RE: Hindi Lesbian Stories समलिंगी कहानियाँ
यार बना प्रीतम - भाग (12)
गतान्क से आगे.......
मैने जो बड़ा होल्डाल मँगाया था वह लाए कि नहीं प्रदीप? और टिकट भी देख लो, तीन बर्थ हैं या नहीं प्रदीप ने अप'ने बैग से एक बड़ा होल्डाल निकाला. मेरी ओर देख कर वह मुस्करा रहा था. मैं तीन बर्थ की बात सुन'कर कुच्छ चकरा गया था. मेरे लिए बर्थ नहीं है क्या? प्रदीप मेरे मन की बात ताड़ गया. मुझे खींच'कर ज़मीन पर लिटाते हुए बोला.
तुझे भी ले जाएँगे माधुरी रानी, घबरा मत, और बड़े मस्त तरीके से ले जाएँगे. तू भी याद करेगी कि शादी के बाद घर कैसे आई थी. मुझे ज़मीन पर पटक'कर वह बोला.
मा, तू चप्पल लाई है ना? चल बहू को अपना आशीर्वाद दे दे. फिर मैं अपनी पत्नी को पैक कर'ता हूँ. मा ने एक बड़ी पुरानी घिसी हुई पतली रब्बर की चप्पल और एक काली ब्रेसियार निकाली. चप्पल इतनी प्यारी लग रही थी कि ऐसा लग'ता था कि अभी खा जाउ.
मुँह खोल बहू, तेरे लिए ही लाई हूँ. शादी के बाद बहू के मुँह में शक्कर या मिठायी देती है सास, मैं उससे भी स्वादिष्ट, अपनी चप्पल तेरे मुँह में दे रही हूँ. गाँव में तो ढेरों हैं, तू अब कभी भूखी नहीं रहेगी हमारे यहाँ. मा ने मुझे पुचकार कर कहा.
मेरे मुँह में बड़े प्यार से उन्हों'ने अपनी चप्पल घुसाई. ब्रेसियार क्यों निकाली थी यह मेरी समझ में जल्दी ही आ गया जब मेरा मुँह बंद कर'के उसपर वह ब्रा कस कर बाँध दी गयी.
अब प्रदीप ने मेरे पैर पकड़े और उन्हें फोल्ड कर'के मेरे सिर पर दबा दिए. मेरे हाथ पीठ पीछे बाँध दिए गये और फिर पैर हाथों से बाँध दिए गये. मेरी अब मुर्गे जैसी मुश्कें बाँध गयी थी. मेरी गठरी सी बना दी गयी थी और हाथ पैरों और कमर में बड दर्द भी हो रहा था. मैने किसी तरह वह यातना बर्दाश्त की और चुप रहा. मा ने प्रदीप को कुच्छ इशारा किया, प्रदीप ने मेरी ओर देखा और मेरे हाथ और पैर और खींचे और और कस कर बाँध दिए.
मेरे शरीर में अब बहुत दर्द हो रहा था. मैं छटपटा कर अब हिल'ने लगा और बँधे मुँहे से गोंगिया'ने लगा. मेरी आँखों से जब दर्द के आँसू निकल आए तब मा बोलीं.
शाबास बेटे, अब आया है मज़ा. नहीं तो बहू ऐसे ही सूखे सूखे घर चल'ती तो क्या मज़ा आता. अब रास्ते भर दर्द से बिलबिला'ती चलेगी. और मुँह भी अच्छा बँधा है, चूम तक नहीं निकली बेचारी की नहीं तो रास्ते में चिल्ला'ने लग'ती तो आफ़त आ जा'ती. अब पता चलेगा इसे की आगे इस'के नसीब में क्या है. चल अब, बाँध दे इस'की गठरी.
मेरे दोहरे होकर बँधे शरीर को होल्डाल के एक सिरे में फ्लैप उठा'कर उस'के अंदर ठूंस गया और फिर मुझे बिस्तर जैसा गोल गोल लुढ़ाका'कर मेरे शरीर का बिस्तर बना'कर होल्डाल में बाँध दिया गया. अब मुझे कुच्छ दिख नहीं रहा था, सिर्फ़ सुनाई देता था. मैं अब घबरा गया था और रोने लगा था. अब मुझे कुच्छ अंदाज़ा हो रहा था कि मेरी कैसी दुर्गत बनेगी. एक दो बार लगा भी कि कहाँ फँस गया.
पर मेरा लंड पागल सा हो गया था. इतना जम के खड़ा था और उस'में इतनी मीठी कसक हो रहा थी कि जहाँ एक ओर दर्द से मैं बिलख'ता वहीं दूसरी ओर मेरा यह मन होता कि कितना अच्च्छा होता कि इस समय प्रदीप का लंड मेरी गान्ड में होता और कोई मेरी चूचियाँ बेरहमी से मसलता!
मुझे उठा'कर एक सामान जैसा ले जाया गया. रास्ते भर मेरी हालत खराब रही. मुँह की चप्पल मैं चबा चबा कर खा'ने की कोशिश कर'ता रहा जिससे मुँह को कुच्छ आराम मिले पर मा'ने अपनी ब्रेसियार मेरे मुँह पर ऐसी कसी थी कि जबड़ा ज़रा भी नहीं हिल'ता था. इस'लिए मैं सिर्फ़ उन'की चप्पल चूस सक'ता था, खा नहीं सक'ता था. गाँव का सफ़र बारह घंटे का था. शुरू से ही मेरी हालत खराब हो गयी. स्टेशन पर जब गाड़ी लेट थी तो मा मेरे ऊपर ही बैठ गयीं.
ःओल्डाल कब काम में आएगा? उन'के अस्सी किलो के वजन से मेरी कमर टूट गयी. दम घुट'ने लगा. मैं छटपटा'ने लगा. हिल'ने डुल'ने लगा तो मा को बहुत मज़ा आया. फुसफुसा कर प्रदीप और प्रीतम के कान में कुच्छ बोलीं. शायद यही कह रही होंगी की बहू छटपट रही है. मुझे और तंग कर'ने को वे कुच्छ देर बाद बोलीं.
बेटे तुम लोग भी बैठ जाओ. बड़ा मुलायम मस्त बिस्तर है, किसी लड़'की की गोद जैसा. तुम लोग भी बैठो. और जल्द ही मैं तीन तीन शरीरों के वजन के नीचे दब गया. एक जना मेरे सिर पर बैठ था, एक पीठ पर और एक नितंबों पर. मैं कसमसा'कर चीख'ने की कोशिश कर'ता हुआ बेहोश हो गया.
रास्ते भर मैं आधी बेहोशी में रहा. मुझे ट्रेन में सीट के बाजू में रखा गया था. एक बार प्रदीप जब ऊपर की बर्थ पर चढ'ने के लिए सीट पर चढ़ा तो मा बोलीं.
अरे होल्डाल पर पैर रख'कर चढ बेटे. फिर धीमे स्वर में बोलीं.
बहू को तेरे पैर लग'ने दे, आख़िर तेरी पत्नी है. तेरे पैरों के नीचे ही रहना है उसे. और प्रदीप होल्डाल पर खड़ा हो गया. जान बूझ कर पाँच मिनिट खड़ा रहा और मुझे रोन्द'ता रहा. मेरे मुलायम शरीर को दबा'ने में उसे बड मज़ा आ रहा होगा. मैं बिलबिला उठा पर मेरा लंड यह सोच कर ख़ड़ा हो गया कि यह हट्टाकट्ट नौजवान जो मुझे रौंद रहा है, मेरा पति है और कल ही मेरी चुदाई करेगा.
सास का आशीर्वाद और सुहागरात की तैयारी
आख़िर हम घर पहुँचे. शाम हो गयी थी. मुझे जब होल्डाल से निकाला गया तो मैं अधमरा सा हो गया था. कमर सीधी ही नहीं हो रही थी. बहुत भूख और प्यास भी लगी थी. मा की चप्पल मेरे मुँह में ही फँसी हुई थी क्योंकि उसे खा'ने के लिए मैं चबा नहीं पाया था.
मेरे हाथ पैर और मुँह खोल कर मा ने मेरे मुँह से चप्पल निकाली. मेरी आँखों में झाँक'कर देखा उस'में मुझे होने वाली पीड़ा और डर से छलकते आँसू देखे तो मुस्कराईं और बोलीं.
बहुत आनंद में है पर भूखी है बेचारी. और मेरी चप्पल भी अच्छी लगी पर खा नहीं पाई, है ना बेटी? फिकर मत कर, यहाँ अब इतनी चप्पलें खिलाएँगे तुझे कि तू खा नहीं पाएगी! प्रीतम और प्रदीप बेटे, अब तुम लोग सो लो. मैं तब तक बेहू को सुहाग रात के लिए तैयार कर'ती हूँ प्रीतम बोला.
मा, माधुरी का लंड चूस लेना. बीस घंटे से खड़ा है. एक बार झड़ना ज़रूरी है नहीं तो बीमार हो जाएगी बेचारी.
हां मैं समझ'ती हूँ. उस'के वीर्य पर मेरा भी तो पहला हक है सास के नाते, आ बेटी कह'कर मा मुझे बाथ रूम ले गयी. मैं लंगड़ाता उन'के पीछे हो लिया. कमर अब भी दुख रही थी. बाथ रूम के पास ही दो संडास थे. एक के दरवाजे पर मेरी तस्वीर बनी थी. दूसरे पर कुच्छ नहीं था. मेरी आँखों में उभर आए प्रश्न को देख'कर मा बोलीं
आ तुझे दिखाऊँ दो संदासों का क्या मतलब है! तू अब यह संडास इस्तेमाल करेगी जिसपर तेरी तस्वीर बनी है. नया बनवाया है, एकदम आलीशाम. सिर्फ़ तेरे लिए है, और कोई इस'में नहीं जाएगा. अब तक हम दूसरा वाला इस्तेमाल करते थे. अब उस'में ताला लगा देंगे. समझ रही है ना मैं क्या कह रही हूँ? अब इस घर में तेरे सिवा किसी को टायलेट जा'ने की ज़रूरत नहीं होगी.
मैं आँखें फाड़ कर मा की ओर देख'ने लगा. मन में डर और वासना का सागर सा उमड'ने लगा. मा बोलीं.
अब तू ही हम तीनों का चल'ता फिर'ता प्यारा संडास है बहू. ह'में अब सीमेंट के टायलेट की क्या ज़रूरत है? आज तेरी सुहाग रात से पहले तुझसे ही उस'में ताला लगवा'ने की रसम कर लेंगे.
मेरा सिर चकरा'ने लगा. वैसे मुझे इन सब बातों का अंदाज़ा प्रीतम ने दे दिया था पर अब जब समय आ गया था, मेरा डर बढ गया था. बहुत वासना भी जाग'ने लगी थी कि अब शुरू हुई मेरी असली कामुक गंदी विकृत जिंदगी.
फिर मा मुझे बाथ रूम ले गयीं. मुझे नंगा कर'के खुद भी अप'ने कपड़े निकाल'ने लगीं. मैं जैसे जैसे उन'के प'के गदराए शरीर को देख'ता गया, मेरा पहले ही खड लंड और खड़ा होता गया. एकदम चिक'ने संगमरमर जैसा उनका सांवला तराशा शरीर या'ने जैसे खजाना था. चूचियाँ ये बड़ी बड़ी पपीते सी थी और गान्ड तो मानो पहाड की दो चट्टानों जैसी थी. झाँटें ऐसी लंबी की चाहो तो चोटी बाँध लो. कमर पर मुलायम मास का टायर लटक आया था. जांघें किसी पहलवान जैसी मोटी मोटी और मजबूत थी.
उन्हों'ने मुझे नहलाया और खुद भी नहाईं. मेरा शरीर खूब दबा कर देखा और चूचियाँ मसल मसल कर तसल्ली की कि ठीक से सध गयी हैं या नहीं.
आच्छे स्तन हैं तेरे, प्रदीप को दबा'ने में बहुत मज़ा आएगा. बोल'ती हुई वे मेरे शरीर का ऐसे मुआयना कर रही थी जैसे कसाई काट'ने के पहले बकरी की कर'ता है.
बहुत प्यारी है बहू. ह'में बहुत सुख देगी. चल अब तेरा लंड चूस लूँ. और ज़्यादा खड़ा रहा तो टूट कर गिर जाएगा बेचारा. कह'कर उन्हों'ने मुझे दीवार से सटा'कर खड किया और मेरे साम'ने बैठ कर मेरा लंड एक मिनिट में चूस डाला. इतनी देर के बाद जो सुख मुझे मिला उससे मैं गश खा'कर करीब करीब गिर पड़ा.
मा ने मुझे छोडा नहीं बल्कि नीचे बैठ कर मेरा सिर अपनी जांघों के बीच खींच'ती हुई बोलीं.
अब ज़रा अपनी सास की बुर भी चख ले बहू. तेरा पति और देवर तो दीवा'ने हैं ही इसके, अब तू भी आदत डाल ले. मैने उस गीली तप'ती बुर में मुँह डाला तो खुशी से रोने को आ गया. क्या स्वाद था! इतना गाढा शहद बह रहा था जैसे अंदर बोतल रखी हो. चूत भी ऐसी बड़ी थी कि मेरी ठुड्डी उस'में आराम से घुस रही थी. बुर नहीं भोसड़ा था! मैने मन भर कर उस रस को पिया. मा दो बार झडी और मुझे शाबासी भी देती गयीं.
अच्च्छा चूस'ती है बेटी, मैं और सिखा दूँगी कैसे अपनी सास की बुर रानी की पूजा की जाते है. अब तक मेरा लंड फिर खड़ा होने लगा था. बहुत मीठी कसक हो रही थी. मा ने मुझे ज़मीन पर लिटाया और बोलीं.
आ अब कुच्छ खा ले, कल से तेरे लिए पेट में खाना लेकर घूम रही हूँ. अब बाद में भी तुझे बहुत कुच्छ खा'ने पीने को मिलेगा पर प्रदीप का लंड सह'ने के लिए कुच्छ तो जान आए तेरे शरीर में. मा मेरे सिर के दोनों ओर पैर जमा कर बैठ गयीं और बोलीं.
मुँह खोल बहू रानी, यह सास की तरफ से पहला नीवाला है तुझे. मैं सकते में था. लंड फनफना रहा था. चुपचाप मुँह खोल कर मैं लेट गया. मा ने ज़ोर लगाया और एक बड़ी मोटी लेंडी मेरे मुँह में हॅग दी. फिर झुक कर देख'ने लगीं. उन'की आँखों में असीम वासना थी.
इस मौके का इंतजार मैं बरसों से कर रही हूँ. कब सुंदर बहू आए और मैं अपनी गान्ड से उसे टट्टी खिलाऊं! खाले बिटिया. पेट भर के खा ले.
जब मैने मुँह बंद कर के उन'की टट्टी चबा चबा कर खाना शुरू की तो मा खुशी से सिसक उठीं. मेरी बालाएँ लेते हुए मेरे सिर को पकड़'कर मेरे मुँह में प्यार से हॅग'ने लगीं. अपनी पूरी टट्टी मुझे खिला'ने में मा को दस मिनिट लग गये. उस पहाड जैसी गान्ड में एक किलो से कम क्या टट्टी होगी!
जब मैने बाद में प्यार से जीभ डाल कर उन'की गान्ड अंदर से सॉफ की तो वे बहुत खुश हुईं.
अच्च्छा सीखी सिखाई है बहू. मैने तो चाबुक तैयार रखा था कि ज़रूरत पड़े तो मार मार कर सिखाऊंगी. पर लग'ता है ज़रूरत नहीं पडेगी. जैसी मुझे चाहिए थी वैसी ही छिनाल रंडी बहू मुझे मिली है.
उस'के बाद मेरे मुँह में वे लोटा भर मूती और तभी उठीं जब मैं पूरा पी गया. मेरी भूख और प्यास पूरी मिट गयी थी. पेट गले तक भर गया था. मैं मानो जन्नत में था. . लंड ऐसे खड़ा हो गया था जैसे बैठा ही ना हो. उसे देख कर मा ने मेरी बालाएँ लीं.
बहुत अच्छी बहू ढूंढी है प्रीतम ने. हमेशा मस्त रह'ती है! तुझे चोद'ने में मेरे बेटे को बहुत मज़ा आएगा. चल अब तुझे सुहागरात के लिए तैयार करूँ.
बड़ा मन लगा'कर उन्हों'ने मेरा सिंगार किया. ब्रा पहना'ने के पहले मेरी चूचियों में मा ने प्रीतम की सहाय'ता से बादाम का दूध भरा. पाव पाव लीटर की मेरी चूचियों में डेढ डेढ पाव दूध कस कर भर दिया और ऊपर से रबड के चूचुक लगा'कर मेरे चूचुक भींच दिए कि दूध छलक ना जाए. फिर मा ने रबड की काली ब्रा मुझे पहनाई.
ख़ास तेरे लिए मँगवाई है. अब तेरी चूचियाँ हमेशा दूध से भरी रहेंगी इस'लिए उन्हें कस कर और उठा कर रखना पड़ेगा. और रबड की यह ब्रा लग'ती भी बड़ी प्यारी है, एकदम मुलायम है. देख इनमे तेरे मम्मे कस'ने के बाद कैसे ये दोनों झपट'कर तेरी चूचियाँ मसलते हैं!
क्रमशः................
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