RE: Hindi Lesbian Stories समलिंगी कहानियाँ
मुझे तो बस उस दिन की घटना ही याद आ रही थी और इस उम्मीद में था कि उनकी फ़िर वैसी ही हालत हो जाये तो मज़ा आ जाये! विक्रान्त भैया के जाने के बाद वो भी बेड पर एक तरफ़ बैठ गये और जब उन्होने पीछे होकर अपना एक पैर ऊपर उठा के बेड पर रखा तो मुझे उनके उस मुडे हुये पैर की तरफ़ से सीधा उनकी गाँड तक दिखने लगा और जाँघों के बीच दबे उनके आँडूए जिससे मेरी नज़र बस वहीं चिपक के रह गयी! उन्होने अपनी बाँह उठा के वहाँ सूंघा!
"साला बहुत पसीना हो गया है... सोच रहा हूँ नहा लूँ..."
"नहा लीजिये..." मुझे अब उम्मीद जगने लगी! वो जब उठ के खडे हुये तो उनका लँड इस बार उनके छोटे से गमछे के अंदर नीचे की तरफ़ होकर हल्का सा खडा हुआ महसूस हुआ और ऊपर से ही उनके सुपाडे तक का शेप साफ़ दिखने लगा! मेरा हलक एक्साइटमेंट के मारे सूख गया! उनको नशा चढ चुका था... नशा तो मुझे भी था!
वो वैसे ही, लडखडाते हुये बाथरूम की तरफ़ गये और दरवाज़ा बन्द नहीं किया! फ़िर उन्होने मेरी तरफ़ मुड के कहा!
"आओ, तुम भी नहा लो... देखो, कितना बढिया टब है... आओ, पानी भर के नहा लो..." तो मैं शरमाने का हल्का सा नाटक करता हुआ बाथरूम तक गया और मैने भी सामने बडा सा बाथटब देखा!
"वाह भैया, बढिया टब है... मैं कभी टब में नहाया नहीं हूँ..." मैने नहाने के लिये हामी नहीं भरी मगर मना भी नहीं किया! बस उनको एनकरेज किया कि अगर वो चाहें तो मैं उनके साथ नहा लूँगा!
"आ जाओ, देखो इतना बढिया माहौल नहीं मिलेगा... आओ, नहा के खाना खायेंगे... फ़िर आज यहीं रुक जाना..."
"मगर क्या पहन के नहाऊँ?" मैने कहा तो वो टब का पानी ऑन करने के लिये झुके और झुके झुके ही बोले!
"क्यों, अंदर कुछ पहने नहीं हो??? अगर नहीं भी है, तो यहाँ मेरे तुम्हारे अलावा कौन है... कपडे उतारो और पानी में घुस जाओ... अब भाई भाई में आपस में क्या शरमाना? मैं तो शरमा नहीं रहा हूँ..." कहते कहते वो वहीं मेरी तरफ़ पीठ करके कमोड पर खडे हुये और मूतने लगे! मूतने में उन्होने सर घुमा के फ़िर मुझसे कहा!
"चलो ना, कपडे उतारो... मज़ा आयेगा... आ जाओ, शरमाओ नहीं..." अब मुझे लगने लगा था कि वो मेरे साथ नहाना चाह ही रहे थे! मैने अपनी कमीज़ उतारी और फ़िर धडकते हुये दिल के साथ अपनी बनियान उतारी तो मैने देखा! वो मुझे गौर से देखते हुये टब में घुसे और फ़िर मुझे देखते देखते ही पानी में बैठ गये! फ़िर जब पैंट उतारने का मौका आया तो मैं अपनी पैंटी एक्स्पोज़ हो जाने के कारण थोडा हिचका!
"अरे उतार दो..." उनका गमछा अब पानी में फ़ूल गया था और शायद उनका लँड भी खडा हो चुका था! मैने जब अपनी पैंट का हुक खोला तो मेरा कलेजा मस्ती के मारे मेरे मुह को आ गया! मैने उनकी तरफ़ अपनी पीठ करके अपनी पैंट का बटन खोला और फ़िर ज़िप नीचे की! वो बडे सब्र से मेरी तरफ़ देखते हुये मेरे कपडे उतरने का इन्तज़ार कर रहे थे और फ़ाइनली जब मैने अपनी पैंट अपने एक एक पैर को उठा के अपने जिस्म से अलग की तो मेरा चिकना गोरा बदन और मेरी लाल पैंटी में लिपटी, शेव की हुई गोल गाँड उनकी नज़रों के सामने पडी!
"वाह, बढिया चड्डी पहने हो... लाल रँग मुझे पसन्द है... आओ, चड्डी पहन के ही आ जाओ..." जब मैं उनकी तरफ़ बढा तो मेरा लँड पूरा ठनक चुका था और मैने अपना एक हाथ उसके ऊपर रखा हुआ था! मैं टब की दूसरी तरफ़ उनके पैरों के बीच पानी में घुस के जब बैठा तो तब तक मेरी ठरक अपने आप ही अपनी चरम सीमा तक पहुँच गयी!
"तुम ऐसी चड्डी पहनते हो?"
"हाँ..."
"मज़ा आता होगा..."
"जी भैया, आराम रहता है..."
"हाँ, तुम्हारे ऊपर सही लग रही है... उन्होने अपने दोनो पैरों के घुटने मेरी दोनो तरफ़ करके मोड रखे थे, जिससे वो पानी के लेवल से ऊपर थे! मैने भी अपने घुटने मोड के जब उनको फ़ैलाया तो वो सीधे उनके घुटनों से चिपक गये!
"ऐसे नहाने का मज़ा ही कुछ और है..."
"हाँ, ऐसे में आपके साथ भाभी होनी चाहिये थीं..."
"अरे, उसका काम अब हो गया... तीन बच्चे हो गये! अब घर वालों का मुह भी बन्द हो जायेगा और अब थोडा फ़्रीडम से रहूँगा..."
"कैसी फ़्रीडम भैया?"
"यार अपनी मर्ज़ी की फ़्रीडम... मतलब जब चाहूँ जिसके साथ..."
"मतलब 'नयी नयी' लेने की फ़्रीडम?" मैने अपनी उँगलियों से चूत बना के उनकी तरफ़ किया और कहा!
"हाँ..."
"वाह भैया, आप सही हो... वरना लोग कहाँ ये सब कर पाते हैं..."
"अरे, तभी तो यहाँ नौकरी ढूँढी है..."
अब हमारे पैर आराम से आपस में चिपक के रगड रहे थे! इस बीच उन्होने ऊपर का शॉवर भी ऑन कर दिया तो बिल्कुल बारिश का समाँ हो गया!
"यार ऐसे में एक एक पेग और होना चाहिये... रुको, मैं लाता हूँ..." और इस बार जब वो उठे तो उनका गमछा पूरा भीग कर उनके बदन से ऐसा चिपका कि लग ही नहीं रहा था कि उन्होने कुछ पहना भी है! पीछे उनकी गाँड का शेप और दरार की गहरायी और आगे उनके लँड और आँडूए उनके भीगे गमछे से साफ़ नँगे दिख रहे थे! उनका लँड भी अब उफ़ान पर था मगर फ़िर भी पूरा नहीं! शायद अभी मेरे हामी भरने की कसर बाकी थी! मगर उन्होने अपने जिस्म के किसी भी अँग को छिपाने की कोशिश किये बिना आराम से बाहर गये और जब लौटे तो उनके हाथ में एक ग्लास, एक बॉटल और पानी का एक जग था जिसमें अब थोडा ही पानी बचा था!
"बस एक ग्लास भैया?"
"हाँ, अब एक ही ग्लास से पियेंगे... आओ, तुम भी इधर होकर बैठ जाओ..." अब उन्होने पेग बनाया और हम बडी मुश्किल से अगल बगल अड्जस्ट होकर बैठे तो उन्होने अपने हाथों से मुझे चुस्की लगवायी! दूसरी चुस्की में उन्होने मेरे चिन के नीचे हाथ रख के ग्लास मेरे होंठों से लगाया!
"लाईये, मैं आपको पिलाता हूँ..." मैने इस बार उनके चेहरे के नीचे, उनकी तरह से पकडा और ग्लास उनके होंठों से लगाया! फ़िर ग्लास तो साइड हो गया, मगर मैं उनका चेहरा पकडे रहा! मुझे लगा कि उनको जितना करना था, कर चुके... अब मुझे भी कुछ पहल करके काम आगे शुरु करना पडेगा! वो नशे में थे!
"क्या हुआ?"
"बहुत कुछ..."
"हाँ, लग तो रहा है..."
"सिउहहह... भैया..." मैने उनकी आँखों में आँखें डाल कर सिसकारी भरी!
"उस दिन जो बच गया था, आज हो जायेगा..." ये पहली बार था जो उन्होने उस दिन की दास्तान का कोई ज़िक्र किया था!
"अआहहह... भैया... आहहह... हाँ, उस दिन की आग अभी तक जल रही है..." कहकर जब मेरा चेहरा उनके चेहरे के करीब आया तो उन्होने भी मेरे चेहरे को अपने हाथों में समेट लिया! उनके शराब में भीगे होंठ थिरक रहे थे और चुम्बन की आस में पहले ही खुल चुके थे! उनके बीच उनकी ज़बान दिख रही थी! जब हमारे होंठ एक दूसरे से मिले तो हमारी आँखें खुद-ब-खुद बन्द हो गयी और हम जैसे एक दूसरे में समाँ गये और टब में नीचे होते चले गये! इतना कि बस हमारे चेहरे ही पानी की सतह के ऊपर थे! मैने अब एक हाथ से पहले उनकी बाज़ू सहलायी और फ़िर उनकी छाती! उन्होने मेरी गर्दन के पीछे एक हाथ रख कर मेरे सर को चुम्बन की पोजिशन में लॉक कर लिया और उनका दूसरा हाथ मेरी गर्दन से होता हुआ मेरी बाज़ू पर आया और फ़िर मेरी पीठ सहलाता हुआ जब मेरी कमर से गुज़रा तो मेरा जिस्म अपने आप उनके जिस्म से चिपकने के लिये आगे हो गया और फ़िर उनका हाथ मेरी पैंटी की इलास्टिक को रगडता हुआ बीच बीच में ना सिर्फ़ मेरी गाँड की गोल फ़ाँकों को दबाने लगा, बल्कि सीधा पीछे से मेरी जाँघ तक जाकर रगडने लगा और हमारे जिस्म पानी की बौछार के दरमियाँ आपस में चिपक गये!
काफ़ी देर के बाद मैने आँखें खोली और उन्होने भी अपनी आँखें खोलीं! फ़िर हमारा चुम्बन टूटा और हम एक दूसरे को देखते रहे!
"अब, मुझे तुम्हारे जैसे यार चाहिये... जीवन का आनन्द लेने के लिये..."
"सिउउउउह... भैया.. अआह... मैं हा..ज़िर हूँ... मैं तो कब..से..." उन्होने मेरी बात बीच में काट दी!
"तुम्हें देख के मैं सब समझता था... ये जो तुम्हारी आँखों की प्यास है ना, इसकी बहुत पहचान है मुझे... मैने भी स्कूल में शादी के पहले तक बहुत लौंडे चोदे हैं बेटा... बस थोडा सही समय का इन्तज़ार कर रहा था! विक्रान्त नहीं आता तो उसी रात तुम्हारी गाँड मार ली होती..."
"अआह... भैया... मार लेते ना... मैं भी तो.. आपसे मर..वाना... चाह रहा... था..."
"अबे, इसीलिये तो तुम्हें यहाँ बुलाया है..." उन्होने टब से निकाल के मुझे बाथरूम के टाइल लगे सफ़ेद फ़र्श पर मुझे लिटाया! फ़िर मेरे पैरों पर शराब की बॉटल से कुछ शराब डाली और मेरे पैरों पर झुक के उनसे शराब चाटने लगे! उन्होने पहले मेरे पैरों की उँगलियों पर अपने होंठ रखे, फ़िर मेरे पैर के अँगूठे को अपने मुह में लेकर चूसना शुरु कर दिया! उसके बाद वो हल्के हल्के छूते हुये ऊपर मेरे घुटने की तरफ़ बढे! मेरी तो सिसकारियाँ रुकने का नाम ही नहीं ले रही थी! मेरी जाँघें खुल के फ़ैल गयी थी और उनके हाथ मेरे पैरों, जाँघों और चड्डी के ऊपर से मेरे लँड और आँडूओं को मस्त कर के मसल रहे थे!
उन्होने मेरी जाँघ पर शराब डाल कर जब वहाँ चूसा तो मैने उनका सर पकड लिया! फ़िर उन्होने मेरी चड्डी को ऑल्मोस्ट शराब में डुबो ही दिया और उसको चूस चूस कर शराब चूसने और पीने लगे! ऐसा करने में वो कभी मेरी नाभि में मुह घुसा देते, कभी मेरे आँडूओं पर और कभी मेरी जाँघों के बीच! मैं तो अब मस्ती से पागल हो चुका था! शायद वो मुझे पागल ही करना चाहते थे! वो अपने बाप से कहीं ज़्यादा एक्स्पर्ट थे! शायद बाप उस दिन जल्दबाज़ी में था, यहाँ उनके पास फ़ुर्सत ही फ़ुर्सत थी! शायद उनकी जवानी अभी चरम पर थी!
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