RE: Hindi Lesbian Stories समलिंगी कहानियाँ
यार बना प्रीतम - भाग (7)
गतान्क से आगे........
रात को खा'ने के बाद संभोग शुरू होता तो फिर तीन चार घंटे नहीं रुकता. एकाध बार हम सिक्सटी नाइन करते या और तरह तरह से अप'ने यार के लंड चूस कर वीर्य पान करते पर बा'की अधिकतर समय ज़ोर ज़ोर से गान्ड मार'ने और मरवा'ने में जाता. गांद मारना हमारे लिए एक ऐसा खेल था कि उसे ज़ोर ज़ोर से वर्ज़िश सी करते हुए कर'ने में ह'में बड़ा मज़ा आता था. उच्छल उच्छल कर हम पूरे जोरों से एक दूसरे की मारते थे.
हां कभी कभी प्यार से गोद में बिठा'कर हौले हौले चूमा चॅटी करते हुए गान्ड चोदना भी बहुत प्यारा लग'ता था. इस'में अक्सर मैं प्रीतम की गोद में होता पर एक दो बार वह भी मेरा लंड अपनी गान्ड में लेकर मेरी गोद में बैठ जाता. इस आसन में हम कोई पोथी साथ साथ पढ़ते या फिर एक ब्लू फिल्म देखते.
प्रीतम की चप्पलें चूसना मेरा ख़ास शौक बन गया था. प्रीतम भी अक्सर मेरी चप्पालों से खेल'ता या फिर मेरे पैरों को चूम चूम कर प्यार कर'ता पर मैं तो उस'की चप्पालों का दीवाना हो गया था. गांद मरवाते या उस'की गान्ड मारते हुए प्रीतम की चप्पलें हमेशा मेरे मुँह में रह'ती थी. बस जब उसे मेरे मुँह को चूम'ने की या अपना लंड चुसवा'ने की बहुत इच्च्छा होती तभी मैं उन्हें मुँह से निकालता.
दोपहर को कॉलेज से वापस आ'कर भी खाना खा'ने के बाद दो घंटे पढ़ाई होती थी. इस बारे में वह पक्का था. हां दो तीन घंटे की इस पढ़ाई में हम कुच्छ मज़ा कर लेते थे और वह भी ऐसी कि पढ़ाई भी तेज होती थी. प्रीतम ने ही इस तरह की पढ़ाई की शुरुआत की. एक दिन जब मैं टेबल कुर्सी पर बैठ कर रिपोर्ट लिख रहा था तो वह उठ कर आया और मुझे चूम कर प्यार से बोला.
अगर तू हाथ ना रोक'ने का और लिखते रह'ने का वायदा करेगा तो एक मस्त आसन दिखाता हूँ. तू बस लिख'ता जा. देख क्या फटाफट पढाइ होती है. लंड में होते चुदासी के सुख से पढ़ाई ज़्यादा तेज होती है अगर ठीक से कोन्सन्ट्रेट किया जाए. बोल है तैयार? मेरे हामी भरते ही वह टेबल के नीचे घुस गया और मेरे साम'ने आराम से बैठ'कर मेरा तना हुआ लंड हाथ में लेकर कुच्छ देर उसे मुठियाया. फिर अपना मुँह खोल कर पूरा लंड निगल लिया. उस'के बाद बस वैसे ही बैठ रहा, मेरा लंड उस'ने चूसा नहीं. अपनी आँखों से इशारा किया कि मैं लिख'ता रहूं. उस'के गरम गीले तपते मुँह का स्पर्श मुझे मदहोश कर रहा था. मैने पढ़ाई शुरू कर दी.
एक घंटे में मेरी इतनी पढ़ाई हुई जैसी दो घंटों में नहीं होती. बस अप'ने आप पर इतना कंट्रोल करना था कि ऊपर नीचे होकर उस'के मुँह को चोद'ने की इच्च्छा दबाता रहूं. प्रीतम बस अपनी जीभ और तालू के बीच मेरे लंड को लेकर बैठ था, कभी कभी हौले से जीभ से मेरे लंड के निचले भाग को गुदगुदा देता. इतना सुख मेरी नसों मे दौड़ जाता था कि सहन नहीं होता था. घंटे भर बाद रिपोर्ट ख़तम होने पर आख़िर जब मुझसे ना रहा गया तो मैने पेन नीचे रख'कर प्रीतम का सिर अप'ने पेट पर दबाया और कुर्सी में बैठ बैठ उस'के मुँह को चोद'ता हुआ झड गया.
बाद में उसे चूमते हुए मैने कहा कि मैं भी उसे वैसा ही सुख देना चाह'ता हूँ. उस'के लिए लंड पूरा मुँह में लेना सीखना बहुत ज़रूरी था. प्रीतम बोला,
इस'में क्या बड़ी बात है, आज ही तुझे सिखा दूँगा उसी रात उस'ने मुझे लंड मुँह में पूरा लेना सिखा दिया. खड़ा लंड मुँह में लेने में कठिनायी होती थी इस'लिए उस'ने मेरी गान्ड मार'ने के बाद अपना मुरझाया लंड मेरे मुँह में दिया और पलंग पर लेट गया. तीन चार इंच की वह लुल्ली मैं आराम से पूरी मुँह में लेकर चूस'ता रहा. दस मिनिट बाद जब उसका खड़ा होना शुरू हुआ तो उस'ने मुझे आगाह किया.
अब घबराना नहीं सुकुमार राजा. गले में जाएगा तो गला ढीला छोडना. देख कैसा हलक तक उतार जाएगा. शुरू में जब उसका लंड धीरे धीरे खड़ा हुआ तो मुझे बहुत मज़ा आया. अधप'के उस लंड को मैं ऐसे चूस रहा था जैसे आइसक्रीम हो. पर जब उसका मोटा सुपाड़ा आख़िर मेरे गले में उतर'ने लगा तो मेरा दम घुट'ने लगा. साँस लेने में भी तकलीफ़ होने लगी. जब मैं लंड निकाल'ने की कोशिश कर'ने लगा तो मेरा यार मुझे पटक'कर मेरे ऊपर अपना वजन देकर लेट गया.
ऐसे थोड़े निकाल'ने दूँगा मेरी जान, आज तो पूरा लेना ही पड़ेगा. कह'कर उस'ने मेरा सिर कस के पेट पर दबा लिया. जब मैं हाथों से उस'की कमर पकड़'कर उसे हटा'ने की कोशिश कर'ने लगा तो उस'ने मेरे हाथ पकड़ लिए, अब उस'के वज़नदार शरीर को हटाना मेरे लिए असंभव था. मेरी साँस अब रुक गयी थी और लग'ता था कि बेहोश हो जाऊँगा. प्रीतम प्यार से बोला,
साले, मेरी बात मान'ता क्यों नहीं? गला ढीला छोड और हाथ पैर फेकना बंद क दे, तुझे कुच्छ नहीं होगा आख़िर मैने हार मान ली और चुपचाप गला ढीला छोड'ने की कोशिश कर'ने लगा. दो मिनिट में मेरा गला एकदम ढीला पड़ गया और दम घुटना भी बंद हो गया. प्रीतम का लॉडा अब जड़ तक मेरे मुँह में उतार चुका था और मेरी नाक और होंठ उस'की झांतों में समा गये थे. अब सहसा मैने महसूस किया कि दम भी नहीं घुट रहा है और उस मोटे ताजी ककडी को चूस'ने में भी मज़ा आ रहा है. मेरे शरीर के ढीले पड़ते ही प्रीतम ने मेरे हाथ छोड दिए. प्यार से मैने अप'ने हाथ उस'के चूतडो के इर्द गिर्द जकड लिए और गान्ड में उंगली करते हुए चूस'ने लगा.
सीख गया मेरा यार, चल अब इनाम ले ले अपना, चूस डाल. और लगे हाथ गला चुदवा भी ले. देख कैसे मुँह चोदा जाता है और मेरे सिर को पेट से सटा'कर वह घचाघाच मेरे मुँह में लंड पेल'ने लगा. बिलकुल ऐसे वह लंड पेल रहा था जैसे गान्ड मार रहा हो, उसका आधा लंड मेरे मुँह से अंदर बाहर हो रहा था. गले में जब सुपाड़ा घुस'ता और निकल'ता तो मेरा दम थोड़ा घुट'ता पर बहुत मज़ा भी आता था. मेरे मुँह को उस'ने पाँच मिनिट में किसी चूत की तरह चोद डाला. जब मैं उसका पूरा वीर्य पी गया तभी उस'ने मुझे छोडा.
इस'के बाद बारी बारी से हम पढाई के समय एक दूसरे का लंड चूसाते. उस'के साम'ने बैठ कर अपना चेहरा उस'की घनी झांतों में छुपा कर उसका लंड पूरा निगल कर वह सुख मिल'ता कि कहा नहीं जा सकता. हाँ, मुझे चुपचाप लंड मुँह में लेकर बैठ'ने की प्रैक्टिस करना पड़ी क्योंकि शुरू के दो तीन दिन मैं उसका लंड चूस'ने को ऐसा तरस जाता कि चूस कर उसे पढाइ पूरी होने के पहले ही सिर्फ़ आधे घंटे में ही झड देता.
यार का शरबत
एक दूसरे के बदन के लिए हमारी हवस का एक और चरण पूरा हुआ जब एक दूसरे के मूत्र को सिर्फ़ शरीर पर या चेहरे पर लेने के बजाय हम'ने उसे पीना शुरू कर दिया. पहल मैने ही की. अब तक बहुत किताबों में और फिल्मों में मैं देख चुका था की कैसे प्रेमी युगल आप'ने साथी का मूत्र बड़ी आसानी से पी जाते हैं. मैं भी यह करना चाह'ता था पर थोड डर'ता था.
आख़िर एक दिन जब टेबल के नीचे बैठ'कर मेरी बारी उसका लंड चूस'ने की थी तो मैं तैश में आ गया. उस दिन मैने लगातार ढाई घंटे की पढाई उससे कराई थी, बिना उसे झडाये. बाद में वह ऐसा झाड़ा की चार पाँच चम्मच भर कर अपनी मलाई मेरे मुँह में उगली. फिर तृप्ति की साँस लेता हुआ वह मेरे मुँह से लंड निकाल कर कुर्सी से उठ'ने की कोशिश कर'ने लगा. मैने उसे नहीं छोडा बल्कि कस कर पकड़ लिया और झाड़ा हुआ लॉडा चूस'ता ही रहा.
छ्होड दे यार, क्या कर रहा है? मुझे पिशाब लगी है ज़ोर की. छ्होड नहीं तो तेरे मुँह में ही कर दूँगा. उस'ने झल्ला कर कहा. उस'की बात को अनसुनी कर'के मैं चूस'ता ही रहा. आँखें उठा कर उस'की आँखों में झाँका और उसे आँख मार दी. वह समझ गया. . वासना से उस'की आँखें लाल हो गयीं. कुर्सी पर बैठ कर मेरे बाल बिखेर'ता हुआ वह बोला.
तो यह मूड है तेरा? देख, एक बार शुरू करूँगा तो रुकूंगा नहीं, पूऱ पीना पड़ेगा. और नीचे नहीं गिराना साले नहीं तो बहुत मारूँगा. उसे शायद डर था कि मैं बिचक ना जाऊं इस'लिए उस'ने मेरा सिर अप'ने पेट पर कस कर दबाया और मूत'ने लगा. उसका लंड मेरे गले तक उतरा हुआ था ही, सीधे गरमागरम मूत की तेज मोटी धार मेरे गले में उतर'ने लगी. मैं निहाल हो गया. मेरा लंड ऐसा खड़ा हुआ कि पूच्छो मत. घटागट उस खारे शरबत को मैं पीने लगा. इत'ने चाव से मैं पी रहा था कि उस'ने भी देखा कि ज़बरदस्ती की ज़रूरत नहीं है और अपना हाथ हटा'कर मेरे गाल पुचकार'ता हुआ आराम से मूत'ने लगा.
उसे ज़ोर की पेशाब लगी थी, दो गिलास तो ज़रूर मूता होगा. मूतना ख़तम होते होते वह भी तैश में आ गया. उसका लंड फिर खड़ा हो गया था और उस'ने लगे हाथ बैठे बैठे मेरा मुँह चोद डाला. दूसरी बार उसका वीर्य पीकर मैं उठा और उसे कुर्सी से उठा'कर वहीं ज़मीन पर पटक'कर उस'की गान्ड मार ली. वह दो बार झड कर लस्त हो गया था इस'लिए चुपचाप ज़मीन पर पड़ा पड़ा मरवाता रहा. उस'के गुदाज मासल शरीर को भोगना मुझे तब ऐसा लग रहा था जैसे किसी औरत को भोग रहा हूँ. वह भी आज किसी औरत की तरह बिलकुल शांत पड़ा पड़ा मरवा रहा था.
उसका भी मेरे शरीर की ओर कितना आकर्षण था यह उस'ने तुरंत दिखा दिया. उसी रात सिक्सटीनाइन कर'ने के बाद उस'ने तो मेरे मुँहे में मूता ही, साथ साथ मुझसे भी मुतवा लिया. एक दूसरे से लिपटे हुए बिस्तर पर पड़े पड़े ही हम एक दूसरे के मुँह में मूतते रहे. वा मेरा मूत इत'ने चाव से पी रहा था कि ख़तम होने पर भी छोड'ने को तैयार नहीं हुआ. इस'के बाद सिक्सटी नाइन के तुरंत बाद अप'ने साथी के मुँह में मूतना हमारा एक प्रिय कार्यक्रम बन गया. प्रीतम को मेरे बाल बहुत अच्छे लगते थे. उन'में वा अक्सर उंगलियाँ चलाता. कहता,
क्या ज़ूलफे हैं मेरी जान तेरी, और लंबी कर ले, मा कसम, बहुत प्यारी लगेंगी. मेरे बाल पहले ही काफ़ी लंबे थे. प्रीतम के कह'ने पर मैने बाल कटाना बंद कर दिया. उसका कहना था कि मेरी लड़कियों जैसी सूरत उससे और प्यारी लग'ती है. शायद वह बाद में मुझे लड़'की के रूप में देखना चाह'ता था.
चप्पल भोग
हमारे संभोग का अगला मादक मोड़, ख़ास कर मेरे लिए एक बड कामुक क्षण, करीब एक माह बाद एक रविवार को आया. अब तक हम रोज के क्रिया कलाप में ढल चुके थे. मैं बहुत खुश था. समझ में नहीं आता था कि प्रीतम के बिना कैसे इत'ने दिन रहा. मेरे बाल लंबे हो गये थे और प्रीतम अब प्यार से मुझे रानी कह'कर बुला'ने लगा था.
उस'की चप्पालों के प्रति मेरी आसक्ति भी चरम सीमा तक पहुँच गयी थी. जब मौका मिलता, उन्हें मैं चूम'ने और चाट'ने में लग जाता, ख़ास कर जब वे प्रीतम के पैरों में होतीं. प्रीतम अब दिन रात चप्पल पहनता. मेरे ज़िद कर'ने के कारण रात को भी पहन कर सोता था.
दो हफ्ते पहले प्रीतम ने अचानक अपनी चप्पल बदल ली थी. मुझे तो उसका कण कण पहचान का हो गया था. सहसा एक दिन उस'के पैर में उस क्रीम कलर की चप्पल के बजाय एक हल्के नीले सफेद रंग की चप्पल थी. थी यह भी रब्बर की हवाई चप्पल पर बड़ी ही नाज़ुक थी. इतनी पुरानी थी कि घिस घिस कर उस'के सोल ज़रा से रह गये थे. पट्टे भी घिस कर पतले हो गये थे और टूट'ने को आ गये थे. मुलायम तो इतनी थी जैसे रेशम की बनी हो. मुझे वह बड़ी पसंद आई. मैने पूचछा भी कि कहाँ से लाया तो कुच्छ नहीं बोला.
तुझे पसंद आई ना रानी, बस मज़ा कर. जहाँ से लाया हूँ वहाँ और भी हैं. रविवार को हम बाथ रूम में ही बहुत देर रहते और चुदाई करते. उस रविवार को हमेशा की तरह पहले मैं उस'के मुँह में मूता और उसे पेट भर'कर अपना मूत पिलाया. उस'ने मेरे मुँह में मूत'ने से इनकार कर दिया. बोला कि उसे पेशाब नहीं लगी. वह सिर्फ़ बहाना था यह मैं जान'ता था.
उस दिन उस'के दिमाग़ में ज़रूर कोई नयी शैतानी थी. वह साथ में रेशम की मुलायम रस्सी के दो टुकडे और रब्बर का एक बड चार पाँच इंच चौड छह सात इंच व्यास का बैंड लाया था. शायद किसी टायर ट्यूब में से काट हो. मेरे पूच्छ'ने पर, कि यह क्या है, कुच्छ ना बोला और हंस दिया.
मैने रोज की तरह प्रीतम की उन भीगी पतली चप्पालों के पंजे अप'ने मुँह में लिए और चूस'ने लगा. फिर वह मुझे दीवार से टिका कर मेरी गान्ड मार'ने लगा. ऊपर से गिरते शवर के ठंडे पानी के नीचे बहुत देर उस'ने मेरी गान्ड चोदी. झड'ने के बाद उस'की गान्ड मार'ने की बारी मेरी थी पर वह मुझ पर चढ़ा रहा और अपना झाड़ा लंड मेरे गुदा में ही रह'ने दिया. मुझे नीचे लिटा कर वह मेरे ऊपर सो गया. मेरा लंड टटोल कर बोला.
मस्त खड़ा है यार, अब और खड करूँ? मैने चप्पल मुँह में लिए हुए ही अस्पष्ट स्वर में कहा कि इससे ज़्यादा खड़ा वह क्या करेगा? उस'ने एक चप्पल मेरे मुँह से निकाल'कर नीचे रख दी और मुझे बची हुई चप्पल पूरी मुँह के अंदर लेने को कहा.
देख'ता जा कैसे तेरा और खड़ा कर'ता हूँ. पर पहले आज पूरी चप्पल मुँह में ले ले यार. यह पतली वाली है. तू ले लेगा. मैं कब से तेरे मुँह में अपनी पूरी चप्पल ठूँसी देखना चाह'ता हूँ. मेरी पुरानी वाली ज़रा मोटी थी, उसे तू नहीं ले पाता इसीलिए तो ये वाली मंगाई है मुझे भी यही चाहिए था. उस'की सहाय'ता से आधी से ज़्यादा चप्पल मैने आप'ने मुँह में आराम से ठूंस ली. बीच में वह बोला.
क्रमशः................
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