RE: Hindi Lesbian Stories समलिंगी कहानियाँ
जब मैं वापस आया तो चाय आ चुकी थी! सौम्य ने मुझे भी चाय दी और मैने आकाश के साथ साथ सोमू से भी खूब बात की! लौंडा रह रह कर मेरी जान ले रहा था! साले ने वही आकाश वाली चिकनाहट पायी थी! इन्फ़ैक्ट उससे भी ज़्यादा... क्योंकि उसके खून में तो बनारस की रेशमी लचक, देसी अल्हडपन और पुरवईया नमक भी था!
बनारस पहुँच कर भी मैं सोमू का हुस्न नहीं भुला पा रहा था... और ज़ाइन तो तिरछा तिरछा भाग रहा था! मैने आकाश का नम्बर ले लिया था, जब घर पर बोर होने लगा तो सोचा कि किसी घाट की सैर लूँ! मैं अक्सर नाव लेकर घंटों वहाँ घूमा करता था! कभी कभी बिल्कुल गँगा के दूसरी तरफ़ जाकर रेत पर चड्डी पहन के लेट जाता था! वहाँ भीड नहीं होती थी, बडा मज़ा आता था! साथ में दो पेग भी लगा लेता था और ठँडी ठँडी हवा जब चेहरे को छूती थी तो मौसम हसीन हो जाता था! और जब चड्डी पहन के रेत पर बैठता था तो ठँडी ठँडी रेत बदन गुदगुदाती थी! मैं घर से निकला ही था कि अचानक आकाश का फ़ोन आ गया! मैने मन ही मन प्रोग्राम बना के उसको भी अपने साथ नाव की सैर पर चलने को कहा तो वो तैयार हो गया! नाव मेरे घर के एक ड्राइवर की थी! उसके चाचा का लडका रिशिकांत चलाया करता था! वो अक्सर मुझे दूसरे किनारे छोड के वापस आ जाया करता था! फ़िर घंटे-दो घंटे, जितना मैं कहता, उसके बाद वापस आकर मुझे ले जाता था! मैं घर से निकल के जब अपनी मेल चेक करने के लिये एक कैफ़े में गया तो अपने मेल बॉक्स में ज़ायैद की बहुत सी मेल्स देखीं! मैने उसको एक अच्छा लम्बा सा जवाब दिया! वो कहीं घूमने के लिये गया हुआ था और सिर्फ़ मेरा नाम ले लेकर ही मुठ मार रहा था! ज़ायैद के साथ मुझे रिलेशनशिप अजीब सी लग रही थी! ना देखा, ना जाना... फ़िर भी डेढ साल से कॉन्टैक्ट! दिल से दिल लगा रखा था! पता नहीं कौन होगा कैसा होगा मगर फ़िर भी...
मुझे वहाँ से निकल के आकाश से मिलते मिलते ही पाँच बज गये! जब हम घाट पर पहुँचे, काफ़ी भीड हो चुकी थी और फ़िर रिशी को ढूँढ के जब तक हम दूसरी तरफ़ पहुँचे, सूरज नीचे जाने लगा था! चारों तरफ़ सुनहरी रोशनी थी! वहाँ तक पहुँचते पहुँचते आकाश ने तीन और मैने दो पेग लगा लिये थे और हम एक दूसरे के बगल में बैठ के कंधों पर हाथ रख के हल्के हल्के सहला रहे थे!
"और बताओ यार..." हमें वहाँ बात करने में कोई प्रॉब्लम नहीं थी क्योंकि रिशी हमसे काफ़ी दूर बैठा नाव के चप्पू चला रहा था! वो २२-२३ साल का हट्टा कट्टा देसी लौंडा था जो उस दिन एक ब्राउन कलर का ट्रैक पहने था और ऊपर एक गन्दी सी टी-शर्ट... जिसकी गन्दगी के कारण उसके कलर का अन्दाज़ लगाना मुश्किल था! मगर चप्पू चला चला के उसके हाथ पैर और जाँघों की मसल्स गदरा के उचर गयी थी! उसकी छाती के कटाव उसकी शर्ट के ऊपर से उभर के अलग से दिखते थे! उसके देसी चेहरे के नमकीन रूखेपन को मैं हमेशा ही देखा करता था! मैने देखा कि आकाश भी उसको देख रहा था!
"तुमने काफ़ी पैसा कमा लिया है..."
"हाँ यार..."
"शादी नहीं करोगे दोबारा?"
"अब क्या करूँगा यार... एक बार ही सम्भालना मुश्किल हो गया था..."
"हुआ क्या था? डिवोर्स क्यों ले लिया?"
"क्या बताऊँ यार... एक बार ठरक में एक नौकर से गाँड मरवा रहा था, साली बीवी ने देख लिया..."
"तो समझा देता उसको..."
"समझी नहीं साली... मैने भी सोचा, बात दबा देने के लिये डिवोर्स सही रहेगा..."
"तो तूने उसकी चूत चोदी कि नहीं?"
"हाँ, मगर बस कभी कभी... फ़ॉर्मलिटी में... इसलिये वो और ज़्यादा फ़्रस्ट्रेटेड रहने लगी थी..."
"तो कहीं और ले जा कर नौकर के साथ करता ना..."
"यार, साली सो चुकी थी... मैने सोचा, जल्दी जल्दी काम हो जायेगा... वरना मैने तो फ़ैक्टरी में ही जुगाड कर रखा था..."
"अब क्या कहूँ, चाँस चाँस की बात है... वैसे भी अगर तुझे सही नहीं लग रहा था तो आज नहीं तो कल बात बिगडनी ही थी..."
"हाँ, वो तो है... अच्छा है, अब मैं अपने आपको ज़्यादा फ़्री महसूस कर रहा हूँ!"
"हाँ, वो तो लगता है... शादी से फ़्रीडम खत्म हो जाती है..."
"तो उस नौकर के अलावा भी कोई लडके फ़ँसाये तूने, मेरे बाद?"
"पूछ मत, गिनती नहीं है... मैं तो अपने साले पर भी ट्राई मारता... साला, बडा चिकना सा था... मगर उसके पहले ही काँड हो गया!"
"पहले ही साले को फ़ँसा लेता तो उसकी बहन भी शक़ नहीं करती और अगर देख भी लेती तो अपने भाई के कारण किसी को कहती नहीं!"
"हाँ, अब क्या कहूँ... जो होना था, हो गया..."
"वैसे तेरी बॉडी अब और गठीली हो गयी है..." मैने उसकी जाँघ पर हाथ रख के उसका घुटना हल्के हल्के से सहलाना शुरु कर दिया!
"अच्छा? मगर तू तो अभी भी वैसा चिकना ही है... हा हा हा..."
"वो बस वाली घटना याद है?"
"हाँ... और मुझे तो उसके बाद वाला सीन ज़्यादा याद आता है..."
"हाँ, वो तो असली सीन था ना... इसलिये तुझे याद आता है... थैंक्स यार, तू अभी तक भूला नहीं..."
जब हम दूसरे किनारे पर पहुँचे तो हमने एक एक पेग और लगा लिया!
"आज तेरे साथ पीने में मज़ा आ रहा है..." आकाश ने कहा!
"तो मज़ा लो ना... इतने सालों बाद मिले हैं, मज़ा तो आयेगा... क्या चाँस था यार, वरना ट्रेन में कोई ऐसे कहाँ मिलता है..."
"हाँ, मिलना था... सो मिल गये..."
फ़िर हम बॉटल और ग्लास लेकर नाव से उतर गये और रेत की तरफ़ चलने लगे! अब अँधेरा सा होने लगा था, मैने रिशी से कहा!
"तुम जाओ, डेढ-दो घंटे में आ जाना..."
"अच्छा भैयाजी, आ जाऊँगा..." कहकर वो नाव लेकर मुड गया!
"नहाना भी है क्या?" आकाश ने मुझसे पूछा! मगर मेरे जवाब के पहले ही अपने कपडे उतारने लगा और बोला "मैं तो सोच रहा हूँ, थोडा ठँडे ठँडे पानी में नहा लूँ..."
उसने अपनी शर्ट और बनियान उतार दिये! फ़िर अपनी पैंट खोली तो अंदर से उसकी इम्पोर्टेड शॉर्ट्स स्टाइल की चुस्त चड्डी दिखी! उसका जिस्म सच में काफ़ी मस्क्युलर होकर गदरा गया था! पिछली बार वो चिकना सा नवयुवक था, इस बार वो हसीन जवान सा मर्द बन गया था! उसकी जाँघें मस्क्युलर हो गयी थी! उसने अपनी एक जाँघ को स्ट्रैच किया और अपनी चड्डी की इलास्टिक अड्जस्ट की!
"तू भी आ जा ना..." उसने मुड के मुझसे कहा!
मैने भी बिना कुछ कहे अपने कपडे उतारना शुरु कर दिये! मैं उस दिन एक व्हाइट कलर की पैंटी पहने था जिसमें मेरा लँड खडा होकर उफ़ान मचा रहा था! पहले हम साथ खडे खडे सामने पानी देखते रहे, फ़िर हमारे हाथ एक दूसरे की कमर में चले गये... और बस फ़िर शायद आग लग गयी! हम घुटने घुटने पानी में गये और वहीं बैठ गये! फ़िर नहीं रहा गया तो एक दूसरे की तरफ़ मुह करके लेटे और फ़िर एक दूसरे के होंठों का रस निचोड निचोड के पीने लगे! उसने देखते देखते मेरी चड्डी में पीछे से हाथ डाल दिया तो मैने आगे उसका लँड सहलाना शुरु कर दिया! वो अपनी जाँघ को मेरे ऊपर चढा के मुझे अपने बदन से मसल रहा था! मैं कभी उसकी जाँघ, कभी पीठ तो कभी लँड मसल रहा था! हम ठँडे ठँडे पानी में लेटे हुये थे! उसकी बदन में सरप्राइज़िंगली ज़्यादा बाल नहीं आये थे... बस जाँघों पर हल्के से, छाती पर हल्के से, और हल्के से गाँड और झाँटों पर...
"चल, किनारे पर चल..." मैने उससे कहा और हम रेत पर लेट गये और एक दूसरे में गुथ गये!
उसने अपनी पैंट की पैकेट में कुछ ढूँढा!
"क्या ढूँढ रहा है?"
"ये..." उसने एक तेल की शीशी और कॉन्डोम का पैकेट दिखाया!
"अच्छा, पूरा इन्तज़ाम कर रखा है तुमने?"
"इतने दिनों के बाद ये तो होना ही था..."
"हाँ, मैं भी चाह रहा था... जब से आज तुमसे मिला, बस मेरा ये ही दिल कर रहा था!"
मैने उसके होंठों पर फ़िर होंठ रख दिये! मगर वो अपने लँड पर कॉन्डोम लगा रहा था!
"आज, पहले मैं लूँगा..."
"नहीं यार, पहले मुझे दे ना... तेरी गाँड को मैने बहुत याद किया है..." और मैने पलट के अपनी गाँड उसकी तरफ़ कर दी! फ़िर अपना एक पैर मोड कर उसकी जाँघ पर ऐसे रखा कि मेरी गाँड खुल गयी! मैने अपना सर मोड लिया और अपने हाथ उसकी गरदन में डाल दिये और अपनी गाँड को हल्के हल्के अपनी कमर मटका के उसके लँड पर रगडने लगा! उसने अपने लँड को अपने हाथ से पकड के मेरे छेद के आसपास लगाये रखा!
"इस बार सोच रहा हूँ, किसी लौंडे से शादी कर लूँ..."
"किससे करेगा?"
"तू कर ले..."
"ना बाबा ना... और कोई कमसिन सा ढूँढ ले, ज़्यादा दिन साथ निभायेगा..."
"तू ढूँढ दे ना..."
"कोई मिलेगा तो बताऊँगा... फ़िल्हाल काम चलाने के लिये मैं हूँ..."
"तूने भी काफ़ी लौंडे फ़ँसा रखे होंगे?" उसका सुपाडा मेरे छेद पर हल्के हल्के आगे पीछे होकर दब रहा था, जिससे मेरा छेद कुलबुला के खुल रहा था! मेरी चुन्नटें फ़ैलना शुरु कर रहीं थीं!
"हाँ, बहुत फ़ँसाये..." मेरे मन में ना जाने क्या आया, मैने उसको ज़ायैद के बारे में भी बताया!
"सही है... ऐसी फ़्रैंडशिप भी एक्साइटिंग होती है और ब्लाइंड डेट की तरह एण्ड में पता नहीं बन्दा कैसा हो..."
"हाँ यार, ये तो रिस्क है ही..." उसने मेरे निचले होंठों को अपने दाँतों से पकड के अपने सुपाडे को मेरी गाँड में घुसाया और मैने हल्के से 'आह' कहा!
"मज़ा आया ना?"
"हाँ, अब मुझे सिर्फ़ इसी में मज़ा आता है जानम..."
"अगर पता होता, तुझसे तब ही शादी कर लेता..."
"हाँ, तब सही रहता... बाकि सब लफ़डे से बच जाता..."
"हाँ और हम दोनो आराम से रहते..."
"हाँ वो तो है... मगर अब मेरा और लोगों से भी कमिटमेंट है ना... मैं इस तरह सिर्फ़ एक का बन के नहीं रह सकता..." मैने उससे कहा! उसने अब तक आधा लँड मेरी गाँड में घुसा के, मेरी वो जाँघ जिसका पैर उसकी जाँघ पर मुडा हुआ था, अपने मज़बूत हाथ से पकड ली... फ़िर उसने अपनी गाँड पीछे कर के एक ज़ोरदार धक्का दिया और उसका लँड मेरी गाँड में पूरा घुस गया!
"अआहहह... अभी भी दम है तेरे में..."
"हाँ, अब ज़्यादा एक्स्पीरिएंस और दम है... तब तो नया नया था..."
"इसीलिये तो लौंडे मच्योर मर्दों को ढूँढते हैं राजा..."
"हाँ..."
फ़िर वो सीधा हो गया और अपनी टाँगें फ़ैला के चित लेट गया तो मैं समझ गया कि मुझे उसके ऊपर बैठ कर सवारी करनी है! मैं उसके ऊपर बैठ गया और उसका लँड अपनी गाँड में खुद ही ले लिया और अपनी गाँड ऊपर नीचे करने लगा!
वो अपनी गाँड उठा उठा के मेरी गाँड में धक्के लगा रहा था! मैने उसकी छाती पर अपने दोनो हाथ रखे हुये थे!
"आह... हाँ... आकाश हाँ... आकाश... हाँ... बहु..त अच्छा ल..ग र..हा है... और डालो... मेरी गाँड में लँड डाल..ते र..हो..."
"आह... मेरी रानी ले ना... डाल तो रहा हूँ... तेरी गाँड मारने में बडा मज़ा आ रहा है..." उसने कहा और खूब गहरे गहरे धक्के देता रहा! कभी कभी वो मुझे बिल्कुल हवा में उछाल देता!
उसके बाद मैने उसको सीधा लिटाया और उसके पैर उसकी छाती पर ऐसे मुडवा दिये कि उसके दोनो घुटने उसके सर के इधर उधर थे! उसकी गाँड बिल्कुल मैक्सिमम चिर गयी थी! मैने उसके छेद पर मुह रखा और उसको एक किस किया! फ़िर अपनी ज़बान से उसकी गाँड को खोलने लगा! जब रहा ना गया तो मैं वैसे ही अपने घुटनों के बल वहाँ उसी पोजिशन में बैठ गया और अपना लँड उसकी गाँड की फ़ैली हुई दरार में रगडने लगा! मैने उसके छेद पर सुपाडा लगाया जो धडक रहा था! मैने दबाया तो उसकी साँस रुकी!
"साँस क्यों रुक गयी? यार, लगता है इस साइज़ का नहीं मिला कोई..."
"हाँ, मगर कम मिलता है इसीलिये तो याद रहा इतने साल... थोडा तेल लगा ले..."
"मैने उसकी गाँड पर और अपने लँड पर तेल लगाया! फ़िर अपना सुपाडा उसके छेद पर रखा और हल्के से दबाया और दबाता चला गया! जब मेरा दबाव लगातार बना रहा तो उसकी गाँड फैलने लगी और आखिर मेरा सुपाडा 'फ़चाक' से उसकी गाँड में घुसा!
"उहहह..."
"क्या हुआ?"
"हल्का सा दर्द..."
"बस, एक दो धक्के में सही हो जायेगा..."
"हाँ" उसने कहा!
मैने घप्प से अपना लँड उसकी गाँड में गहरायी तक सरका दिया तो वो हल्का सा चिहुँका!
"अबे... क्या कमसिन लौंडे की तरह उछल रहा है..." मैने कहा और लँड बाहर खींचा और फ़िर जब मैं लँड अंदर बाहर करने लगा तो उसकी गाँड अड्जस्ट हो गयी!
"आजा... तू नहीं बैठेगा लँड पर?"
इस बार मैने उसको अपने लँड पर बिठा लिया और उसको उछालने लगा!
अभी कुछ ही धक्के ही हुये थे कि हमें अपने बगल में कुछ आहट सी हुई! देखा तो बिल्कुल नँगे रिशिकांत को अपने नज़दीक खडे पाया! हम उसी पोजिशन में रह गये!
रिशिकांत हमारे बगल में खडा अपने खडे हुये लँड की मुठ मार रहा था! उसका नँगा बदन दूर से आती रोशनी में चमचमा रहा था! चाँदनी में दमकता उसका जिस्म पत्थर की मूरत की तरह लग रहा था! उसका चेहरा कामुकता से सुन्न पड चुका था! आँखों पर बस वासना की चादर थी! उसकी टाँगें हल्की सी फ़ैली थी, बदन के मसल्स दहक रहे थे! आकाश वहीं मेरे लँड पर बैठा रह गया! उसने रिशी को बुलाया!
"आ जाओ, इतनी दूर क्यों हो... इधर आ जाओ..."
रिशी उसकी तरफ़ आया और उसके इतना नज़दीक खडा हो गया कि रिशी का लँड उसके कँधे पर था!
"परेशान क्यों हो... आओ, तुम भी मज़ा ले लो..." कह कर आकाश ने अपने कंधे पर रखे उसके लँड को अपने गालों से सहलाया, जिसको देख के मैं भी मस्त होने लगा! अब मैने आकाश की गाँड में धक्के देना शुरु किया और उसने रिशी का लँड चूसना शुरु कर दिया! एक्साइटमेंट के मारे रिशिकांत के घुटने मुड जाते थे! वो अपने घुटने मोड कर गाँड आगे-पीछे करके आकाश के मुह में अपना लँड डालता और निकलता था! रिशिकांत का लँड उसके बदन के हिसाब से ज़्यादा बडा या ज़्यादा मोटा नहीं था मगर था देसी और गबरू और ताक़तवर! उसने आकाश के सर को अपने दोनो हाथों में पकड लिया और उसको अपने लँड पर धकाधक मारने लगा!
मैने आकाश की कमर पकड ली! फ़िर रिशी ने अपना लँड उसके मुह से निकला!
"आप भी कुछ करो ना..."
मैने उसका लँड देखा वो सीधा सामने हवा में खडा था और आकाश के थूक से भीगा हुआ था! मैने उसको अपने ऊपर खींचा और अपनी छाती पर घुटने इधर उधर कर के बिठा लिया और आकाश के थूक में भीगे उसके लँड को चाटा तो उसकी देसी खुश्बू से मस्त हो गया!
"तू मेरी गाँड में अपना लँड डाल... ऐसे ही डाल सकता है क्या?"
"हाँ, डाल दूँगा..." मेरे लँड पर आकाश बैठा था मगर फ़िर भी मैने अपने घुटने मोड लिये! आकाश की पीठ मेरी तरफ़ थी! रिशी मेरी फैली हुई जाँघों के बीच आ गया! उसने अपने घुटने मोड रखे थे! फ़िर मुझे अपनी गाँड पर उसका सुपाडा महसूस हुआ! क्योंकि वो आकाश के सामने पड रहा था, आकाश ने उसको अपनी बाहों में ले लिया और उसके होंठ चूसने लगा मगर रिशी का ध्यान नीचे था! उसने अपने हाथ से अपना लँड मेरी गाँड पर लगाया! आकाश की गाँड से काफ़ी तेल बह कर मेरी गाँड तक आ चुका था इसलिये कोई दिक्कत नहीं हुई! फ़िर रिशी का लँड ज़्यादा बडा भी नहीं था! साथ में उसकी देसी अखाडे वाली ताक़त... उसने घपाघप दो तीन धक्कों में अपना लौडा मेरी गाँड के अंदर खिला दिया! उसने अपना एक हाथ अपने चूतडों पर और दूसरा आकाश की पीठ पर रख लिया और आराम से आकाश के होंठ चूस चूस कर मेरी गाँड में अपना लँड डालने लगा!
"टट्टी निकाल दूँगा यार, तेरी गाँड से... टट्टी निकाल दूँगा..."
"अआह... हाँ, निकाल दे..." अब वो धीरे धीरे जोश में आ रहा था! तमीज़ के दायरे से बाहर हो रहा था! उसका मर्दानापन जाग कर उसके लडकपन को दूर कर रहा था!
"बेटा... मर्द का लौडा लिहिओ तो गाँड से टट्टी बाहर खींच देई..." उसने देसी अन्दाज़ में कहा!
"तो निकाल देओ ना..."
"हाँ साले, अभी अपने आपही हग देओगे... चल घोडा बन ज़रा... तू हट तो..." उसने आकाश को मेरे ऊपर से हटाया और मुझे पलटवा के घोडा बनवा दिया! फ़िर उसने अपने दोनो हाथ मेरे कमर पर रखे और मेरी गाँड के अंदर सीधा अंदर तक अपना लँड डालने लगा! कुछ देर में वो धकधक मेरी गाँड मारने लगा! आकाश बस बगल में अपना लँड मेरी कमर में चिपका के क्नील हो गया और रिशी के बाज़ू सहलाने लगा!
"क्या देख रहा है? है ना कररा माँस..."
"हाँ... बहुत..."
"रुक जा बेटा, अभी तेरी गाँड में भी पेलेंगे... गाँडू साले, बडी देर से तुम दोनो को साइड से देख रहा था..."
उसने थोडी देर के बाद आकाश को मेरे बगल बिल्कुल मेरी तरह घोडा बना लिया और कभी उसकी मारने लगता कभी मेरी! साले में बडा दम था! नाव खे खे कर उसने सारा ज़ोर अपने लँड में जमा कर लिया था! सच में जब उम्मीद के बाद भी उसका माल नहीं झडा और उसके धक्के तीखे होकर अंदर तक जाने लगे तो मेरी टट्टी ढीली होने लगी!
"क्यों बेटा गाँडू, टट्टी हुई ना..." उसने कहा!
"हाँ..."
"रुक, तू इधर आ... जरा लौडा मुह में ले...." उसने आकाश को खींचा और अपना लँड मेरी गाँड से निकाल के आकाश के मुह में देने लगा! मगर तभी शायद उसका पतन ट्रिगर हो गया और वो चिल्लाया!
"अआह मा...ल..." कहकर उसने आकाश का सर पकड लिया और उसके मुह में ही अपनी धार मार दी!
"अब इसको चटवा..." उसके कहने पर मैने आकाश के मुह पर मुह रख कर रिशिकांत का नमकीन देसी वीर्य उसके मुह से अपनी ज़बान से चाटा! रिशिकांत की देसी जवानी तो उस शाम का बोनस थी! हम दोनो उससे मस्त हो गये थे! फ़िर हमने अपना अपना माल झाडा और कपडे पहन के वापसी का सफ़र पकड लिया!
उस रात मैने आकाश को अपने साथ ही सुला लिया! हम लिपट के सोये, रात काफ़ी बातें हुई! आकाश ने मुझे बताया कि उसको अक्चुअली थ्रीसम बहुत पसंद है और अगर कोई और मिले तो मैं उसको बुला सकता हूँ! मैने भी कह दिया कि मिलेगा तो बता दूँगा! अगली सुबह वो चला गया! मगर रात भर हमनें खूब बातें की!
उधर रिशिकांत का मज़ा चखने के बाद मैने शिवेन्द्र को देखा तो वो भी कामुक लगा! वो करीब २७ साल का था जिसकी शादी हो चुकी थी मगर टाइट कपडे पहनता था!
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