्ती कल के लिए बचा कर रख, समझ हमारा हनीमून है, ठीक है ना? मैने हामी भरी पर मेरा लंड अभी भी खड़ा था और उसे मैं दबा कर बैठ'ने की कोशिश कर रहा था. यह देख कर उस'ने पूच्छा.
वीक्स है ना तेरे पास? जब मैने हां कहा तो बोला.
आज रात और कल दिन में वीक्स लगा लेना अप'ने लौडे पर. जलेगा थोड़ा पर देख एकदम ठंडा हो जाएगा. कल रात नहा कर धो डालना, आधे घंटे में फिर तनताना जाएगा. हम'ने एक दूसरे से विदा ली. हम'ने सामान लेकर शाम को सीधा नये घर में मिल'ने का प्लान बनाया. मेरे साम'ने अब प्रीतम ने बड़ी शैतानी से अपनी वही उंगली, जो उस'ने मेरी गान्ड में की थी, मुँह में ले ली और चूस'ने लगा.
इनडाइरेक्ट स्वाद ले रहा हूँ प्यारे तेरी मीठी गान्ड का, कल एकदम डाइरेक्ट स्वाद मिलेगा मुझे. वैसे बड़ा मीठ टेस्ट है, मैं तो खा जाऊँगा कल उसे मैं फिर शरमा गया और वापस चल पड़ा. कामुक'ता से मेरा बुरा हाल था. मन में प्रीतम छ्चाया हुआ था. मूठ मार'ने को मैं मरा जा रहा था पर प्रीतम को दिए वायदे के अनुसार मैने लंड पर वीक्स लगाया और फिर एक नींद की गोली लेकर सो गया.
साथ रह'ने की शुरुआत
दूसरे दिन शुक्रवार था और कॉलेज जल्दी छूट'ता था. दिन भर मेरी हालत खराब रही, वीक्स के कारण लंड तो नहीं खड हुआ पर उसमे अजीब से मीठी चुभन होती रही. छ्हुट्टी होने पर मैने होटेल आ'कर अपना सूटकेस बाँधा और नये घर में आ गया. प्रीतम अभी नहीं आया था. मैने घर जमाना शुरू कर दिया जिससे प्रीतम के आने पर जल्दी से जल्दी अपना असली काम शुरू किया जा सके. बेड रूम में दो पलंग अलग अलग थे. मैने वे जोड़ दिए. मुझे ऐसा लग रहा था जैसे कि मैं कोई नयी दुल्हन हूँ जो अप'ने पिया का इंतजार कर रही हो.
अपनी चप्प्लो की जोड़ी में से मैने गुलाबी रंग की चप्पल निकाल कर पहन ली. मेरे गोरे रंग पर वह फॅब'ती थी यह मैं जान'ता था. फिर मैं खूब नहाया, बदन पर खुशबूदार पाउडर लगाया और सिर्फ़ एक जांघिया और हाफपैइंट पहन कर प्रीतम का इंतजार कर'ने लगा.
प्रीतम को रिझा'ने को मेरा ऊपरी गोरा चिकना बदन जानबूझ'कर मैने नंगा रखा था. हाफपैइंट भी एकदम छोटी थी जिससे मेरी गोरी गोरी जांघें आधे से ज़्यादा दिख रही थी. वीक्स धो डाल'ने से कुच्छ ही मिनटों में मेरा लंड खड़ा होने लगा. प्रीतम के आने के समय तक मैं पूरा कामातूर हो चुका था.
आख़िर बेल बजी और दौड़ कर मैने प्रीतम के लिए दरवाजा खोला. उस'ने मेरा अधानांगा बदन और हाफपैइंट में से सॉफ दिखते खड़े लंड का आकार देखा तो उस'की आँखों में कामवासना झलक उठी. मुझे लगा कि शायद वह मेरा चुंबन ले पर उस'ने आप'ने आप पर काबू रखा. अपना सूटकेस कमरे में रख कर वह सीधा नहा'ने चला गया. मुझे बोल गया कि मैं सब दरवाजे बंद कर लूँ और सूटकेस में से उस'के कपड़े और किताबें निकाल कर जमा दूं. वह भी इस तरह अधिकार से बोल रहा था जैसे मैं उसका दोस्त नहीं, पत्नी हूँ. मैने बड़ी खुशी से वह काम किया और उसका इंतजार कर'ने लगा.
दस मिनिट बाद प्रीतम फ्रेश होकर बाहर आया. वह सिर्फ़ तौलिया लपेटे हुए था. मैं बेड रूम में बैठ'कर उसका इंतजार कर रहा था. उस ने आ'कर बेड रूम का दरवाजा बंद किया और मुस्कराता हुआ मेरी ओर मुडा. उसका गठा हुआ सुडौल शरीर मैं देख'ता ही रह गया. गोरी तगडी जांघें, मजबूत पेशियों वाली बाँहें, पुष्ट छा'ती और उनपर भूरे रंग के चूचुक. उस'के चूचुक काफ़ी बड़े थे, करीब करीब बेरों जीत'ने बड़े. तौलिया में इतना बड़ा तंबू बन गया था जैसे की कोई बड़ा डंडा अंदर से टीका कर लगाया हो.
प्रीतम मेरी ओर बढ़ा और मुझे बाँहों में भर के चूम'ने लगा. उस'के बड़े बड़े थोड़े खुरदरे होंठों का मेरे होंठों पर अहसास मुझे मदहोश कर रहा था. चूमते चूमते धकेल'ता हुआ वह मुझे पलंग पर ले गया और पटक'कर मेरे ऊपर चढ बैठा. फिर बेतहाशा मुझे अपनी प्रेमिका जैसा चूम'ने लगा. मेरा मुँह अपनी जीभ से खोल'कर उस'ने अपनी लंबी जीभ मेरे मुँह में डाल दी और मेरे तालू, जीभ और गले को अंदर से चाट'ने लगा. मैने भी उस'की जीभ चूसना शुरू कर दी. वह गीली रस भरी जीभ मुझे किसी मिठायी की तरह लग रही थी. आख़िर उस'के मादक मुखरस का स्वाद मुझे मिल ही गया था.
चूमते चूमते वह अप'ने हाथ मेरे पूरे शरीर पर फिरा रहा था. मेरी पीठ, कंधे, कमर और मेरी च्छा'टी को उस'ने सहलाया और हाथ से मेरी जांघें दबा'ने लगा. फिर झुक कर मेरे गुलाबी चूचुक चूस'ने लगा. मेरे चूचुक ज़रा ज़रा से हैं, किसमिस जैसे, पर उस'की जीभ के स्पर्श से अंगूर से कड़े हो गये.
क्या चूचुक हैं यार तेरे. लड़कियों से भी खूबसूरत! कह'कर उस'ने मेरी हाफपैइंट उस'ने खींच कर निकाल दी और फिर उठ कर मेरे साम'ने बैठ कर मुझे अपनी भूकी आँखों से ऐसे देख'ने लगा जैसे कच्चा चबा जाएगा. मेरे शरीर पर अब सिर्फ़ एक टांग छोटा सफेद पैंटी जैसा जांघिया था जिस'में से मेरा तन्नाया हुआ लंड उभर आया था. असल में वह एक पैंटी ही थी जो कल मैं खरीद लाया था.
वाह यार, क्या खूबसूरत चिकना लौंडा है तू, और जांघिया भी एकदम सेक्सी है, पैंटी है क्या? चल अपना असली माल तो जल्दी से दिखा. लौंदियो से कम खूबसूरत नहीं होगा तेरा माल कहते हुए उस'ने आख़िर मेरा जांघिया खींच कर अलग कर दिया और मुझे पूरा नग्न कर दिया. मेरा शिश्न जांघीए से छूटते ही तंन से खड हो गया. प्रीतम ने उसे देख'कर सीटी बजाई और बोला.
वाह मेरी जान, क्या माल है, ऐसा खूबसूरत लंड तो आज तक रंगीली किताबों में भी नहीं देखा. असल में मेरा लंड बहुत सुंदर है. आज तक मेरा सब से बड दुख यही था कि मैं खुद उसे नहीं चूस सकता. मेरा लंड मैने बहुत बार नापा था. डेढ इंच मोटा और साढ़े पाँच इंच लंबा गोरा गोरा डंडा और उसपर खिला हुआ लाल गुलाबी बड़ी लीची जितना सुपाडा. गोरे डंडे पर कुच्छ हल्की नीली नाज़ुक नसें भी हैं.
मस्ती में थिरकते हुए उस लंड को देख'कर प्रीतम का भी सब्र टूट गया. वह झट से पलंग पर चढ गया और हाथ में लेकर उसे हौले हौले दबाते हुए अपनी हथेली में भर लिया. दूसरे हथेली में उस'ने मेरी गोरी गोरी गोटियों को पकड़ लिया. मेरी झाँटें भी छोटी और रेशम जैसी मुलायम हैं. प्रीतम उन'में उंगलियाँ चलाते हुए बोला.
तू तो माल है मेरी जान, इतना कमसिन है कि झाँटें भी अभी पूरी नहीं उगी. और ये लाल लीची, हाय खा जा'ने को जी कर'ता है, अब चख'ना पडेग नहीं तो मैं पागल हो जाऊँगा. झुक'कर उस'ने बड़े प्यार से मेरे सुपाडे को चूम और अप'ने गालों, आँखों और होंठों पर घुमा'ने लगा. फिर अपनी जीभ निकाल कर उसे चाट'ने लगा. उस'की खुरदरी जीभ के स्पर्श से मेरे लंड में इतना मीठा संवेदन हुआ कि मैं सिसक उठ और बोला.
प्रीतम मेरे राजा, मत कर यार, मैं झड जाऊँगा. वह जीभ से पूरे लंड को चाट'ता हुआ बोला.
तो झड जा यार, तेरा रस पीने को तो मैं कब से बेताब हूँ, चल तुझे चूस ही डाल'ता हूँ, अब नहीं रहा जाता मुझसे. और उस'ने अपना मुँह खोल कर पूरा लंड निगल लिया और गन्ने जैसा चूस'ने लगा. मुझे जो सुख मिला वह कल'पना के बाहर था. मैने कसमसा कर उसका सिर पकड़'कर अप'ने पेट पर दबा लिया और गान्ड उचका उचका कर उस'के मुँह को चोद'ने की कोशिश कर'ने लगा. प्रीतम की जीभ अब मेरे लंड को और सुपाडे को घिस घिस कर मुझे और तड़पा रही थी. मैने कल से अपनी वासना पर काबू किया हुआ था इस'लिए इस मीठे खेल को और ना सह सका और दो ही मिनिट में झड गया.
हाय यार, ऊ ... मया ... मर गया ... कह'कर मैं पस्त हो गया. मेरा वीर्य उबल उबल कर लंड में से बाहर निकल रहा था और प्रीतम आँखें बंद कर'के बड़े चाव से उसे चख चख कर खा रहा था. . जब लंड उछलना थोड़ा कम हुआ तो वह मेरे लंड के छेद पर अपनी जीभ रगडते हुए बूँद बूँद को बड़ी अधीर'ता से निगल'ने लगा. आख़िर जब उस'ने मुझे छोडा तो मैं पूरा लस्त हो गया था.
मेरी जान, तू तो रसमलाई है, अब यह मिठायी मैं ही लूँगा रोज, इतना मीठा वीर्य तो कभी नहीं चखा मैने. कहते हुए प्रीतम उठा और बहुत प्यार से मेरा एक चुंबन लेकर पलंग से उतर'कर खड़ा हो गया. मेरी ओर प्यार से देख'कर उस'ने आँख मारी और अपना तौलिया उतार कर फेक दिया.
अब देख, तेरे लिए मैं क्या उपहार लाया हूँ! तुझे ज़रूर भाएगा देखना, बिलकुल तेरी खूबसूर'ती के लायक तोहफा है उसका लंड तौलिया की गिरफ़्त से छूट'कर उच्छल कर थिरक'ने लगा. उस मस्त भीमकाय लंड को मैं देख'ता ही रह गया.
दो ढाई इंच मोटा और सात-आठ इंच लंबा तगड़ा गोरा गोरा शिश्न उस'के पेट से सॅट'कर खड़ा था. लंड के डंडे पर फूली हुई नसें उभरी हुई थी. लंड की जड़ में घनी काली झाँटें थी. प्रीतम के पूरे चीक'ने शरीर पर बालों की कमी उन झांतों ने पूरी कर दी थी. नीचे दो बड़ी बड़ी भरी हुई गोतियाँ लटक रही थी. उस लंड को देख'कर मेरा सिर चकरा'ने लगा और मुँह में पानी भर आया. डर भी लगा और एक अजीब सी सुखद अनुभूति मेरे गुदा में होने लगी. उसका सुपाड़ा तो पाव भर के लाल लाल टमाटर जैसा मोटा था और टमाटर जितना ही रसीला लग रहा था.
देख राजा, क्या माल तैयार किया है तेरे लिए. बोल मेरी जान? कैसे लेगा इसे? तेरे किस छेद में दूँ? आज से यह बस तेरे लिए है. प्रीतम अप'ने लंड को प्यार से अपनी मूठी में भर कर सहलाता हुआ बोला. मैं उस हसीन मस्त लौडे को देख'कर पथारा सा गया था. चुपचाप मैं उठ और जा'कर प्रीतम के साम'ने घुट'ने टेक कर बैठ गया जैसे पुजारी मंदिर में भगवान के आगे बैठते हैं. ठीक भी था, आख़िर वह मेरे लिए कामदेव से कम नहीं था. समझ में नहीं आ रहा था कि उस शानदार लिंग का कैसे उपभोग करूँ. चूसूं या फिर सीधा अपनी गान्ड में ले लूँ ! मेरे चेहरे पर डर के भाव देख'कर प्रीतम मेरी परेशानी समझ गया. प्यार से मेरे बाल सहलाते हुए बोला.
क्रमशः................
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