RE: Hindi Lesbian Stories समलिंगी कहानियाँ
मस्त कर गया पार्ट --14
जब मैं सुबह नाश्ते पर गया तो वहाँ वसीम और आसिफ़ दोनो ही थे! उस सुबह इतना कुछ हो जाने के बाद दोनो बडे दिलकश लग रहे थे! ऐसा होता भी है... जब किसी लडके के साथ 'कर' लो और फ़िर उसको नॉर्मल सिनैरिओ में औरों से बात करते हुये, तमीज़ से झुकते हुए, बडों से अदब से बात करते हुए, शरमा के मुस्कुराते हुए देखो तो कुछ ज़्यादा ही मन लुभावने लगते हैं! ज़ाइन भी सुबह सुबह के खुमार में बडा चिकना और नमकीन लग रहा था! उसकी भी रात की दारु की ख़ुमारी उतर गयी थी!
"क्यों? दिमाग हल्का हुआ ना?" मैने उससे हल्के से पूछा!
"जी चाचा... आपने किसी से कहा तो नहीं?"
"नहीं यार... कहूँगा क्यों?"
"थैंक्स चाचा..."
उसके बाद बिदायी का समय आ गया! और फ़िर हम जब स्टेशन पहुँचे तो ट्रेन टाइम पर थी! सब जल्दी जल्दी चढ गये! बाय बाय हुआ, मैने आसिफ़ और वसीम से गले मिल कर विदा ली और अलीगढ आने का वायदा किया और उनको भी देहली इन्वाइट किया!
ट्रेन के छोटे से सफ़र में मेरी नज़र रास्ते भर बस ज़ाइन पर ही रही! वो उस दिन नहा धो कर बडा खुश्बूदार हसीन लग रहा था! उस दिन वो व्हाइट कार्गो पहने था और लाल कॉलर वाली टी-शर्ट और ऊपर से एक नेवी ब्लू हल्की सी जैकेट डाले हुये था! उसकी भूरी आँखें और गुलाबी होंठ बात करने में मुस्कुराते तो मुझे उसका लिया हुआ वो चुम्बन याद आ जाता! फ़िर उसकी गाँड की वो दरार याद आती जिसे मैने पिछली रात बाथरूम में रगडा था!
हमारा रिज़र्वेशन सैकंड ए.सी. में था, मगर मैं बगल वाले कम्पार्ट्मेंट में सिगरेट पीने के लिये चला जाता था ताकि किसी का सामना ना करना पडे! बगल वाला कोच ए.सी. फ़र्स्ट क्लास का था! ट्रेन कुछ रुक रुक के चलने लगी थी! ऐसे ही एक बार जब में सिगरेट पीने गया तो ज़ाइन को भी बुला लिया!
"आओ, तुम खडे रहना..." मैं वहाँ खडा सिगरेट पी रहा था और वो खडा हुआ था! मैं बस उसको देख देख कर वासना में लिप्त हो रहा था!
"तुम्हारी बॉडी बडी अच्छी है वैसे..." मैने अचानक उससे कहा!
"अच्छा? थैंक्स..."
"एक्सरसाइज़ किया करो और सही हो जायेगी!"
"अच्छा चाचा, कैसी एक्सरसाइज़?"
"किसी ज़िम में पूछ लेना..." अब मैं उससे बात करते हुये उसके चेहरे से अपनी नज़रें हटा नहीं पा रहा था... बस उसकी कशिश में खिंचा हुआ था! मगर तभी उसे राशिद भाई के बुलाने की आवाज़ आयी! वो वापस जाने लगा तो वो कम्पार्ट्मेंट से निकलते एक आदमी से टकराया और सॉरी बोल के चला गया!
वो आदमी आया और मेरे बगल में उसने भी सिगरेट जला ली! मैने एक कश लिया और अचानक जब उसके चेहरे पर नज़र पडी तो वो कुछ जाना पहचना सा लगा!
मैं उसे गौर से देख रहा था और मैने देखा कि वो भी मुझे ध्यान से देख रहा था और अचानक हम एक दूसरे को पहचान गये!
"अरे... आकाश तुम?"
"अरे अम्बर तुम... अरे यार वाह, बडे दिन के बाद मिले हो..."
"हाँ यार, मैं भी पहचाने की कोशिश कर रहा था..."
"हाँ, मुझे भी तेरा चेहरा जाना पहचाना सा लगा..."
"वाह यार क्या मिले... अच्छा, कहाँ जा रहे हो?" उसने पूछा!
"यार, एक बारात में आया था... यहाँ सिगरेट पीने आ गया!"
"वाह यार..."
"और तुम कहाँ जा रहे हो?"
"मैं काम से बनारस जा रहा हूँ!"
"अरे, आओ ना... आओ, अंदर बैठते हैं!"
"अरे, फ़र्स्ट क्लास में टी.टी. पकड लेगा..."
"अरे, कुछ नहीं होगा... आओ बैठ के बातें करेंगे... इतने दिनों के बाद मिले हो यार..."
मैं उसके साथ उसके कैबिन में गया! वो दो बर्थ वाला कैबिन था, जिसकी ऊपरी सीट पर कोई सोया हुआ था!
"ये कोई तेरे साथ है क्या?"
"हाँ यार, भतीजा है!" मेरा मन तो हुआ कि देखूँ तो उसका भतीजा कैसा है... मगर कम्बल के कारण मुझे कुछ दिखा नहीं! मैं उसके साथ नीचे बैठ गया और हम बातें करने लगे!
"क्यों, तेरी शादी हुई?" फ़ाइनली मुझसे रहा ना गया और मैने पूछा तो उसकी आँखों में शरारती सी चमक आ गयी!
"क्यों, तुझे क्या लगता है?"
"क्या मतलब? यार लगेगा क्या, सीधा सा सवाल पूछा!"
"हुई भी और नहीं भी..."
"क्या मतलब?"
"मतलब, हुई थी मगर चार साल पहले डिवोर्स हो गया..."
"ओह.. अच्छा... तो अब इरादा नहीं है?"
"नहीं यार... और तू बता, तेरी हुई क्या?"
"नहीं..."
"क्यों?"
"बस ऐसे ही..."
"तो... काम कैसे मतलब... अच्छा चल रहने दे..." उसने मेरी जाँघ पर हाथ मारते हुये कहा!
"पूच ले, क्या पूछना है?"
"जब पता ही है तो क्या पूछूँ? शायद हम दोनो एक ही नाव पर हैं..."
"यार, साफ़ साफ़ बोल..."
"अच्छा, तुझे कुछ याद है?"
"क्या याद होगा?"
"वो याद है... जब हमने विनोद के यहाँ फ़िल्म देखी थी?"
"हाँ तो... क्या हुआ? उसमें याद ना रहने वाली क्या बात है?"
"उसके बाद का याद है?"
"ये सब मैं भूलता नहीं हूँ..."
"बस सोच ले... कुछ, उसी सब कारण से डिवोर्स हुआ...."
"मतलब... तुझे चूत..."
"हाँ शायद..."
"तो?"
"यार, अब मेरे मुह से क्यों कहलवाना चाह रहा है..."
पन्द्रह साल के बाद, आज उसने जब अपना हाथ मेरी जाँघ पर रखा तो मैने अपना हाथ उसके कंधों पर रख दिया! वो वैसा ही सुंदर था, जैसा तब था... बस अब थोडा मच्योर हो गया था, थोडा वेट गैन कर लिया था मगर फ़िर भी बॉडी मेन्टेन करके रखे हुये था!
"यार, तो तुझे शादी करनी ही नहीं चाहिये थी..."
"अब मैने सोचा, काम चल जायेगा... मगर साला क्या बताऊँ, एक मिनिट भी दिल नहीं लगता था!"
"हाँ, वो तो है... जब ख्वाहिश ही नहीं हो जो चीज़ खाने की, उसका स्वाद कहाँ अच्छा लगेगा..."
"हाँ, ये तो है... तो क्या तूने घर वालों को बता दिया?"
"क्या?"
"यही, कि तू गे है..."
"पागल है क्या... यार मैं अमरिका में थोडी हूँ... बस कोई ना कोई बहाना बना के काम चलाता हूँ..."
तभी ऊपर से एक दिलफ़रेब, दिलकश, दिलनशीं सी आवाज़ आयी!
"चाचू...??"
"हाँ, सोमू उठ गये? आओ, नीचे आ जाओ..."
और फ़िर दो गोरे पैरों के हसीन से तल्वे दिखे! मैने अपनी राइट तरफ़ सर उठाया तो एक व्हाइट ट्रैक, जिस पर साइड में ब्लैक लाइनिंग थी, दिखा... जो थोडा ऊपर उठा हुआ था, उसके अंदर से दो गोरे गोरे पैर दिखे, जिन पर बस रोंये थे, जो अभी बालों में तब्दील भी नहीं हुये थे!
"नीचे आ जाऊँ?"
"हाँ, आ जाओ... देखो, मेरे एक फ़्रैंड मिल गये है... आओ, मुह हाथ धो लो... चाय मँगवाता हूँ..."
फ़िर धम्म से सोमू मेरे बगल में नीचे उतर गया और समझ लीजिये कि मेरे जीवन में हसीन पल की तरह समाँ गया!
'सौम्यदीप सिँह चौहान' ये उसका पूरा नाम था! उस समय वो ११वीँ में था और जैसा नाम वैसा हुस्न... एकदम सौम्य! गुलाबी जिस्म, गुलाबी होंठ, हल्की ग्रे आँखें, सैन्ट्रली पार्टेड हल्के भूरे बाल, चौडा माथा, गोरे गाल, तीर की तरह आई-ब्रोज़, मोतियों की तरह दाँत, और संग-ए-मर्मर सा तराशा हुआ हसीन जिस्म! जब वो नीचे उतरा तो उसकी टी-शर्ट उठी रह गयी, जिस कारण मुझे सीधा उसका चिकना सा सपाट पेट दिखा! उसकी ट्रैक में आगे हल्का सा उभार था, जो जवान लडकों को अक्सर सुबह सुबह होता है! बिल्ट और बॉडी मस्क्युलर थी, गदराया हुआ बदन था... होता भी कैसे नहीं, साला डिस्ट्रिक्ट लेवल का स्विमिंग चैम्पियन जो था! मैने उससे हाथ मिलाया तो उसकी जवानी का अन्दाज़ हुआ! उसकी ग्रिप बढिया था, हाथ मुलायम और गर्म!
"चलो जाओ, जल्दी से ब्रश वगैरह कर लो... फ़िर चाय मँगाते हैं!" आकाश ने उससे कहा!
"जी चाचू..."
सौम्य ने झुक कर अपना बैग खोला और जब वो झुका तो उसकी टी-शर्ट और उठ गयी! अब उसकी पीठ और कमर दिखे! बिल्कुल चिकनी गोरी कमर, जिस पर से ट्रैक की इलास्टिक कुछ नीचे ही हो गयी थी और शायद मुझे उसकी चिकनी गाँड का ऊपरी हिस्सा दिखा रही थी!
जैसे ही वो गया, आकाश ने उठ के कैबिन को अंदर से बन्द कर दिया और खडा खडा ही मुझे देखने लगा!
"क्या हुआ?"
"कुछ नहीं..." उसने कहा!
मैं समझ गया कि वो क्या चाहता है... इसलिये मैं भी उसके सामने खडा हुआ! हम दोनों ने एक दूसरे को देखा और बिना कुछ कहे, बिना एक भी पल बर्बाद किये, मैं उसकी तरफ़ बढा और अपना एक हाथ उसके सर के पीछे रख कर और दूसरे को उसकी कमर में डाल के उससे चिपक गया! उसने मुझे अपनी बाहों में भरा और हम एक दूसरे के होंठ चूसने लगे! गहरी जुदायी के बाद मिलन वाला प्यासा सा मुह खोल खोल के ज़बान से ज़बान भिडा के भूखा, एक दूसरे में समाँ जाने वाला, एक दूसरे को खा लेने वाला चुम्बन... जिसमें हमारी आँखें बन्द थी, बदन आपस में टकराये हुए और चिपके हुये थे! दोनो एक दूसरे का लँड महसूस करते हुये बस गहरे चुम्बन की आग़ोश में डूब गये! हमने पाँच मिनिट के बाद साँस लेने के लिये चुम्बन तोडा और फ़िर एक और चुम्बन में खो गये जो उससे भी बडा था! उसका हाथ मेरी गाँड पर आया और मेरा उसकी गाँड पर चला गया!
"अभी तक वैसी ही है..." उसने कहा!
"हाँ, बस छेद फ़ैल गया है..."
"वो तो तुम खूब ऑइलिंग करवाते होगे ना..."
"तुम्हारा लँड बडा हो गया है..." मैने उसके लँड को सहलाते हुये कहा!
"हाँ, निखर गया है... तुम्हारा तो पहले ही बडा था..."
"सब याद है?"
"हाँ बेटा, तू भूलने वाली चीज़ तो था ही नहीं... याद है ना, वो बस में कैसे हुआ था?"
"हाँ यार, सब याद है... मैं भी तुझे भूला नहीं कभी..." कहकर मैने फ़िर अपने होंठ उसके होंठ पर रख दिये!
तभी दरवाज़े पर दस्तक हुई तो हम हडबडा कर अलग हो गये! मैं जल्दी से बैठ गया और आकाश ने दरवाज़ा खोल दिया! नमकीन सौम्य वापस आ गया था!
"यार, मैं ज़रा बोल के आता हूँ कि मैं यहाँ हूँ... वरना सब सोचेंगे कि मैं कहाँ गया..."
"ठीक है..."
आकाश ने एक्स्पोर्ट का काम किया हुआ था और भोपाल में बेस्ड था! सौम्य ग्वालियर के सिन्धिया स्कूल में था! आकाश को बनारस में साडी के किसी कारीगर से मिल के कुछ माल देखना था, इसलिये सौम्य भी साथ हो लिया क्योंकि उसका ननीहाल बनारस में था!
|