RE: Hindi Lesbian Stories समलिंगी कहानियाँ
सौरभ जब बाहर निकला तो उसकी चड्डी गीली होकर उसके जिस्म से चिपक चुकी थी! उसने जब झुक के दीपयान की पॉकेट से तेल की छोटी सी बॉटल निकाली तो मुझे उसकी गदरायी चिकनी गाँड खुल के सामने साफ़ साफ़ फ़ैली हुई और जाँघें पीछे से कसी हुई दिखीं तो मैं खुद ललच गया! फ़िर उसने आँखों से मेरी तरफ़ इशारा किया!
"आओ, ये देखो आँवले का तेल है... पता है ना क्या होगा?"
"हाँ..."
"तो चलो गाँड खोलो..." कहते हुए उसने वहीं बिन्दास अपनी चड्डी उतार दी! मैने पहली बार उसका लँड अपनी नज़रों के सामने देखा! वो गोरा, बेहद चिकना और सिलेंड्रिकल सीधा था! उसका सुपाडा गुलाबी था और अब खुल चुका था! उसने अपने लँड पर हाथ से तेल मलते हुये कहा!
"अबे आ ना, नँगा होकर लेट... यहाँ देख, तेरी गाँड में घुसाऊँगा इस खम्बे को..." मैने बडे लरजते हुये अपनी चड्डी उतारी!
"चल, वहाँ घास बडी है... उसमें लेट..." उसने दस कदम दूर के लिये इशारा किया, जहाँ घास इतनी बडी थी कि अगर कोई लेट जाये तो पूरा छुप जाता! वो जगह मुझे भी ठीक लगी!
मैं वहाँ जाकर लेट गया! मुझे पता था, इतनी एक्साइटेड स्टेट में, कमसिन लौंडे ज़्यादा फ़ोरप्ले नहीं कर पाते हैं... उनका तो सीधा काम से मतलब होता है और सौरभ ने भी वही किया! मैं जैसे ही लेटा, वो मेरे ऊपर चढा और सीधा अपना लँड मेरी दरार में फ़ँसा दिया! वो तो तेल के कारण लँड फ़िसला ना होता तो शायद अंदर भी घुसा देता! उसने एक हाथ से अपने लँड को साध के मेरे छेद पर रखा और फ़िर धक्का दिया तो मैने मज़ा लेने के लिये अपनी गाँड भींची!
"गाँडू, भींचेगा तो मा चोद दूँगा... चल गाँड ढीली कर, अंदर घुसाऊँगा..." मैने गाँड ढीली की तो उसने एक ही फ़ोर्सफ़ुल धक्के के साथ सीधा अपना लँड मेरी गाँड की गहरायी तक उतार दिया और फ़िर मज़े लेने के लिये उचक उचक के मेरी गाँड मारने लगा! उसने मेरे कंधे पकड लिये और चुदायी करते समय साले की ज़बान बन्द हो गयी! अन्दाज़ के मुताबिक वो ज़्यादा देर नहीं टिका और कुछ देर में ही उसके करहाने की आवाज़ों के साथ धक्के तेज़ हो गये!
"अआह... सा..ला.. झडने.. वाला है... अआहह.. हाँ... हाँ झड... हाँ.. झड गया..आहहह..." कहके उसने मुझे ज़ोर से पकड लिया और मेरी गाँड की गहरायी तक धक्के दे-देकर अपना माल मेरी गाँड में भर दिया!
जब वो वहाँ से लौटा तो मुझे अपनी तरफ़ दीपयान आता दिखा! वो चड्डी पहने जो और मेरे पास आकर ही उतरी!
"गाँड में लेगा या चूसेगा आज भी?"
"जो तू कहे..." मैने कहा!
"चूस ले, क्योंकि गाँड तो साला सौरभ गन्दी कर गया होगा..."
"क्यों, आजा ना... गाँड में डाल दे..."
"नहीं, चूस ही ले... बाकी दोनों से मरवा लियो..." उसने कहा और सीधा, मुझे लिटा के मेरी छाती पर बैठ गया और मुझे अपना लँड चुसवाने लगा! जब मैने उसकी गाँड पकडने की कोशिश की तो उसने मना किया!
"ओये, सबके सामने गाँड पर हाथ मत रख... गाँडू, चुपचाप चूसता जा, बस..." मैने अपने हाथ हटा लिये और सिर्फ़ उसके लँड के धक्कों का अपने मुह में मज़ा लेता रहा!
"ओये, गाँड में डाल दे ना साले की... चुसवा क्या रहा है, साले..." तभी पीछे से दीपू की आवाज़ आयी!
"अबे, साला चूसता बहुत बढिया है... तू गाँड में डाल दियो... मुझे चुसवाने में मज़ा आता है..." उसने अपने दोस्त को जवाब दिया! कुछ देर बाद दीपयान का गोरा चिकना खडा लँड मेरे मुह में उछलने लगा और उसके वीर्य की गर्म धार मेरे मुह में भर गई तो मैं उसको पी गया! उसका रस बडा नमकीन और कशिश भरा ताक़तवर था! बिल्कुल वैसा, जैसा लौंडिया चूत में भरवाना चाहती है! उसने मेरे मुह से लँड निकाला और उसको मेरी छाती पर पोंछ दिया!
फ़िर राजू आया! उसका लँड सबसे काला था और सबसे बडे आँडूए थे! उसके लँड का सुपाडा खुला हुआ था, बिल्कुल मुसलमानों के लँड की तरह... जैसा मुझे दीपयान ने उसके बारे में बताया था!
"चल ना, कुतिया बन..." उसने मुझे पलटवा के मेरे घुटने मुडवा के गाँड ऊपर उठवायी!
"साला सौरभ माल भर के गया है???"
"हाँ..." मैने कहा!
"तब सटीक अंदर जायेगा मेरी रानी... चल कुतिया बनी रह, आज तुझे मर्द की शक्ति दिखाता हूँ... गाँडू तू भी क्या याद रखेगा, किसी ने तेरी गाँड मारी थी..." कहकर उसने अपना सुपाडा मेरे छेद पर लगाया जो अब तक किसी राँड की चूत की तरह खुल चुका था! उसका सुपाडा सीधा एक झटके में अंदर घुसा और फ़िर वो खुद अपना पूरा लँड मेरी गाँड में डाल कर मेरे ऊपर झुक के लेट गया और मेरी पीठ पर चुम्बन लेने लगा! फ़िर मैं वापस लेट गया तो उसने पीछे से अपना मुह मेरे गालों पर लगाना शुरु कर दिया! वो लगातार अपना लँड अंदर बाहर भी किये जा रहा था! फ़िर उसने कहा!
"अपना मुह दिखा ना गाँडू..."
जब मैने अपना मुह उसकी तरफ़ मोडा तो उसने मेरे होंठ चूसने शुरु कर दिये!
"उम्म... सिउउउहहह... हाँ जब चोदो तो पूरा दिल लगा के... साला दीपयान का नमकीन माल तेरे होंठों पर लगा है... हाहाहा..." उसके धक्के अच्छे थे! हर धक्के में लँड सीधा अंदर तक छेद चौडा करके घुस रहा था और हर धक्के पर 'धपाक धपाक' की आवाज़ें आ रही थी! वो अपनी जाँघें और गाँड समेट समेट के उठा रहा था और फ़िर नीचे ज़ोर से मेरी गाँड पर धक्का लगा रहा था! राजू ने मेरे दोनो कन्धे पकड रखे थे जिस वजह से मुझे उसके हाथों की ताक़त का भी अहसास हो रहा था! उसने अपने पैरों से मेरे पैरों को ज़मीन पर जकड रखा था, मगर शायद उसे उठी हुई गाँड मारने का शौक़ था!
"थोडी गाँड उठा..." उसने कहा तो मैने अपनी गाँड ऊपर उठा दी!
"टाँगें फ़ैला ना..." मैने जब टाँगें फ़ैलाईं तो वो मेरी फ़ैली हुई टाँगों के बीच हो गया पर उसने मेरी गाँड मारना जारी रखा!
"ओये... कितनी लेगा? बच्चा डाल के आयेगा क्या साले?"
"अबे, गाँडू.. की गाँड... में कहाँ बच्चा... ड..लेगा... सा..ला, बडा मस्त चुद...वा र..हा है... गाँड ब..ढि..या है गाँडू की..." वो चोदते चोदते बोला!
"हाँ बेटा, तभी तो लाया हूँ..." दीपयान बोला!
"क्यों... गि..रा.. दूँ?" उसने मेरे कान में पूछा!
"अगर चाहते हो तो गिरा दो..."
"अभी गिरा देता हूँ... फ़िर कभी अकेले में अपने कमरे पर बुलाइयो... तो और जम के रात भर तेरी मारूँगा..."
"हाँ, आ जाना कभी भी..."
"हाँ आऊँगा... अकेले में लेने की बात ही और होती है..."
"हाँ, उसमें अलग मज़ा आता है..." फ़िर उसने मेरी गाँड में धक्के तेज़ कर दिये और कुछ देर में उसका माल भी मेरी गाँड के अंदर झड गया!
फ़िर दीपू आया! जो फ़िज़िकली उन सबसे ताक़तवर और मस्क्युलर था! उसका रसीला बदन भीग के और मादक लग रहा था और वो जब नँगा मेरी तरफ़ आया तो उसका सामने लहराता हुआ लँड बडा सुंदर लग रहा था! मगर दीपू आया और मेरे सामने खडा हो गया! उसने अपने दोनो हाथ कमर पर रख लिये और लँड थोडा आगे कर लिया!
"क्या हुआ? आओ ना..."
"आता हूँ..." उसने कहा और फ़िर जब उसके लँड से पिशाब की धार मेरी पीठ पर पडी तो मुझे उसके हरामीपने का अहसास हुआ! मैने उठना चाहा मगर उसने मुझे अपने पैरों से दबा दिया और फ़िर अपने लँड को हाथ से पकड के मेरे ऊपर पूरा का पूरा पिशाब कर दिया! उसकी गर्म पिशाब की धार से मैं मस्त तो हो ही गया!
"ले, अब चूस... हाहाहा..." उसने हँसते हुये कहा!
"साला, बडा हरामी है... उसके ऊपर मूत ही दिया..." पीछे से बाकियों की भी हँसने की आवाज़ आ रही थी!
"हाँ साला, बहुत दिन से पॄथ्वी के ऊपर मूतने के चक्कर में था..." पॄथ्वी वो लडका था, जिसकी वो सब स्कूल में लेते थे!
"अबे, इसके रूम पर चल के इसकी लिया करेंगे..."
"हाँ, बिस्तर में लिटा के..."
"हाँ, उसका मज़ा अलग आयेगा..."
"हाँ, सुहागरात लगेगी..."
"अबे रहने दे... बहनचोद, गाँडू के साथ कैसी सुहागरात..."
"अबे, अभी तो यही है ना... सुहागरात मनाने के लिये..."
"पॄथ्वी को भी बुला लेंगे... दोनों को अगल बगल लिटा के, दोनो की गाँड मारेंगे..."
"हाहाहा..."
"आइडिआ बुरा नहीं है..." दीपू मेरे बगल में मेरी तरफ़ लँड करके लेटा तो मैने उसका लँड दबा के उसके आँडूए सहलाये और फ़िर उसका लँड अपने मुह में ले लिया! उसने अपनी जाँघ मेरे कंधे पर चढा दी और जब मैने उसकी गाँड को पकड के मसला तो उसने सिसकारी भरी! मैने एन्करेज्ड होकर उसकी दरार में अपनी उँगलियाँ फ़िराईं और उसके छेद पर उँगली से दबाया! उसकी गाँड की चुन्नटें तुरन्त ही खुलने लगीं और मेरी उँगली की टिप उसमें घुसने लगी!
"अबे, गाँड मारेगा क्या? साले, लँड चूस..."
"तेरी गाँड बडी बढिया है..."
"बहनचोद, है किसकी... बढिया नहीं होगी क्या..."
"एक बार गाँड चूमने दे..."
"अबे यहाँ नहीं..."
"क्यों?"
"अबे, सब के सब हैं यहाँ..."
"यार, तेरी गाँड बडी मस्त है..." मुझे लगा कि शायद वो मरवा लेगा और शायद उसने मरवा भी रखी थी!
"ओये गाँडू, लौडा चूस बस..."
"एक बार गाँड में मुह घुसाने दे..."
"यहाँ नहीं यार... किसी दिन अकेले में..."
"आह... और क्या क्या करने देगा अकेले में?" लँड चुसवाने में वो कामातुर था इसलिये भी बेझिझक बातें कर रहा था!
"जो करना है कर लियो... बस?"
"मरवायेगा?"
"देखा जायेगा... तू मिल तो पहले..." अब मैं कन्फ़र्म हो गया कि वो भी शौकीन मिजाज़ है!
"अभी चूस ना साले... सही से चूस..." कहकर उसने मुझे कुछ देर गहरायी तक चुसवाया और जब मुझे लगा कि वो झाडने वाला है, तो उसने मुझे पलट दिया और अपनी तरफ़ गाँड करवा के करवट दिलवा दी! फ़िर उसने मेरी गाँड में लँड डाल दिया और मेरी गाँड चोदने लगा!
"वाह... चुसायी और चुदायी, दोनो का मज़ा..." मैने कहा!
"हाँ बेटा, बस मज़ा करता हूँ... बस मुह बन्द रखेगा, तो तुझे और भी मज़ा दूँगा..."
"मेरा मुह तो बन्द ही रहता है... तुम्ही लोग आपस में सब बोल देते हो..."
"यार, अब तो तुझसे सम्बन्ध हो गया है ना... पहले की बात और थी... अब जो बोलेगा, आपस में रहेगा..." उसके कुछ देर बाद उसने मेरी गाँड में माल झाड दिया! फ़िर हम वहाँ कुछ देर और नहाये, जिस दौरान सौरभ ने पानी में ही, सबके सामने मुझसे अपना लँड चुसवाया!
उसके बाद उनसे मेरी अच्छी दोस्ती हो गयी और वो अक्सर मेरे रूम पर आने लगे! फ़िर मैने कानपुर में नौकरी के लिये अप्लाई किया और वहाँ शिफ़्ट हो गया और देहली के इन आशिक़ों की बस यादें रह गयी! बस विनोद और आकाश का कभी कभार लैटर आता था! फ़िर सब अपने अपने जीवन में लग गये!
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