महारानी देवरानी
06-06-2023, 03:44 PM,
#42
RE: महारानी देवरानी
महारानी देवरानी


अपडेट 20

मैं न घर की रहूंगी न घाट की।

शाम को मेले में जाने की तैयारी करने देवरानी कक्ष में जाती है और उसे कमला दिखायी है देती है जो हाथ में शेर सिंह का पत्र ले कर खड़ी थी। देवरानी उसके हाथ से पत्र ले लेती है और कमला के सामने उसे पढने लगती है।

प्रिया देवरानी!

मेरा ये अंतिम पत्र है तुमको! मैं इसके बाद में और पत्र नहीं भेजूंगा। मुझे लगता है के तुम हमारे प्यार को समझ नहीं पा रही हो। इसलिए तुम्हे मैं आखिरी 7 दिन देता हूँ, मैं रविवार के दिन नदी किनारे तुम्हारा इंतजार करूंगा! अगर तुम नहीं आती हो तो मैं समझूंगा कि तुम्हारी मेरे में कोई रुचि नहीं है और आ गयी तो मेरे साथ मेरे राज्य चलोगी।

बस केवल 7 दिन और इन्तजार करूँगा। में और ज्यादा समय व्यर्थ नहीं कर सकता।

शेरसिंह


[Image: md-lotus.jpg]

ये पढ़ कर देवरानी कमला से बोली।

देवरानी: सुनो शेर सिंह ने 7 दिनों का समय दिया है निर्णय लेने का।

कमला: कौन-सा निर्णय?

देवरानी: यही के मुझे शेरसिंह के साथ जाना है या नहीं।

कमला: हय दय्या हम सब को छोड़ कर चली जाओगी।

देवरानी: अब प्यार पाने के लिए तो...

कमला: अरे मैंने रास्ता सुझाया है और मुझे ही कह रही हो।

देवरानी: तो क्या कर सकते हैं?

कमला: ठीक है मुझे तो छोड़ देना, क्या अपने बलदेव को छोड़ के तुम खुश रह पाओगी वहा?

देवरानी: नहीं! कभी नहीं, बाद में उसे भी बुला सकते हैं हम।


[Image: KAMLA-DEV.jpg]

कमला: क्या बलदेव इससे खुश होगा के उसकी माँ जो पतिवर्ता है, एक देवी जैसी है, वह इतने सालो ता दुख उठाई है और आज एक पुरुष के लिए अपने पुत्र को छोड़ रही है।

देवरानी: मेरे पास अन्य कोई चारा भी तो नहीं है।

कमला: अपने आप में झांको और अपने पास जो है उसी में खुशिया तलाशो, तुम्हें हर खुशी अपने पास मिलेगी और ये कह कर कमला चली जाती है।

देवरानी: (मन में) हाँ तुम क्या कहना चाहती हो में समझ रही हूँ, पर क्या ये पाप नहीं होगा, ये बात तो सही है। दुसरा तो दुसरा ही होता हैं। आज कैसे शेर सिंह ने कहा मुझे और समय व्यार्थ नहीं करना हैं मेरे उपर, कल वह अगर मेरा साथ छोड़ दे तो मैं न घर की रहूंगी न घाट की।

कमला देवरानी के कक्ष से जाते हुए... 

कमला: (मन में) बेटा बलदेव तूने 7 दिन की बात लिख कर अपने पैरो पर कुल्हारी मार ली है।

"अगर 7 दिन के अंदर देवरानी को तू नहीं पटा पाया तो वह शेर सिंह से मिलने जाएगी।"

"अगर उसे शेर सिंह चाहिए तो हमें किसी और को वहा खड़ा करना पड़ेगा और तो और बलदेव ने तो खुद इस बात की प्रतिज्ञा ली है।"

सूर्य तेज से ढल रहा था उसी के साथ घाटराष्ट्र के लोग भी आज बहुत जल्दी से अपना काम निपटा कर बाज़ार जाने की तैयारी कर रहे थे क्यू के आज बाज़ार में हर साल की तरह सालाना मेला लगा था जिस्मे तरह-तरह झूले, बाइस्कोप खाने की एक से एक मिठाईया और पकवान थे, नृत्य समारोह थे और इससे भी बढ़कर कोई रोचक चीजे थी, घाटराष्ट्र के नागरिक अपने खेतो से निकल कर घाटराष्ट्र के मुख्य बाज़ार में चमकते मेले की और बढ़ रहे थे।


[Image: 1893.jpg]

इधर देवरानी अच्छे से अपने को रगड़-रगड़ के स्नान करती है और एक सफेद साड़ी और लाल ब्लाउज पहन लेती है, माथे पर सिंदूर, पैरो में पायल, होठों पर लाल सुरख लाली लगा लेती है और नीचे खड़े रह कर आवाज लगाती है।

देवरानी: बलदेव चलो भी।

बलदेव भी सज सवार का तैयार था और नीचे आता है देवरानी उसे देख सोच में पड़ जाती है।

देवरानी: तुमने ये मजदुरो वाला परिधान क्यू पहना है?

बलदेव: क्यू के एक युवराज के तौर पर मेले में उतना मजा नहीं मिलेगा जितना एक आम नागरिक ले सकता है।

देवरानी: पर?


[Image: eliza-raj1.jpg]

बलदेव: मां...मैं नहीं चाहता के हमारे वहाँ जाने से वहा के आम लोगों का मजा किरकिरा हो और हमें प्रतिमिकता दी जाए. अगर हम अपने भेस में गए तो वह तो हमारे लिए मेला खाली कर देंगे और हमें 10 मिनट भी नहीं लगेंगे और हम पूरा मेला घूम लेंगे और बेचारी जनता की खुशियों के बीच रुकावट बन जाएंगे।

देवरानी: तुम कितना सोचते हो लोगों के बारे में!

बलदेव: हाँ भले ही मेरे बारे में कोई नहीं सोचता और मुस्कुराता है।

बलदेव की बात देवरानी को कांटे की तरह चुभती है।

बलदेव: और किस सोच में हो? तुम इस चादर को ओढ़ घूंघट कर लो तुम्हें भी कोई नहीं पहचान पाएगा।

देवरानी एक बड़ा-सा सफ़ेद चादर ले कर ओढ़ लेटी है।

देवरानी मुझ द्वार से बाहर जाने लगती है तो बलदेव उसे रोक देता है।

बलदेव: माँ आज हम आगे से नहीं पीछे के रास्ते से जाएंगे और वह भी बिना रथ के।

ये सुन कर देवरानी हस देती है फिर बलदेव भी हंसने लगती है दोनों बाहर आ कर पैदल नदी की ओर चलने लगते है क्योंकि मेला और बाज़ार नदी के उस पार था और आज मेले के वजह से इस पार से उस पारजाने ने के लिए आज नदी पर नाव भी थी।

दोनो बाते करते हुए चलते हैं।

देवरानी: "बलदेव अगर में तुम्हें छोड़ के कहीं और चली जाउ तो?"

बलदेव: मैं भी तुम्हारे पीछे-पीछे वहा आ जाऊंगा।


[Image: bq-0.jpg]

देवरानी: इतना चाहता है अपनी माँ को!

बलदेव: हाँ हद से ज्यादा!

देवरानी: अगर तू मुझे छोड़ कर कल किसी रानी के चक्कर में आ कर मुझसे दूर चला जाए तो?

बलदेव: मैं अपना जान देना गवारा करूंगा पर जाना नहीं!

देवरानी: अगर वह तुझ से प्रेम करती होगी और तू भी उस से प्रेम करता होगा तो?

बलदेव: तो भी नहीं। बिलकुल नहीं।

देवरानी मन में: सच में कितना पवित्र दिल है इसका और इसका प्रेम भी।

बलदेव: और माँ मैं तुम मुझे छोड़ के जाओ ऐसी नौबत ही नहीं आएगी।

देवरानी: वह कैसे भला।

बलदेव: मैं तुम्हें इतना प्यार दूंगा जिसे छोड़ कर जाना तुम्हारे लिए संभव ही नहीं होगा।

देवरानी: अच्छा जी... !

बलदेव: हाँ जी!

वो नदी के पास पहुच जाते है और देवरानी वहा खड़ी हो कर नदी का मंजर देख कर अंगड़ाई लेती है।

बलदेव देवरानी के खूबसूरत गोल आकारके स्तन और गहरी नाभी देख कर हिल जाता है और फिर चल कर दोनों एक नाव वाला जो आवाज लगा कर कह रहा था मेला चलो। दोनों जा कर उस नाव में बैठें जाते हैं। देवरानी नाव में बैठी हुई थी उसके सामने बलदेव बैठा था और बलदेव देवरानी को देखता है। देवरानी को बलदेव का आधा चेहरा दिख रहा था। बलदेव के ऐसे देखने से देवरानी को डर-सा लगता है।

देवरानी: ( (मन में-ये बलदेव मुझे ऐसे देखता है जैसे मझे कभी देखा ही नहीं है, कोई इस बालक को बताता क्यों नहीं है की में माँ हूँ उसकी पत्नी नहीं) और खुद अपनी सोच से लज्जा जाती है।



[Image: NAAV1.jpg]
दोनो को कोई और भी था जो देख रहा था। वह और कोई नहीं नाव वाला था, जो अपने नाव केचप्पू मारते हुए तेज़ गति से नाव भगा रहा था।

नाविक: अरे उस्तादआप दोनों बड़े शर्मीले लगते हैं।

बलदेव जैसे सपनों से जगते हुए!

बलदेव: मतलब?

नविक: यही के आप दोनों को नई-नई शादी हुई है लगता है इसीलिए आप दोनों इतनी दूर-दूर बैठे हो।

बलदेव और देवरानी की आँख फटी की फ़टी रह जाती ते हैं उनका ये हाल था के उन दोनों के रोम-रोम लज्जा से कांप रहे थे।

बलदेव ऐसी स्थिति में था कि वह कह भी नहीं सकता था कि मैं युवराज हूँ और ये मेरी माँ देवरानी है।

बलदेव: हम्म छोड़ो भी यार!


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नाविक: अमा यार कैसे छोड दे। शादी कोनु बार-बार होती है। एक बार की मिली है जिंदगी, खूब ऐश कर लेयो।

बलदेव: सिर्फ हमम करता है मजबूरी में।

या इस बात का मतलब है कि बलदेव ने अपने माँ के साथ ऐश करने के लिए हम्म कह के हामी भर दी थी, देवरानी का गला सूख जाता है और दूसरी तरफ वह साथ में उत्तेजित भी हो जाती है।

नविक: अमा यार क्या सोचो हो भैया। जय के बैठा अपना घरवाली के बगल में!

अब स्थिति ऐसी थी के बलदेव से न जाते बन रहा था और न बैठते बन रहा था। वह सोचा नाविक की बात मान लेने से कहीं बेहतर है वह चुप बैठ जाए!


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बलदेव अब उठ के देवरानी के बगल में बैठ जाता है।

नाविक: ई हुई ना बात बबुआ।

या नाविक गाता है "ऊ माँझी रे!" माँझी रे! "तोरे बीना ई दिल न लगी रे!"

नाविक: अरे र् भाई साहब तम दो तो ऐसे बैठे हो जैसे सांप सूंघ लिया हो? ई वातावरन का आनंद लियो, तनिक करीब हो कर चिपक के बैठो जैसे ठंडी ज्यादा हो " और फिर वह हसता है।

बलदेव अब तक समझ गया था के बलदेव के लिए मांझी भगवान का अवतार था जो उसकी मदद कर रहा था।

बलदेव मौका न गवाते हुए अपने माँ के कांधे प हाथ रख कर चिपक जाता है।

देवरानी: (मन में) उह्ह्ह मन में हलचल-सी थी।


[Image: NAAV4.jpg]

नाविक: भैया कभी भाभी जी के लय गाना गाये हो के नहीं?

बलदेव: अब सहज महसूस करते हु"नहीं अभी तक तो नहीं!"

नविक: तो अभी गई देव, मौका भी है दस्तूर भी।

बलदेव: पर मुझे। गीत याद नहीं कोई!

नाविक: चलो तो फिर हमारे साथ गाये लो!

बलदेव: ठीक है भैया!

नाविक: ओ मांझी रे! मांझी रे! तोरे बिन ए दिल न लगी रे!

बलदेव अब पनी माँ को आंखों में देख दुहराता है!

बलदेव: ओ मांझी रे! मांझी रे! तोरे बिना दिल न लगी रे!

नविक: बढिया गाए!

बलदेव देवरानी की तरफ देखता है तो पाता है वह उसे घूर रही है।

और उसे ऐसे घूरते देख बलदेव उसके दूध में फिर खो जाता है और तभी नदी का किनारा आ जाता है तो देवरानी खामोशी से उतर कर दूसरी तरफ खड़ी हो जाती है!

नविक बलदेव को आवाज़ देता है और उसके कान में कुछ कहता है फिर बलदेव उसे कुछ सोने के सिक्के देता है और बलदेव रानी पास आ जाता है।

तभी नाविक चप्पू मारते हुए बोलता है "भैया अगले साल लगने तक आपके जुडवे बच्चे होंगे और उनके साथ तु म अगले मेले में आओगे।"

बलदेव और देवरानी चुप चाप धीरे-धीरे चल रहे थे...

जारी रहेगी
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RE: महारानी देवरानी - by aamirhydkhan - 06-06-2023, 03:44 PM

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