RE: Hindi Lesbian Stories समलिंगी कहानियाँ
यार बना प्रीतम - भाग (11)
गतान्क से आगे.......
जब दूध भरोगे तो अडतीस साइज़ हो जाएगा. दो दिन में टाँके निकाल दूँगा. यह क्रीम लगा लेना, घाव भी गायब हो जाएगा दो हफ्ते में. फिर कोई कह नहीं सकेगा कि नकली चूचियाँ हैं. एक बात और. इन'में दूध एक माह बाद भर के देखना. एक बड़ी इंजेक्शन वाली सुई इस्तेमाल करना. और इन स्तनों को रोज खूब सहलाना और मसलाना. जित'ने दबाओगे, उत'ने ये खिलेंगे, अंदर का स्पंज और सिलिकॉन ठीक से जम जाएँगे और एकदम मासल त'ने स्तन बन जाएँगे. डॉक्टर ने ह'में बीदा करते हुए कहा.
उस'के एक माह बाद की बात है. ऑपरेशन के बाद हम'ने घर बदल लिया था और मैं प्रीतम की बहन बन'कर उस'के साथ रह'ता था. मैने घर के बाहर निकलना भी छोड दिया था.
मैं आईने के साम'ने नंगा खड़ा था. बस हाई हील की सैंडल पहनी थी. प्रीतम मेरे पीछे खड हो कर मेरी चूचियाँ दबा रहा था और उन'की मालिश कर रहा था. मेरे बाल अब तक कंधे के नीचे आ गये थे जिन'में मैं क्लिप लगा लेता था.
चल आज घूम'ने चलते हैं. अब बाहर भी लड़'की के रूप में घूमना तू शुरू कर दे. आदत डाल ले. वैसे गाँव में तुझे बाहर निकल'ने का मौका नहीं आएगा. पर यहाँ शहर में तो तू घूम सक'ती है माधुरी रानी. वह मुझे चूम कर बोला. अब वा मुझे माधुरी या अनुराधा कह कर बुलाता था. मेरा लंड तन कर खड था. सॉफ चिक'ने पेट और गोटियों के कारण लंड बड़ा प्यारा लग रहा था. प्रीतम ने उसे सहलाया और बोला.
इसे अब बाँध कर रखना पड़ेगा. और अब चलते समय ज़रा चूतड मटका'ने की आदत डाल ले. मैने कहा.
प्रीतम, मैं भूल जा'ती हूँ कि मैं अब लड़'की हून. इस'लिए चलते समय लड़'के जैसे चल'ने लग'ती हूँ.
मैं बताता हूँ एक उपाय. चल झुक कर खड़ी हो जा. कह'कर वह एक ककडी ले आया. अप'ने मुँह में डाल कर अप'ने थूक से उसे गीला कर'के उस'ने ककडी मेरी गान्ड में घुसेड दी और उंगली से गहरी अंदर उतार दी.
अब चल कर देख. वह हंस'कर बोला. मैं जब चला तो ककडी गान्ड के अंदर होने से और हाई हील की सैंडल के कारण मेरे चूतड खुद ब खुद लहरा उठे. कमरे के दो चक्कर लगा'कर जब मैं लौट तो प्रीतम मुझसे चिपक गया.
क्या मस्त चल'ती है तू रंडी जैसी! बाहर ना जाना होता तो अभी पटक कर तेरी मार लेता. अब कपड़े पहन और चल. वापस आ'कर तेरी चूचियों का भी टेस्ट लेना है कि इन'में कितना दूध आता है.
जब हम बाहर निकले तो मुझे बहुत अटपटा लग रहा था. डर लग रहा था कि कोई पहचान ना ले कि मैं लड़का हूँ. लंड को मैने पेट पर सटा'कर उसपर पैंटी पहन ली थी और फिर पेटीकोट का नाडा उसीपर कस कर बाँध लिया था. इस'लिए लंड तो छुप गया था पर फिर भी मैं घबरा रहा था. प्रीतम ने मेरी हौसला बँधाया.
बहुत खूबसूरत लग रही है तू माधुरी रानी. दो घंटे बाद हम लौटे तो मैं हवा में चल रहा था. मेरे असली रूप को कोई नहीं पहचान पाया था. प्रीतम के एक दो मित्र भी नहीं जिनसे मैं मिल चुका था. और मैने महसूस किया कि राह चलते नौजवान बड़ी कामुक नज़रों से मेरी ओर देखते थे. मैं कुच्छ ज़्यादा ही कमर लचका कर चल रहा था. लोग प्रीतम की ओर वे बड़ी ईर्ष्या से देखते कि क्या मस्त छोकरी पटायी है उस'ने.
जब वापस आए तो प्रीतम का भी कस कर खड़ा हो गया था. घर में आते ही उस'ने मुझे पटक कर चूमाचाटी शुरू कर दी. वह मेरी गान्ड मारना चाह'ता था पर उस'में ककडी थी. निकल'ने तक उसे सब्र नहीं था. इस'लिए उस'ने आख़िर मेरे मुँह में अपना लॉडा घुसेड कर चोद डाला.
मुझे अपना वीर्य और मूत पिला कर वह उठा तो मैं अपना गला सहलाते हुए उठ बैठा. इतनी ज़ोर से उस'ने मेरा गला चोदा था कि मुझसे बोला भी नहीं जा रहा था. ऊपर से खारे मूत से जलन भी हो रही थी. उस'की वासना शांत होने पर प्यार से मुझे गाली देते हुए वह बोला.
आज रात भर तुझे चोदून्गा. साली रंडी छिनाल. क्या हालत कर दी है तेरे रूप ने! अब गाँव में हम तीनों मिल'कर तेरे रूप को कैसे भोगते हैं, तू ही देखना. ऐसे कुचल कुचल कर मसल मसल कर तुझे चोदेन्गे की तू बिना चुद'ने के और किसी लायक नहीं रह जाएगा साले मादरचोद. अब चल, चूची में दूध भरवा ले और चुदा'ने चल उस'ने एक डिब्बा निकाला. उस'में काले रब्बर के छोटे छोटे चूचुक थे. उन्हें तान कर मुझे दिखाता हुआ बोला.
ये चूचुक औरतें ऊपर से अप'ने चूचुक पर लगा लेती हैं कि दूध छलक ना जाए. अब मैं दर्जनों ले आया हूँ, तेरे लिए काम आएँगीं.
मुझे नग्न कर'के उस'ने मेरे स्तन दबाना शुरू कर दिए. मसल मसल कर उन्हें नरम किया और मेरे चूचुक खींच कर खड़े किए. फिर उस'ने फ्रिज से दूध निकाला. उसमे शक्कर घोली और एक बड़ी सीरिंज में दूध भरा. मेरे चूचुक को दबा'कर उस'ने उस'में का छेद खोला और हौले से उसमे सीरिंज की सुई डाली. मुझे थोड़ा दर्द हुआ पर मैं सह गया. अब तो यह रोज होने वाला था. सीरिंज दबा'कर उस'ने दूध अंदर भरना शुरू किया.
मेरा स्तन फूल'ने लगा. बड़ी अजीब सी गुदगुदी मुझे हुई. कसमसा'कर मैने प्रीतम के गले में बाँहें डालीं और उसे चूम'ने लगा. प्रीतम मेरी चूची एक हाथ से पकड़'कर दूसरे से सीरिंज दबाता रहा और मेरा मुँह चूम'ता रहा.
जब सीरिंज खाली हो गयी तो फिर उस'में दूध भर'कर प्रीतम फिर शुरू हो गया. जब चूचुक में से दूध छलक'ने लगा तब उस'ने सीरिंज निकाली और एक रब्बर का चूचुक तान कर मेरे चूचुक पर पहना दिया. पीछे हट'कर उस'ने मेरी ओर देखा और बोल पड़ा.
वाह, क्या बात है, अब लग रही है असली रसीली चूची. मैने आईने में देखा कि दूध वाली चूची फूल कर दूसरी के मुकाबले दुगुनी हो गयी थी. तन कर खड़ी थी और लाल हो गयी थी. खाली चूची सेब की तरह गोल मटोल थी और भारी वाली नारियल जैसी हो गयी थी. प्रीतम ने उसे दबाया तो मेरे मुँहे से एक हल्की चीख निकल गयी. तन कर मेरा स्तन बड़ा नाज़ुक हो गया था और जारी भी दबा'ने से एकदम दुख'ता था. पर साथ ही मेरे चूचुक में बड़ी कामुक सी टीस उठ'ती थी.
मेरी दूसरी चूची में दूध भर'ने के बाद प्रीतम ने मुझसे चल'ने को कहा. जब मैं चूतड मटक कर चला तो मम्मे गुब्बारों जैसे डोल'ने और उच्छल'ने लगे. वे भरी भी थे इस'लिए मेरी छा'ती पर उनका वजन मुझे बड़ा मादक लग रहा था. मेरे मचलते स्तनों को देख'कर प्रीतम अपना लंड मुठियाते हुए बोला.
आज मज़ा आएगा अब तेरी गान्ड मार'ने में. खूब चूचियाँ मसल मसल कर तेरी मारूँगा. फिर तेरा दूध पीऊंगा और फिर मारूँगा. अब चल, पहले मुझे अपनी गान्ड की ककडी खिला.
मुझे पटक'कर उस'ने मेरे गुदा पर मुँह लगाया और चूस कर ककडी बाहर खींच ली. जैसे जैसे वा बाहर निकल'ती गयी, वह खाता गया. मुझे बड अच्छा लग रहा था. मेरी गान्ड में इतनी देर रह'ने के बाद उसपर ज़रूर मेरी गान्ड का माल लगा होगा. वह जिस तरह खा रहा था, मेरे मन में एक आशा जागी कि शायद मैं जिस तरह से उस'की टट्टी का दीवाना हो गया था, वैसा शायद मेरा यार भी आगे चल कर हो जाए!
अब तुझे भी तेरी पसंद की चीज़ खिलाता हूँ रानी. एक हफ्ते से चप्पल नहीं खिलाई तुझे, चल आज खा ले. कह कर उस'ने अपनी एक चप्पल उतारी और मेरे मुँह में ठूंस दी. आज कल मुझे चप्पल खिला'ने के लिए मेरा मुँह या हाथ पाँव बाँध'ने की ज़रूरत नहीं पड़'ती थी. मैं वैसे ही उसे मुँह में भर लेता था. चप्पल मेरे मुँह में ठूंस'ने के बाद उस'ने तुरंत दूसरी चप्पल डिब्बे से निकाली और पहन ली. उस'के एक पैर में अब नीली चप्पल थी और एक में सफेद. मुझे एक एक चप्पल खिला'ने के चक्कर में जोड़ी अक्सर नहीं जम'ती थी. मेरा ध्यान उसपर गया देख'कर वह बोला.
हां रानी, मुझे भी अटपटी लग'ता है ऐसी बेमेल चप्पल पहन कर. अब शादी के बाद तू एक साथ जोड़ी मुँह में लेना शुरू कर दे, फिर यह झन्झट ही दूर हो जाएगी. उसका लंड फिर खड़ा हो गया था.
चल अब मरा'ने को आ जा, मेरी गोद में बैठ. आज मस्त दो घंटे मारूँगा तेरी. एक किताब भी लाया हूँ. साथ साथ पढाते हैं. मुझे खींच कर सोफे की ओर ले जाता हुआ वह बोला.
किताब बहुत गंदी थी. हर तरह के संभोग तो उस'में थे ही, जानवरों के साथ रति की भी कहानियाँ थी. प्रीतम गरमा'कर अप'ने चूतड उचका'कर नीचे से मेरी गान्ड मार'ता हुआ बोला.
रानी, मज़ा आता होगा पशुओं से संभोग में. मेरा बस चले तो एक कुत्ता कुतिया पाल लूँ. पर बाद में देखेंगे, अभी तो चल मुझे दूध पिला.
नीचे से मेरी गान्ड मार'ता हुआ वह बड़ी बेरहमी से मेरी चूचियाँ मसल रहा था. बहुत दर्द हो रहा था पर मैं उसे सहन कर रहा था. जब मेरे स्तन लाल लाल हो गये तो उस'ने मेरे एक चूचुक का रब्बर का कवर निकाला. दबाव से उस'में से दूध की फुहार निकल'ने लगी. झुक कर उस'ने उसे मुँह में ले लिया और पीने लगा. उस'के चेहरे पर एक आसीन सन्तोष दिख रहा था. मुझे इतना अच्छा लगा कि आख़िर मैं इतना औरत तो बन ही गया हूँ कि किसी को अपनी छा'ती में से पिला सक'ता हूँ. प्रीतम के सिर को अपनी छा'ती पर दबा कर उस'के मुँह में अपनी चूची घुसेड'कर मैं प्यार से उसे दूध पिला'ने लगा.
रात भर हमारी चुदाई चली. जब हम सोए तो लस्त हो गये थे. मेरी चूचियाँ खाली होकर फिर से अप'ने सेब जैसे आकार में आ गयी थी. प्रीतम बहुत खुश था कि प्रदीप की होने वाली बहू अब पूरी तरह तैयार थी. उस'ने चिठ्ठी लिख कर मा और प्रदीप को तुरंत आने को कहा.
यहीं बुलवा लेते हैं उन दोनों को. यहाँ घर में कोर्ट के क्लर्क को बुलावा'कर तेरी शादी करा देते हैं, फिर सब मिल'कर गाँव चलेंगे. प्रदीप और मा आने तक प्रीतम ने मुझसे संभोग बंद कर दिया. चप्पल खिलाना, मूत पिलाना, सब बंद कर दिया. बोला.
अब सुहागरात की तैयारी कर रानी. नयी दुल्हन की ठीक से खातिर कर'ने को कुच्छ दिन सब का आराम करना ज़रूरी है. मैने मा और प्रदीप को भी लिख दिया है. वहाँ उन'की चुदाई भी बंद हो गयी होगी.
बहू पसंद है
जिस दिन प्रदीप और मा आने वाले थे, मैं बहुत खुश था. शरमा रहा था और डर भी रहा था कि उन्हें मैं पसंद आऊंगा या नहीं. शादी कर'के उसी दिन हम गाँव को रवाना होने वाले थे.
मैं खूब सज़ा धाज़ा. मेरे रूप को देख'कर प्रीतम बड़ी मुश्किल से अप'ने आप पर काबू रख पाया, दो मिनिट तो उस'की गुलाबी आँखें देख कर मुझे लगा था कि कहीं वह वहीं पटक कर मेरी गान्ड ना मार'ने लगे. पर किसी तरह उस'ने अप'ने आप पर काबू किया. हां मेरे साम'ने बैठ कर झुक कर खूबसूरत सैंडलों में लिपटे मेरे पैर वह चूम'ने लगा.
रानी, आज तो तू एकदम जूही जैसी लग'ती है, मा कसम अब तुझे ना चोदू तो मार जाऊँगा. ऊत'ने में बेल बजी तो किसी तरह अप'ने आप को समहाल'कर वह दरवाजा खोल'ने चला गया.
प्रदीप और मा आए तो मैं सहमा हुआ सोफे पर बैठा था. प्रदीप को देखते ही मेरा दिल धडक'ने लगा. आख़िर मेरा होने वाला पति था. अच्च्छा तगड ऊँचा पूरा जवान था. दिख'ने में बिलकुल प्रीतम जैसा था. उस'के पैंट के साम'ने के फूले हिस्से को देख'कर ही मैं समझ गया कि उसका लंड कैसा होगा. मा साड़ी साड़ी पह'ने हुए थी. फोटो में तो उन'की मादक'ता का ज़रा भी अंदाज नहीं लगा था, उनका भरा पूरा शरीर, आँचल के नीचे से दिख'ती भारी भरकम छातिया और पहाड सी मोटी मतवाली गान्ड मुझे मंत्रमुग्ध कर गयी. मुझे देख'कर उन दोनों की भी आँखें चमक उठीं. मा मुझे बाँहों में लेकर चूमते हुए बोलीं.
सच में परी जैसी बहू है, प्रीतम तूने जादू कर दिया. पर ह'में झाँसा तो नहीं दे रहा? मुझे तो यह सच मुच की लड़'की लग'ती है.
जवाब में प्रीतम ने हंस'कर उनका हाथ मेरे पेट पर रख'कर साड़ी के नीचे से मेरे तन कर खड़े पेट से सटे लंड पर रखा तब उन्हें तसल्ली हुई. प्रदीप ने भी टटोल कर देखा कि मैं सच में लड़का हूँ तो उस'की आँखों में खुमारी भर आई. वह शायद मुझे वहीं बाँहों में भर लेता पर मा ने उसे डाँट दिया. बोलीं शादी के बाद गाँव में ही वह मुझे भोग पाएगा, यहाँ नहीं. मा ने पूचछा
बहू का दहेज कहाँ है? बिना दहेज के शादी नहीं होगी! मैं चकरा कर देख'ने लगा. चेहरे के भाव देख'कर प्रीतम हंस पड़ा.
अरे घबरा मत, मा मज़ाक कर रही है, मुझे मालूम है ये किस दहेज की बात कर रही है. मा, प्रदीप, ये देख तेरा दहेज, लाखों का है, बल्कि ज़्यादा का! उस'ने एक बैग खोल कर दिखाया. उस'में मेरी सारी रब्बर की चप्पलें थी. देख'कर प्रदीप की आँखें चमक उठीं. एक जोड़ी उठा'कर वह सूंघ'ने लगा. मा ने भी एक ली और चाट कर देखी.
बहुत स्वादिष्ट है, सच में बड़ी प्यारी बहू है, प्रदीप अब रख दे नहीं तो यहीं जुट जाएगा प्रदीप ने बेमन से चप्पल वापस रखी. मुझे कुच्छ समझ में नहीं आ रहा था पर कुच्छ कुच्छ अंदाज़ा होने लगा था. लंड खड़ा हो गया था.
कुच्छ देर में कोर्ट का क्लर्क आया. प्रीतम ने उसे काफ़ी पैसे दिए थे. बिना कुच्छ पूच्छे उस'ने हमारी शादी रचाई और हमारे दस्तख़त लिए. मैने अनुराधा के नाम पर साइन किया. फिर प्रदीप ने मुझे मंगलसूत्र पहनाया और मैने झुक कर सब के पैर च्छुए. हम बाहर खाना खा'ने गये पर मुझे कुच्छ नहीं दिया गया. मा बोलीं.
अब तेरी नकेल मेरे हाथ में है बहू. खाना अब सीधे गाँव चल'कर. नहीं तो तुझे रास्ते में तकलीफ़ होगी. मैं समझा नहीं पर चुप रहा. प्रदीप तो मुझे ऐसे घूर रहा था कि कच्चा खा जाएगा.
बहू ससुराल चली
घर आ'कर सब'ने सामान बाँधना शुरू हुआ. प्रीतम के दो सूटकेस थे. मा और प्रदीप बस एक बैग लाए थे. मेरा कोई सामान नहीं था क्योंकि अब मेरे पूरा'ने कपड़े मेरे किसी काम के नहीं थे. बस वो चप्पालों का बैग था जो प्रदीप ने संभाल'कर उठाया हुआ था. अंत में प्रीतम बोला.
क्रमशः................
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