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RE: Hindi Lesbian Stories समलिंगी कहानियाँ
दिल अपना और प्रीत पराई--पार्ट--१
बाहर मैदान साफ़ था! मैं उसके निकलने के पहले ही बाहर आ गया! अब बाहर सूनसान था! अंदर हॉल से आवाज़ें आ रहीं थी! मैने मैरिज़ हॉल के रिसेप्शन की तरफ़ देखा, वहाँ एक टी.वी. ऑन था और २-३ लोग बैठे थे… उसमें आसिफ़ भी था! जब मैं उस तरफ़ बढा और टाँगें आगे पीछे हुई तो गाँड से सोनू का वीर्य रिसने लगा और मेरी चड्डी पीछे से गीली होने लगी! मगर मुझे पता था, वो जल्दी ही अब्सॉर्ब हो जायेगा, जैसा अक्सर होता था! चलने में मुझे गाँड में सोनू के लँड की गर्मी भी महसूस हुई! आसिफ़ ने मुझे देखा… उसकी नज़रों में कशिश थी! वो अपने मोबाइल पर बात कर रहा था! बात करते करते मुस्कुराता तो सुंदर लगता! बैठने से उसकी जाँघें टाइट हो गयी थीं और अब उसके टाँगों के बीच उभार दिख रहा था! मैं उसकी जवानी पर एक नज़र डालते हुये उससे थोडी दूर पर बैठ गया! बाकी दोनो मैरिज़ हॉल में काम करने वाले बुढ्ढे थे, जो टी.वी. देख रहे थे! ना मुझे उनमें, ना उनको आसिफ़ में कोई इंट्रेस्ट था!
आसिफ़ ने सोफ़े पर बैठे हुए, बात करते करते अपनी दोनो टाँगें सामने फ़ैला लीं, तो मुझे उसका जिस्म ठीक से नापने को मिला! उस पोजिशन में उसकी ज़िप उभर के ऊपर हो गयी थी! मौसम में हल्की सी सर्दी थी इसलिये उसने एक स्लीवलेस स्वीट टी-शर्ट भी ऊपर से पहन ली थी! फ़ोन डिस्कनेक्ट करने के बाद भी वो वैसे ही बैठा रहा! उसने मुझे देखते हुये देखा, दोनो बुढ्ढे चले गये थे और हम अकेले ही रह गये थे!
“आप सोये नहीं?”
“अभी कहाँ सोऊँगा…”
“अरे, आराम से सो जाईये…” अभी बात आगे बढी भी नहीं थी कि कहीं से उसका एक कजिन आ गया, जो खुद भी उसी की तरह खूबसूरत था! मैने उससे भी हाथ मिलाया! उसका नाम वसीम था!
“तो तुम अलीगढ में पढते हो?”
“हाँ, दोनो एक ही क्लास में हैं…”
“अलीगढ आऊँगा कभी…”
“हाँ आईये, हमारे ही साथ हॉस्टल में रुकियेगा…”
“अच्छा? वहाँ प्रॉब्लम नहीं होगी?”
“नहीं, हम दोनो अकेले एक रूम में रहते हैं! कोई प्रॉब्लम नहीं होगी!” वसीम बोला!
“वरना, ये कहीं और सो जायेगा…” आसिफ़ बोला!
“ज़रूर प्लान करिये!”
फ़िर दोनो में कुछ खुसर फ़ुसर हुई! कभी दोनो मुझे देखते, कभी मुस्कुराते! मुझे तो दूसरा शक़ हो गया! मगर बात कुछ और थी… मैने पूछ ही लिया!
“क्या हुआ?”
“कुछ नहीं…”
“अरे पूछ ले ना भैया से…”
“जी वो… आपके आपके पास सिगरेट है?”
“हाँ है ना… लो…”
“यहाँ???”
“हाँ… यहाँ कौन देखेगा इतने कोने में… या चलो, ऊपर मेरे रूम में चलो…”
“चलिये, आपको दूसरे रूम में ले चलते हैं…”
जब रूम में सिगरेट जली तो लडके और ज़्यादा फ़्रैंक हो गये! हमने वहाँ भी टी.वी. ऑन कर दिया… वसीम बार बार चैनल चेंज कर रहा था!
“अबे, क्या ढूँढ रहा है?”
“देख रहा हूँ, कुछ ‘नीला नीला’ आ रहा है या नहीं…”
“अबे, यहाँ थोडी देगा?”
“अबे, पाण्डे यहाँ भी देता है केबल कनेक्शन… साला अक्सर रात में लगा देता है…”
लडके ब्लू फ़िल्म ढूँढ रहे थे अगर उनको मिल जाती तो मेरे तो मज़े आ जाते!
“साले ठरकी है क्या… रहने दे, भैया भी हैं!”
“अब क्या, अब तो अम्बर भैया अपने फ़्रैंड हो गये हैं… हा हा हा हा…” वसीम बोला और हँसा!
“हाँ, फ़्रैंड का मतलब अब उनके सामने ही सब देखने लगेगा साले?” आसिफ़ ने हल्के से शरमाते हुये कहा!
“तो क्या हुआ यार, देख ही तो रहे हैं… कुछ कर तो नहीं रहे हैं ना…”
और खटक… अगला चैनल बदलते ही एक लौंडिया की खुली हुई चूत और उसमें दो लडकों के लँड सामने आ गये!
“वाह, देखा ना… मैने कहा था ना, लगाया होगा साले ने… देख देख, माल बढिया है…”
ब्लू चैनल आते ही आसिफ़ हल्का सा झेंपा भी, मगर फ़िर सिगरेट का कश लगाया और टाँगें फ़ैला दीं! वो सामने कुर्सी पर बैठा, मैं और वसीम बेड पर थे! मेरा लँड तो सोनू वाले केस के बाद से खडा ही था, उन दोनो का, चुदायी देख के खडा होने लगा! मगर आसिफ़ ने अपनी टाँगें फ़ैलायी रखी, मेरी नज़र उसकी ज़िप पर थी जो हल्के हल्के उठ रही थी!
“देख, इसकी शक्ल तेरी वाली की तरह नहीं है???” वसीम उस लडकी को देख के बोला तो आसिफ़ बोला “बहनचोद, तमीज़ से बोल… वो तेरी भाभी है…”
“हा हा हा हा… भाभी… मेरा लँड…” लडके अब और फ़्रैंक हो रहे थे!
“ये किसकी बात हो रही है?”
“अरे, भाई ने एक आइटम फ़ँसाया हुआ है… उसकी बात…” वसीम ने बताया!
“मगर, साली सुरँग में अजगर नहीं जाने दे रही है… इसलिये भाई कुछ परेशान है… हा हा हा…”
“ओए, तमीज़ में रह यार…”
“सच नहीं कह रहा हूँ??? या तूने ले ली? हा हा हा…”
“अबे, ली वी नहीं है…”
“अबे, तो वही कह रहा हूँ ना…” वसीम ने उँगलियों से चूत बनायी और “सुरँग में… अजगर… नहीं जाने दे रही…” दूसरे हाथ की एक उँगली उस चूत में अंदर बाहर करते हुये कहा!
साले, हरामी टाइप के स्ट्रेट लौंडे थे… और कहाँ मैं उनके बीच गे गाँडू… मुझे लगा कि टाइम वेस्ट होगा मगर फ़िर भी उनके जिस्म देखने और उनकी बातें सुनने के लिये मैं बैठा रहा!
“देख… बहन के लौडे का कितना मोटा है?”
“हाँ, साला है तो बडा…”
“ये इनके इतने बडे कैसे हो जाते हैं?”
“बुर पेल पेल के हो जाते होंगे…”
“नहीं यार, सालों के होते ही बडे होंगे!” दोनो चाव से लँड डिस्कस कर रहे थे!
तभी बगल वाले कमरे से कुछ आवाज़ आई तो दोनो चुप हो गये!
“आई… नाह…” वो आवाज़ काशिफ़ की बीवी की थी, जो चूत में पूरा लँड नहीं ले पा रही थी! काशिफ़ का लँड बडा हो गया था और उसकी कुँवारी चूत टाइट थी! काशिफ़ बहुत कोशिश करता, मगर अंदर नहीं घुसा पाता, साथ में उसकी बीवी हिल जाती या पलट जाती!
“अरे, डालने दो ना… अब डालना तो है ही, चुपचाप डलवा लो…” उसने खिसिया के कहा!
“आज नहीं… आज नींद आ रही है…” फ़िर जब काशिफ़ ने ज़बरदस्ती डालने की कोशिश की तो उसकी बीवी की चीख निकल गयी!
आसिफ़ और वसीम ने मुझे सकपका के देखा और फ़िर दोनो मुस्कुरा दिये!
“साला, ये कमरा ग़लत है… हा हा हा…”
“बहनचोद, सुहागरात वाले कमरे के बगल में आया ही क्यों? वहाँ से तो ये सब आवाज़ें आयेंगी ही…”
“अबे चुप कर… भैया के सामने…”
“अब क्या छुपाना भैया से… हा हा हा हा…” वसीम हँसा!
“क्या सोचेंगे?”
“सोचेंगे कुछ नहीं… क्यों भैया… आप कुछ सोच रहे हो क्या?” वसीम ने कहा!
“नहीं यार कुछ नहीं…”
“वही तो…” वसीम बोला!
“ये तो सबकी सुहागरात में होता है… अब अपनी बहन की बात है तो शरम आ रही है…”
“हाँ यार वो तो है…” आसिफ़ बोला, जिसका लँड अब पूरा खडा था!
मैं उनकी बातों से कुछ अन्दाज़ नहीं लगा पा रहा था! मुझे तो गेज़ पटाने का एक्स्पीरिएंस था! अगर ये दोनो गे होते तो ब्लू फ़िल्म के बाद मैने दबाना सहलाना शुरु कर दिया होता! ये तो दोनो हार्डकोर स्ट्रेट निकले!
“यार, सुबह के लिये शीरमाल लाने भी जाना है…”
“अच्छा? कहाँ मिलेगा?”
“चौक के आगे ऑर्डर किया है अब्बा ने, गाडी लेकर जाना पडेगा!”
“कब?”
“जितनी रात हो, उतना अच्छा… गर्म रहेंगे…”
“जब जाना हो, बता देना…”
“यार, मूड नहीं है साला, तू जा…”
“चल ना…”
“नहीं यार, बहुत थक गया हूँ…”
उधर जब काशिफ़ ने फ़िर लँड गहरायी में घुसाने की कोशिश की तो उसका सुपाडा चूत की सील पर टकराया और उसकी बीवी ने चूत भींच ली तो वो फ़ौरन बाहर सरक गया!
“अरे, घुसाने दो ना… सील तोडने दो ना…”
“नहीं, बहुर दर्द हो रहा है… बाद में करियेगा, अभी ऐसे ही करिये…”
“अबे, ये ऊपर ऊपर रगडने के लिये थोडी शादी की है… अंदर घुसा के बच्चा देने के लिये की है…” कहकर काशिफ़ ने फ़िर देने की कोशिश की तो वो फ़िर चीख दी!
“उईईईई… नहीं…” वो आवाज़ हमें फ़िर सुनायी दी!
“ये शोर शराबा कुछ ज़्यादा नहीं है?” आसिफ़ ने कहा!
“बेटा, सुहागरात में शोर तो होता ही है… मर्द… साथ में दर्द… हा हा हा…” आसिफ़ का लँड अब पूरा खडा था! उसके लँड के साथ साथ अब उसके आँडूए भी जीन्स के ऊपर से उसके पैरों के बीच दिख रहे थे! उसकी जीन्स में अच्छा बल्ज़ हो गया था!
“रहने दे ना यार… ये देख, कैसे गाँड में लँड डाल रहा है साला…” आसिफ़ ने फ़ाइनली ब्लू फ़िल्म की तरफ़ देखते हुये कहा!
“साले ने, गाँड फ़ैला के भोसडा बना दिया है…”
“हाँ… ये तो साली नॉर्मल लँड ले ही नहीं पायेगी कभी…”
“बेटा रहने दे, जब हम अपना नॉर्मल लँड, अबनॉर्मल तरीके से देंगे ना, तो ये साली भी उछल जायेगी…” आसिफ़ अपने लँड पर अपनी हथेली रगडता हुआ बोला! तभी उसका फ़ोन बजा, उसने देखा!
“अरे, अब्बा भी ना… गाँड में उँगली करते रहते हैं…” कहकर उसने फ़ोन उठाया!
“जी अब्बा… अरे, ले आऊँगा ना…”
“उन्ह…”
“कहाँ से?”
“कितना?”
“उससे कह दिया है ना?” फ़िर उसने फ़ोन काट दिया!
“यार, मेरा बाप भी ना… सिर्फ़ मेरी गाँड मारने के चक्कर में रहता है…”
“क्यों, क्या हुआ?” मैने पूछा!
“पहले शीरमाल के लिये बोला, अब कह रहा है दस चीज़ और लानी हैं…” उसने जवाब दिया!
“बेटा, अब तो तुझे ही चलना पडेगा…” वसीम बोला!
“भाई मेरे, तू चला जा ना… मैं सच में, बहुत थक गया हूँ…”
“अबे, अकेले कैसे?”
“अकेले कहाँ… पप्पू ड्राइवर रहेगा ना…”
“उससे हो पायेगा?”
“हाँ हाँ… साला बडे काम का है… तू चला जायेगा तो मैं थोडी देर आराम कर लूँगा…”
“चल, तू इतना कहता है तो मैं अपनी रात खराब कर लेता हूँ… अब भाई भाई के काम नहीं आयेगा तो कौन आयेगा?”
“इसकी माँ की चूत… ये क्या?” जैसे ही वसीम की नज़र आसिफ़ से बात करते हुये टी.वी. स्क्रीन पर पडी हम तीनो ही उछल गये क्योंकि फ़िल्म का सीन ही चेंज हो गया था! अब उस सीन में तीन लडके और एक लडकी थी! एक तो वही लडका था जो पहले से चूत चोद रहा था, मगर नये लडकों में से एक ने पीछे से उस लडके की ही गाँड में लँड डाल दिया था और तीसरा कभी उसको और कभी उस लडकी को अपना लँड चुसवा रहा था! ये देख के वसीम खडा खडा फ़िर बैठ गया!
“बहनचोद, क्या टर्न आ गया है…”
“हाँ साली, अब तो गे फ़िल्म हो गयी…”
“अबे, गे नहीं… बाइ-सैक्सुअल बोल, बाइ-सैक्सुअल…”
“हाँ वही…”
“चलो, लडको को कम से कम इसके बारे में मालूम तो है…” मैने सोचा!
“ये देख, कैसे लौंडे की गाँड में लँड जा रहा है…”
“अबे, तू जल्दी चला जा… वरना मेरा बाप मेरी गाँड में भी ऐसे ही लँड डाल देगा… हा हा हा हा…”
“तो साले, तेरी भी ऐसे ही फ़ट जायेगी… हा हा हा हा…” वसीम ने कहा!
“अबे, तू फ़िर बैठ गया???” वसीम को बैठा देख आसिफ़ ने कहा!
“अरे, इतना मज़ेदार सीन है… देखने तो दे…”
“साले, गाँड मर्रौवल… देख के तेरा खडा हो गया?”
“हाँ यार, सीन बढिया है…”
“हाँ… छोटी लाइन का मज़ेदार सीन है… साले ने आज बढिया फ़िल्म लगायी…”
मैं उन लडको के गे सैक्स में इंट्रेस्ट से एक्साइट हो रहा था!
“वाह यार” मैने कहा!
“तुम लोगों को ये भी पसंद आया?”
“अरे भैया, आप हमारी जगह होंगे ना… तो आपको भी सभी कुछ बढिया लगेगा…”
“तुम्हारी जगह मतलब?”
“जब साला लौडा हुँकार मारता है और तकिये के अलावा कुछ मिलता नहीं है…” आसिफ़ ने हँसते हुये कहा!
“साला, कभी कभी तो बिस्तर में छेद कर देने का मूड होता है भैया…” वसीम ने उसका साथ दिया!
“हाँ, मेरा भी ऐसे ही होता था…”
“लाओ भैया, इसी बात पर एक सिगरेट जलाओ ना…”
“वैसे, लौंडे की गाँड में आराम से जा रहा है…” मैने उनको थोडा भडकाया!
“हाँ… देख नहीं रहे हो, देने वाला भी तो सटीक फ़िट कर के दे रहा है… साला कोई गुन्जाइश ही नहीं छोड रहा है ना, इसलिये जा रहा है…” आसिफ़ ने कहा!
“और साला, कौन सा पहली बार चुदवा रहा होगा… ब्लू फ़िल्म का है, डेली किसी ना किसी का लँड अंदर पिलवाता होगा…” वसीम ने उसी में जोडा!
“हाँ, तभी साले की गाँड फ़टी हुई है…” मैने कहा!
“अभी तो, हमारा आजकल… ये हाल है भैया… कि साला, ये मिले ना… तो इसी की गाँड मार लें…” आसिफ़ ने फ़्रैंकली कहा!
“हाँ यार, जब मिलती नहीं है ना… तो ऐसा ही हो जाता है… तभी तो इसके जैसों का भी धन्धा चलता है… वरना इसकी गाँड कौन मारेगा…” मैने कहा!
“अबे, जा ना यार… ले आ सामान…” इतने में आसिफ़ को फ़िर काम याद आ गया!
“जाता हूँ यार… साला, ये सब देख के मुठ मारने का दिल करने लगा… हा हा हा…”
“पहले सामान ले आ… फ़िर साथ बैठ के मुठ मार लेंगे… वरना मुठ की जगह गाँड मर जायेगी… जा ना भाई…”
“अबे, बस पाँच मिनिट… बाथरूम में घुस के मार लेता हूँ यार…” वसीम माना ही नहीं!
“नहीं यार, जा ना… जल्दी जा…”
“यार, जब कह रहा है तो चले जाओ ना… आकर मार लेना ना…”
“अरे, आप इस बहन के लँड को जानते नहीं हैं…. साला तब तक खुद पाँच बार मार लेगा…”
“नहीं मारेगा यार, तुम आओ तो…” मैने कहा!
“अच्छा, आप साले को मारने मत देना… पकड लेना साले का… हा हा हा…”
“हाँ, पकड लूँगा…” मुझे वो कहते हुये भी मज़ा आ रहा था!
फ़ाइनली वसीम चला गया तो मैं और आसिफ़ कमरे में अकेले हो गये! फ़िल्म में गे चुदायी धकाधक चल रही थी! क्लोज अप से गाँड में लँड आता जाता दिख रहा था!
“आपने कभी ऐसा किया है?” तभी अचानक आसिफ़ ने पूछा!
“ऐसा मतलब क्या? चुदायी?”
“हाँ… मतलब… लौंडा चुदायी… छोटी लाइन… मतलब समझे आप?”
“क्यों यार?”
“बस ऐसे ही… क्योंकि आपने इतनी देर से चैनल चेंज करने को नहीं कहा ना…”
“चैनल तो तुमने भी नहीं चेंज किया…” मैने कहा!
“शायद मुझे मज़ा आ रहा हो….”
“शायद मुझे भी…”
आसिफ़ की भरी भरी जाँघें फ़ैली हुई थीं और उसकी हथेली बार बार कभी जाँघ कभी ज़िप को रगड रही थी!
“इसमें भी मज़ा आता है…”
“हाँ, उसमें क्या है… तुमने ही तो कहा कि बस चुदायी होनी चाहिये…”
“वो तो ऐसे ही कहा था…”
“अब क्या मालूम” उसने कहा फ़िर एक ठँडी सी आह भरी!
“हाय… आज कोई लडका ही मिल जाता तो उसी से काम चला लेता… आज मूड बहुत भिन्नौट है…”
“अच्छा कहाँ मिलेगा?”
“आप ही बुला दो किसी को… वो.. वो शाम में जिसके साथ थे…”
“कौन… वो ज़ाइन??”
“कोई भी हो… ज़ाइन फ़ाइन… उससे क्या… अभी तो साला कोई भी चलेगा…”
“बडे डेस्परेट हो?”
“हाँ बहुत ज़्यादा… आप इस वक़्त चड्डी के अंदर की हालत नहीं जानते… बस ज्वालामुखी होता है ना, वो हाल है…”
“मगर इस ज्वालामुखी का लावा सफ़ेद है… हा हा हा…” मैने कहा!
“हाँ, अभी तो साला चड्डी ही गीली कर रहा है… ज़रा सा मौका मिला ना, तो बुलेट की तरह निकलेगा…”
“अच्छा?”
“तो बुलायो ना… उस लडके को… उसी को ही बुला लो…”
“अबे पागल है क्या… रहने दे…”
“पागल तो हूँ… बहुत बडा… आप मुझे जानते नहीं हो…”
“खोल दू क्या? फ़िर वो अचानक अपना लँड सहलाते हुये बोला!
“क्या?
“लौडा…
“पागल हो?
“हाँ… अच्छा चलो, नीचे वाले बाथरूम के कैबिन में ही चलो…” उसने कहा तो मैं सब कुछ समझ गया!
“अरे भैया… आप हमें जानते नहीं हो… इलाहबाद के नामी लोगो में हमारा नाम है…” उसने अपनी ज़िप खोलते हुये कहा तो मेरी तो ऊपर की साँस ऊपर और नीचे की नीचे रह गयी!
“ये क्या कर रहे हो आसिफ़?” मैने कहा!
“मुठ मारने जा रहा हूँ… आप सोच लो फ़िल्म है…”
“नहीं करो ना आसिफ़…”
“क्यों नहीं? क्यों.. उस भँगी की याद आ जायेगी?” उसने कहा और अपनी ज़िप के अंदर से अपना मुसलाधार गोरा, लम्बा मोटा खडा हुआ लौडा बाहर निकाला तो उसका जादू तुरन्त मेरे ऊपर छा गया!
“किस भँगी की यार?”
“जिसके साथ आप कैबिन में बन्द थे…” उसने अपने लौडे को अपनी मुठ्ठी में दबाते हुये कहा! उसके ऐसा करने से लँड हुल्लाड मार रहा था और वीर्य की कई बून्दें बाहर आ कर सुपाडे से बहती हुई उसके हाथ पर आ गयी! मैं तो अब तक ठरक चुका था! मैने अपनी कोहनी बेड पर टिका दी और अधलेटी अवस्था में एक सिसकारी भरी… मगर आसिफ़ उतने पर ही नहीं रुका! उसने अपनी जीन्स का बटन खोल दिया! जीन्स बहुत चुस्त थी, इसलिये वो उसको बडी मुश्किल से अपनी जाँघ तक खींच पाया और फ़िर अपने लँड को मेरी नज़रों के सामने झूलने दिया! उसका लँड सीधा हवा में था, जाँघ गोरी और चिकनी थी! भूरी भूरी झाँटें थी! लडके का हुस्न बढिया था, गदरायी नमकीन जवानी थी! वो हल्के हल्के अपने लँड की मुठ मारने लगा!
“मुठ क्यों मार रहे हो?” मैने तेज़ साँसों के बीच सूखते गले से पूछा!
“आप तो कुछ कर ही नहीं रहे हो… इसलिये मुठ ही मारनी पड रही है…”
“क्या करूँ?”
“अब क्या पूछते हो… जो दिल करे, कर लो… अब जब लौडा निकाल ही दिया है तो समझो लाइसेंस दे दिया है… अब क्या पूछना…”
मैं बेड से उतर के कुर्सी के पास उसके पैरों के पास बैठ गया और अपने होंठों से उसकी जाँघ सहलाते हुये उसके लँड को अपने हाथ में ले लिया!
“बहन के लौडे, तुम्हें देखते ही ताड लिया था!”
“कैसे?”
“बताया ना… हम उडती चिडिया पहचानते हैं… वो तो बिज़ी था थोडा, वरना शाम में ही तुम्हारा काम कर लिया होता…”
“उफ़्फ़… आसिफ़्फ़्फ़्फ़…” मैने कहा और थोडा ऊपर उठ के अपनी छाती को उसके घुटने पर रगडते हुये उसके लँड को अपने मुह में लिया और चूसना शुरु कर दिया! उसने अपना सर पीछे की तरफ़ कर लिया, टाँगें फ़ैला ली और आराम से मज़ा लेने लगा! मैने उसकी जीन्स पूरी उतार दी! उसकी व्हाइट अँडरवीअर मैली थी और आँडूओं के पास से तो काली हो गई थी! मैने उतारते हुये उसको सूंघा और फ़िर उसके खूबसूरत आँडूओं को चूमा तो वो भी उछले!
“लो ना, मुह में ले लो…” उसने कहा!
मैने पहले ज़बान से उसके आँडूओं को चाटा, वो उसकी जवानी की तरह नमकीन थे! फ़िर आँडूओं के साइड में उसकी जाँघ को सूंघा और चाटा और उसके बाद अपना मुह बडा सा खोल कर उसके आँडूओं को अपने मुह में गुलाब जामुन की तरह भर कर अपनी ज़बान से उनको चाटते हुये ही चूसने लगा! साथ में हाथ से उसके अजगर जैसे लौडे को सहलाने लगा! वो कुर्सी पर ही जैसे लेट सा गया! अब उसकी गाँड कुर्सी के बाहर थी! मैने उसको दोनो हाथों से पकड के सहलाना शुरु कर दिया!
“चलो ना, बेड पर चलो…” मैने उसके लँड से उसको पकडते हुये कहा!
“चलो…” उसने खडे होते हुये कहा! हम जैसे ही खडे हुये, मैं उससे लिपट गया और हल्का सा उचक के उसके लँड को अपनी जाँघों के बीच फ़ँसा लिया और अपनी जाँघों को कसमसा कसमसा के उसके लँड की मालिश करने लगा! मैने अपना एक हाथ अपनी गाँड की तरफ़ से घुमा के उसके लँड को हाथ से भी सहलाना शुरु कर दिया तो आसिफ़ ने मस्त होकर मुझे कस कर पकड लिया! हम अब पूरे नँगे थे! मैं अपनी टाँगे फ़ैला के उचक उचक के उसका सुपाडा अपने छेद पर भी लगा रहा था!
“चलो बेड पर…”
“अभी रुको, ऐसे मज़ा आ रहा है…” आसिफ़ ने कहा! उसका जिस्म गठीला और चिकना था! मैं कभी उसके बाज़ू को, कभी उसकी छाती को, कभी उसके कंधे को चाट और चूस रहा था! वो भी खूब मेरी गाँड और जाँघें वगैरह दबा दबा के सहला रहा था!
“चलो ना… बेड पर चलो…” उसने कामातुर होकर कहा!
मैं बेड पर लेटा तो वो ऊपर चढ गया! तब तक मेरी गाँड पूरी खुल चुकी थी! उसने थूक लगाया और देखते देखते उसका लँड मेरी गाँड के अंदर समाता चला गया!
“सिउउउहहहहह…” मैने सिसकारी भरी!
“अआह… अब मज़ा आया… साला… गाँड मारूँगा तेरी अब…” कहकर उसने लँड बाहर खींचा फ़िर अंदर दे दिया और फ़िर वैसे ही अंदर बाहर करने लगा! कुछ देर बाद उसने मुझे सीधा लिटाया!
“लाओ, पैर कंधे पर रखो…” उसने मुझे फ़ैला के मेरे पैर अपने कंधों पर रखवा लिये तो मेरी गाँड बडे प्रेम से उसके सामने खुल गयी और वो धकाधक धक्के दे-देकर मेरी गाँड मारने लगा!
“कैसा लगा, इलाहाबादी लौडा कैसा लगा?”
“बहुत बढिया है… आसिफ़… बहुत बढिया है…”
“हाँ बेटा, लो…” वो खूब अच्छे से धक्के लगा रहा था! मेरी टाँगें उसके कंधे पर झूल रही थी! उसने उनको पकडा और हवा में उठा दिया! मेरे दोनो तलवे पकड के फ़ैला दिये! टाँगें, जितनी मैक्सिमम फ़ैल सकती थीं, फ़ैला दीं और अपनी गाँड खूब कस कस के मेरी गाँड में अपना लँड अंदर बाहर देने लगा!
उसके बाद उसने मेरे घुटने मेरे सीने पर मुडवा दिये! अब तो मेरी गाँड भोसडे की तरह खुल के उसके सामने आ गई थी और वो उसको चोदे जा रहा था! अचानक उसने लँड बाहर निकाल लिया!
“एक मिनिट रुक…” उसने कहा और अपना फ़ोन उठा के कुछ करने लगा!
“क्या कर रह्य हो?”
“कुछ नहीं…” उसने कहा और इस बार वो मेरी गाँड में लँड घुसा के मारने लगा और साथ में उसका एम.एम.एस. क्लिप बनाने लगा!
“ये क्यों?”
“बस, ऐसे ही रिकॉर्ड रहेगा ना… कि तेरी मारी थी…” वो कभी फ़ोन अपने हाथ में ले लेता, कभी मेरे हाथ में दे देता… हमने करीब २० मिनिट की फ़िल्म बनायी! फ़िर उसका झडने लगा तो फ़ोन साइड में रख दिया और हिचक-हिचक के भयँकर धक्के देने लगा! उसने मुझे पलट के लिटा दिया और कूद कूद के मेरी गाँड में लँड डालने लगा और उसके बाद उसने मेरी गाँड के अंदर अपनी वीर्य का बारूद भर दिया! हम वैसे ही लिपट के लेटे रहे!
“तुमने अच्छा चोदा आसिफ़…” मैने उसको बाहों में भरते हुये कहा!
“हाँ बेटा, हम जो काम करते है… अच्छा ही करते हैं… अलीगढ आ जाना, वहाँ आराम से होगा… जब दिल करे, आ जाना…”
“अआह… हाँ, आऊँगा… अब तो आना ही पडेगा…”
“और लौंडे चाहिये तो मिलवा भी दूँगा…”
“हाँ, मिलवा देना… कौन हैं?”
“बस हैं ना… तू आम खा, गुठली से मतलब मत रख… वसीम को देगा?”
“हाँ, दे दूँगा…”
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फ़िर ना जाने कब मुझे नींद आ गयी! मगर जब बगल में इतना गदराया हुआ नमकीन लौंडा पूरा नँगा लेटा हो तो कहाँ चैन आता है! मैने ना जाने कब नींद में, साइड होकर अपनी जाँघ, सीधे लेटे आसिफ़ पर चढा दी! इससे मेरा लँड उसकी कमर में भिड गया और हल्के हल्के उसकी गर्मी पाकर ठनक गया! उस रात उस पर बहुत ज़ुल्म हुआ था! साले को माल नहीं मिला था, कई बार खडा हुआ और हर बार बिना झडे ही उसको बैठ जाना पडा!
मैने नींद में ही आसिफ़ की छाती और पैर सहलाये! फ़िर मेरी नींद कुछ टूटी तो अफ़सोस हुआ क्योंकि ना जाने कब आसिफ़ ने पैंट पहन ली थी! खैर मैं फ़िर भी उसका जिस्म रगडता रहा! जब उसी अवस्था में मेरा हाथ उसके लँड पर पहुँचा तो पाया कि वो भरपूर खडा था! मैं उससे आराम से दबा दबा के खेलता रहा! आसिफ़ ने अपनी एक बाज़ू फ़ैला रखी थी, मैने अपनी नाक वहाँ घुसा दी और उसके मर्दाने पसीने को सूँघता रहा! आलस के मारे, उसने जीन्स के बटन और ज़िप भी बन्द नहीं किये थे!
वो भी अचानक नींद में हिला और मेरी तरफ़ पीठ करके दोबारा नींद की गहरी आग़ोश में खो गया! कमरे में सिर्फ़ एक साइड का नाइट बल्ब जल रहा था, मगर उसमें भी काफ़ी रोशनी थी! मैं पीछे से ही आसिफ़ से चिपक गया और इस बार उसकी पीठ पर अपने होंठ रख दिये और उसके मर्दाने जिस्म की दिलकश खुश्बू और उसकी गदरायी मसल्स का मज़ा लेता रहा! उसका जिस्म गर्म था, जिस वजह से सर्दी की उस रात में, उससे चिपकने में मज़ा आ रहा था! अब मैं आराम से उसकी गाँड पर अपना लँड भिडाने लगा था! मेरा लँड खुला था पर उसकी गाँड जीन्स में बन्द थी! उसने चड्डी नहीं पहनी थी! मैने उसकी कमर सहलायी, फ़िर पीछे से उसकी जीन्स के अंदर हाथ घुसाने की कोशिश की! शुरु में तो हाथ केवल उसकी फ़ाँकों के ऊपरी पोर्शन तक ही गया! उसकी गाँड माँसल थी, और चिकनी भी… शायद बाल भी होंगे तो हल्के हल्के ही होंगे! फ़िर मुझे याद आया कि उसकी गाँड पर तो हल्के से रेशमी भूरे बाल थे! मैने उसकी कमर से जीन्स थोडा नीचे खिसकायी तो अब उसकी फ़ाँकें आधी खुल गयी! उसकी गाँड की फ़ाँकों का वो ऊपरी हिस्सा, जो बस उसकी पीठ से शुरु होता था और जहाँ से गाँड उठान लेती थी, मेरे सामने आया तो मैने उसको कस के रगड दिया! फ़िर मैं हल्के हल्के उसकी दरार पर उँगलियाँ फ़िरा के मज़ा लेने लगा! पर वो चुपचाप सोया रहा… बस एक साइड करवट करके अपने घुटने हल्के से आगे की तरफ़ मोड के अपनी गाँड पर मेरे हाथों को महसूस करता हुआ! मैं उससे और चिपक गया जिस कारण मेरा लँड उसकी पीठ पर रगडने लगा! अब मेरी ठरक जग चुकी थी, मैं आसिफ़ की गाँड मारना चाहता था! मुझे ऐसे मर्दाने लडकों की गाँड मारने का बहुत शौक़ है जिनको अपने लौडे पर घमंड होता है! उनकी गाँड का अपना ही मज़ा होता है… कसमसाया हुआ, कशिश भरा, बिल्कुल मिट्टी पर पहली पहली बारिश की खुश्बू के मज़े की तरह… मगर मुझे ये पता नहीं था कि आसिफ़ की गाँड के सुराख की मिट्टी पर ना जाने कितने लँड बारिश कर चुके हैं!
फ़ाइनली जब मैने उसकी जीन्स, उसकी जाँघों तक सरका दी तो उसकी खुली घूमी गाँड, उसके कटाव, मस्क्युलर गोलाई, कमसिन चिकनाहट, और चुलबुला मर्दानापन देख कर मुझसे ना रहा और मैं नीचे खिसक कर ऐसा लेटा कि उसकी गाँड की दरार और सुराख मेरे मुह के पास आ गये! मैने पहले उसके छेद को प्यार से सहलाया! वो बस नींद में हल्का सा कसमसाया, एक बार पैर हल्के से सीधे किये, फ़िर वापस मोड लिये! मैने उसकी दरार को हाथों से हल्का सा फ़ैलाया और फ़िर उसके छेद पर नाक लगा का एक गहरी साँस लेकर उसके मर्दानेपन को सूंघा!
“उम्म…अआहहहह..” मैने उसके छेद की खुश्बू सूंघते हुये गहरी साँस ली! उसके छेद पर पसीने की खुश्बू थी! मैने अपनी ज़बान से हल्के से उसको छुआ, फ़िर जैसे अपनी ज़बान उस पर चिपका दी… वो फ़िर कसमसाया, मैने जब उँगली रखी तो उसका छेद बिल्कुल सिकुडा हुआ था… कसा हुआ टाइट, बिल्कुल चवन्नी के आकार का! मैने उसको कुछ और चाटा और साथ में उसकी जाँघ सहलाते हुये उसकी जीन्स और नीचे उतार दी! उसका जिस्म सच में बडा माँसल, सुडौल, कटावदार और चिकना था!
मैने अपना लँड उसकी दरार पर रखा और अब हाथ के बजाय लँड से उसकी दरार को रगडा! मेरा लौडा उसकी नमकीन गाँड पर लगते ही फ़नफ़नाया! मैं उससे लिपट गया और वैसे ही अपना लँड कुछ देर उसकी दरार पर रगडता रहा! लँड उसकी पीठ से होकर उसके आँडूओं की जड तक जाता था, वहाँ मेरा सुपाडा उसकी अंदरूनी जाँघ में फ़ँस जाता था, जिसको वापस बाहर खींचने में बडा मज़ा आता था! फ़िर कभी मैं उसकी गाँड हाथ से फ़ैला के उसका छेद खोल देता और उसके छेद पर डायरेक्टली सुपाडा रख के रगड देता! तो उसका छेद वाला पोर्शन जल्द ही मेरे प्री-कम से भीग कर चिकना होने लगा और शायद थोडा खुलने भी लगा! फ़िर उस पर मेरा थूक तो लगा ही था! जब मेरा सुपाडा पहली बार सही से उसके छेद पर फ़ँसा तो उसने पहली बार सिसकारी भरी… मतलब वो भी जग चुका था और उसको कोई आपत्ति नहीं थी! मैने अपनी उँगली से उसका छेद चेक किया जो अब खुल रहा था! उसने हाथ पीछे करके मेरा लँड थामा! मैने अपना हाथ लगा के उसको छेद पर लगाया और कहा!
“लगा के रखो…”
“नहीं, बहुत बडा है… जा नहीं पायेगा…” मुझे काम की कसक में उसकी आवाज़ बदली बदली सी लगी!
“चला जायेगा यार… बहुत आराम से जायेगा…”
“गाँड फ़ट जायेगी…” उसकी आवाज़ में भारीपन था!
“नहीं फ़टेगी बे… मेरी नहीं देखी थी, तेरा कितने आराम से लिया था…”
“नहीं यार… अच्छा पहले ज़रा चूसने दो…” उसने कहा!
“लो, चूस लो…” मैने कहा तो वो मेरी तरफ़ मुडा!
उसके मुडते ही मैं चौंक गया क्योंकि वो आसिफ़ नहीं था! इतनी देर से मेरे साथ वसीम था… मैं हल्का सा हडबडाया भी और खुश भी हुआ! मेरी वासना एकदम से और भडक गयी…
“अरे तुम… आसिफ़ कहाँ गया?”
“वो तो कब का चला गया… मैं जब आया तो आप सो रहे थे…”
“कहाँ गया?”
“हलवाई को उसके घर से लेने गया है…”
“तो तुमने इतनी देर से कुछ कहा क्यों नहीं?”
“कह देता तो आप रुक जाते क्या??? इसीलिये तो इतनी रात में वापस आया था…”
“पहले कह देते…”
“ये बात आसिफ़ को नहीं पता है…”
“क्या बात?”
“मतलब, उसे ये तो पता है कि मैं एक-दो लौंडों की ले चुका हूँ… मगर उसके अलावा ये जो आप करने को कह रहे हैं… वो सब नहीं पता है… अब अपनी इज़्ज़त है ना… उसने आपसे मरवायी क्या?”
“नहीं, उसने बस मारी…”
“कहोगे तो नहीं?”
“तू चूस तो… मैं बच्चा नहीं, जो ये सब कहता फ़िरूँगा किसीसे… मैं बस काम से काम रखता हूँ…”
“तब ठीक है!”
“लाओ ना, अपना भी तो दिखाओ…” मैने कहा और जब उसके लँड को हाथ में थामा तो मज़ा आ गया! उसका लँड लम्बा और पतला था, मगर चिकना और ताक़तवर…
“आसिफ़ का तेरे से मोटा है…”
“हाँ, उसका थोडा मोटा है… मगर मेरा उससे लम्बा है…”
“हाँ, ये तो है…”
वो नीचे हुआ और उसके होंठ जब मेरे सुपाडे से छुए तो मेरा लँड उछल सा गया! फ़िर उसने मुह खोल के जब मेरे सुपाडे को अपने मुह में लिया तो उसके मुह की गर्मी से मेरे बदन में सिरहन दौड गयी!
“आज उस भंगी के साथ क्या करवा रहे थे?”
“गाँड मरवायी उससे…”
“भंगी से?”
“हाँ, साले का लँड भी चूसा… तुझे कैसे…”
“साला, आसिफ़ सब देख के आया था… उसने बताया, मगर उसको ये नहीं पता चला कि बंद कैबिन में हुआ क्या क्या?”
“अच्छा… मैं समझा था कि वो चला गया था…”
“नहीं, सब देखा था उसने… तभी तो हम आपको यहाँ लाये थे…”
“वाह यार, सही है… तो सीधा बोल देते…”
“अब, थोडी बहुत हिचक होती है ना…”
“हिचक के चलते काम बिगड जाता तो?”
“हाँ… जब बिल्कुल लगता कि मामला हाथ से निकल रहा है, तो कह भी देते… मगर उसके सामने तो बस आपकी मारता… चूस थोडी पाता और ना ही गाँड पर लगवा पाता…”
“हाँ सही है… रुक…” मैने उसका मुह हटवाया और उलट के लेट गया… ६९ पोजिशन में!
“अब सही है… ज़रा तेरा भी देखूँ ना…”
हम ६९ पोजिशन में एक दूसरे का लँड चूसने लगे! उसका सुपाडा, लम्बा लँड होने के कारण, सीधा हलक के छेद तक जा रहा था! मेरा लँड तो उसका पूरा ही मुह भर दे रहा था! मैने उसकी टाँगें फ़ैलवा दी! अब उसकी एक टाँग उठ के मुडी हुई थी और दूसरी सीधी थी, जिसकी जाँघ पर मैने अपना सर रखा हुआ था! उस पोजिशन से मुझे उसके आँडूए और छेद तक दिख रहे थे और उसकी गाँड की गदरायी फ़ाँकें और मस्क्युलर इनर थाईज़ भी! मैने उसका लँड छोड कर उसके आँडूए छुए और फ़िर अपनी नाक फ़िर से उसके छेद पर रख दी और उसको चाटने लगा! इस बार मैने उसे अपने हाथों के दोनो अँगूठों से फ़ैला दी और आराम से उसकी गाँड के सुराख की किसिंग शुरु कर दी!
“अआह… हाँ… हाँ…” उसने हताश होकर कहा!
मैने उसका सुराख जीभ डाल डाल कर ऐसा चूसा कि उसकी चुन्नटें सीधी हो गयी और वो खुलने लगा! तब मैने अपनी एक उँगली उसके अंदर किसी स्क्रू की तरह हल्के हल्के घूमाते हुये डाली तो उसका छेद मेरी उँगली पर अँगूठी की तरह सज गया!
“बहुत… बढिया… बडी ज़बर्दस्त गाँड है…”
“आह… होगी नहीं क्या… किसी को हाथ थोडी लगाने देता हूँ…”
“हाँ राजा… टाइट माल है…” कहकर मैने उँगली निकाली और फ़िर उसका एक चुम्बन लेने में लग गया! वो भी साथ साथ मेरा लँड मेरे आँडूए सहला सहला के चूसे जा रहा था!
“आसिफ़ को भी नहीं दी?”
“नहीं, साले ने ट्राई तो बहुत किया था…”
“क्यों नहीं दी?”
“आपस में एक दूसरे को इतनी बडी कमज़ोरी नहीं बतानी चाहिये…”
“अच्छा?”
“उसकी मारी कभी?”
“ना… बस साथ में मुठ मारते हैं… या किसी और की गाँड… इसलिये उसको प्लीज मत बताना…”
“अबे… वो कौन सा मेरा खसम है, जो उसको बताऊँगा… जब तेरे साथ तो तेरे से मज़ा, जब उसके साथ तो उससे मज़ा…”
“कभी हम साथ भी लें ना… तो भी प्लीज ये सब मत करना या बोलना…”
“अब कैसे बोलूँ… एक बार बोल तो दिया यार… तेरी गाँड पर स्टाम्प लगा कर लिख कर दूँ क्या?”
मैने अब उसको चुसवाना बन्द किया और उसको वैसे ही लिटाये रहा! फ़िर खुद टेढा होकर उसकी जाँघों के बीच लेट गया! अब वो एक दिशा में लेटा था और मैं उसके परपेन्डिकुलर लेटा था! फ़िर मैने अपना लँड उसकी गाँड पर रगडना शुरु कर दिया! मगर उस पोज़ में मुश्किल हो रही थी तो मैने उसको सीधा लिटा के उसके पैर उसकी छाती पर करवा दिये और उसकी गाँड खोल दी! उसके बाद जब मेरा सुपाडा उसके अंदर घुसा तो वो छिहुँका, मगर जब मैने हल्का हल्का फ़ँसा के दिया तो मेरा लँड आराम से अंदर हो गया और वो मज़ा लेने लगा!
“अआहहह… सा..ला.. ब..हुत… मो..टा.. लौडा है आ..पका…” उसने मज़ा लेते हुये कहा!
“हाँ है तो…” मैने अपने लँड को उसकी गाँड की जड तक घुसा के फ़िर बाहर अंदर करते हुये कहा! साथ मैं उसकी जाँघें भी सहलाये जा रहा था, जो मेरी छाती से रगड रहीं थी!
कमरे में “घप्प घप्प… चपाक… चप चप… धक धक…” की आवाज़ें गूँज रहीं थीं और उनके साथ “सिउउउहहहह…” “अआहहह…” “उहहह…” भी…
“अब मुझे अपनी लेने दो ना…” कुछ देर के बाद वसीम बोला!
“आओ, ले लो…”
“नहीं, ऐसे… तुम आओ और लँड पर बैठो ना… मैं लेट जाता हूँ…”
मैने उसकी तरफ़ मुह करके उसके लौडे पर अपनी गाँड रखी और आराम से अपनी गाँड से उसके लँड को गर्म करने लगा और फ़िर वो मेरी गाँड के छेद में अंदर तक घुसता चला गया!
“अआह… हा..अआहहह… उहहह… बहुत खुली हुई गाँड है…”
“हाँ… काफ़ी चुदवा रखी है ना…”
कुछ देर में वो धकाधक मेरी गाँड में लँड डालने लगा!
“अब मेरा भी ले ले…”
“हाँ, दे ना यार… दे दे… जितना देना है दे… ला, दे दे…”
वो अंदर बाहर तो कर रहा था, मगर जब पूरा अंदर देता तो उसको कुछ देर वहीं रहने देता… जिस पर मैं अपनी गाँड का सुराख कसता और ढीला करता… फ़िर वो उसको बाहर निकालता… और वापस धक्के के साथ अंदर घुसा देता!
उसके हर धक्के पर आवाज़ आती और उसकी जाँघ मेरी जाँघ से टकराती… जिससे मुझे उसके जिस्म और उसके गोश्त में बसी बेपनाह ताक़त का अन्दाज़ होता!
फ़िर वो थक गया तो हम लिपट के लेट गये!
“अब तो तेरे दोस्त ने सील तोड दी होगी… लगता था, काफ़ी कोशिश कर रहा था…”
“हाँ, अब तो फ़ाड दी होगी… वैसे… साले को माल बढिया मिला है… बडी गुलाबी आइटम है…”
“अच्छा साले?”
“हाँ, मुझे मिल जाती तो मैं ही रगड देता… मगर अफ़सोस आज तो चुद ही गयी…”
“तो अब ट्राई कर लियो…”
“कहाँ यार… अब कहाँ…”
“चल तो कोई और मिल जायेगी…”
“हाँ, अब तो मिलनी ही होगी…”
थोडा सुसताने के बाद मैने फ़िर उसकी लेनी शुरु कर दी!
“यार, अब गिरा ले… क्योंकि मुझे सुबह से काम भी करना है…”
“चार तो बज रहे हैं…”
“हाँ यार, नाश्ता बनना शुरु हो गया होगा… अगर नीचे नहीं पहुँचा तो अच्छी बात नहीं होगी…”
“और आसिफ़?”
“वो पता नहीं कहाँ होगा…”
फ़िर मैने उसकी गाँड में लँड घुसाना शुरु कर दिया और उसकी गाँड पर लौडे के थपेडे मार मार कर उसकी गाँड को खोल दिया और उसके बाद मेरे लौडे का लावा उसकी गाँड में ना जाने कितनी गहरायी तक भर गया! उसके बाद उसने ज़रा भी समय बर्बाद नहीं किया और तुरन्त मेरे ऊपर चढ कर अपना लँड मेरी गाँड में डालना शुरु कर दिया! इस बार उसके धक्को में तेज़ी थी, वो जल्दी से अपना माल झाडना चाहता था, इसलिये धक्कों में ताक़त भी ज़्यादा आ गयी थी! वो हिचक हिचक के मेरे ऊपर गिर रहा था! उसका जिस्म मेरे जिस्म पर किसी हथौडे की तरह गिर रहा था! मुझे उसकी मर्दानी ताक़त का मज़ा मिल रहा था! फ़िर उसने मुझे जकड लिया! उसकी गाँड के धक्के तेज़ हो गये! अब वो डालता तो डाले रखता, जब निकालता तो तुरन्त ही वापस डाल देता!
फ़िर वो करहाया “अआह… हाँ…”
“क्या हुआ? झडने वाला है क्या?” मैने पूछा!
“अआह… हाँ… हाँ… अआह… उहहह… हाँ…” करके उसका लँड मेरी गाँड में फट पडा और उसने अपना गर्म माल मेरी गाँड में भर दिया! उसके बाद उसने कपडे पहने और चला गया!
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07-26-2017, 11:25 AM,
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RE: Hindi Lesbian Stories समलिंगी कहानियाँ
जब मैं सुबह नाश्ते पर गया तो वहाँ वसीम और आसिफ़ दोनो ही थे! उस सुबह इतना कुछ हो जाने के बाद दोनो बडे दिलकश लग रहे थे! ऐसा होता भी है… जब किसी लडके के साथ ‘कर’ लो और फ़िर उसको नॉर्मल सिनैरिओ में औरों से बात करते हुये, तमीज़ से झुकते हुए, बडों से अदब से बात करते हुए, शरमा के मुस्कुराते हुए देखो तो कुछ ज़्यादा ही मन लुभावने लगते हैं! ज़ाइन भी सुबह सुबह के खुमार में बडा चिकना और नमकीन लग रहा था! उसकी भी रात की दारु की ख़ुमारी उतर गयी थी!
“क्यों? दिमाग हल्का हुआ ना?” मैने उससे हल्के से पूछा!
“जी चाचा… आपने किसी से कहा तो नहीं?”
“नहीं यार… कहूँगा क्यों?”
“थैंक्स चाचा…”
उसके बाद बिदायी का समय आ गया! और फ़िर हम जब स्टेशन पहुँचे तो ट्रेन टाइम पर थी! सब जल्दी जल्दी चढ गये! बाय बाय हुआ, मैने आसिफ़ और वसीम से गले मिल कर विदा ली और अलीगढ आने का वायदा किया और उनको भी देहली इन्वाइट किया!
ट्रेन के छोटे से सफ़र में मेरी नज़र रास्ते भर बस ज़ाइन पर ही रही! वो उस दिन नहा धो कर बडा खुश्बूदार हसीन लग रहा था! उस दिन वो व्हाइट कार्गो पहने था और लाल कॉलर वाली टी-शर्ट और ऊपर से एक नेवी ब्लू हल्की सी जैकेट डाले हुये था! उसकी भूरी आँखें और गुलाबी होंठ बात करने में मुस्कुराते तो मुझे उसका लिया हुआ वो चुम्बन याद आ जाता! फ़िर उसकी गाँड की वो दरार याद आती जिसे मैने पिछली रात बाथरूम में रगडा था!
हमारा रिज़र्वेशन सैकंड ए.सी. में था, मगर मैं बगल वाले कम्पार्ट्मेंट में सिगरेट पीने के लिये चला जाता था ताकि किसी का सामना ना करना पडे! बगल वाला कोच ए.सी. फ़र्स्ट क्लास का था! ट्रेन कुछ रुक रुक के चलने लगी थी! ऐसे ही एक बार जब में सिगरेट पीने गया तो ज़ाइन को भी बुला लिया!
“आओ, तुम खडे रहना…” मैं वहाँ खडा सिगरेट पी रहा था और वो खडा हुआ था! मैं बस उसको देख देख कर वासना में लिप्त हो रहा था!
“तुम्हारी बॉडी बडी अच्छी है वैसे…” मैने अचानक उससे कहा!
“अच्छा? थैंक्स…”
“एक्सरसाइज़ किया करो और सही हो जायेगी!”
“अच्छा चाचा, कैसी एक्सरसाइज़?”
“किसी ज़िम में पूछ लेना…” अब मैं उससे बात करते हुये उसके चेहरे से अपनी नज़रें हटा नहीं पा रहा था… बस उसकी कशिश में खिंचा हुआ था! मगर तभी उसे राशिद भाई के बुलाने की आवाज़ आयी! वो वापस जाने लगा तो वो कम्पार्ट्मेंट से निकलते एक आदमी से टकराया और सॉरी बोल के चला गया!
वो आदमी आया और मेरे बगल में उसने भी सिगरेट जला ली! मैने एक कश लिया और अचानक जब उसके चेहरे पर नज़र पडी तो वो कुछ जाना पहचना सा लगा!
मैं उसे गौर से देख रहा था और मैने देखा कि वो भी मुझे ध्यान से देख रहा था और अचानक हम एक दूसरे को पहचान गये!
“अरे… आकाश तुम?”
“अरे अम्बर तुम… अरे यार वाह, बडे दिन के बाद मिले हो…”
“हाँ यार, मैं भी पहचाने की कोशिश कर रहा था…”
“हाँ, मुझे भी तेरा चेहरा जाना पहचाना सा लगा…”
“वाह यार क्या मिले… अच्छा, कहाँ जा रहे हो?” उसने पूछा!
“यार, एक बारात में आया था… यहाँ सिगरेट पीने आ गया!”
“वाह यार…”
“और तुम कहाँ जा रहे हो?”
“मैं काम से बनारस जा रहा हूँ!”
“अरे, आओ ना… आओ, अंदर बैठते हैं!”
“अरे, फ़र्स्ट क्लास में टी.टी. पकड लेगा…”
“अरे, कुछ नहीं होगा… आओ बैठ के बातें करेंगे… इतने दिनों के बाद मिले हो यार…”
मैं उसके साथ उसके कैबिन में गया! वो दो बर्थ वाला कैबिन था, जिसकी ऊपरी सीट पर कोई सोया हुआ था!
“ये कोई तेरे साथ है क्या?”
“हाँ यार, भतीजा है!” मेरा मन तो हुआ कि देखूँ तो उसका भतीजा कैसा है… मगर कम्बल के कारण मुझे कुछ दिखा नहीं! मैं उसके साथ नीचे बैठ गया और हम बातें करने लगे!
“क्यों, तेरी शादी हुई?” फ़ाइनली मुझसे रहा ना गया और मैने पूछा तो उसकी आँखों में शरारती सी चमक आ गयी!
“क्यों, तुझे क्या लगता है?”
“क्या मतलब? यार लगेगा क्या, सीधा सा सवाल पूछा!”
“हुई भी और नहीं भी…”
“क्या मतलब?”
“मतलब, हुई थी मगर चार साल पहले डिवोर्स हो गया…”
“ओह.. अच्छा… तो अब इरादा नहीं है?”
“नहीं यार… और तू बता, तेरी हुई क्या?”
“नहीं…”
“क्यों?”
“बस ऐसे ही…”
“तो… काम कैसे मतलब… अच्छा चल रहने दे…” उसने मेरी जाँघ पर हाथ मारते हुये कहा!
“पूच ले, क्या पूछना है?”
“जब पता ही है तो क्या पूछूँ? शायद हम दोनो एक ही नाव पर हैं…”
“यार, साफ़ साफ़ बोल…”
“अच्छा, तुझे कुछ याद है?”
“क्या याद होगा?”
“वो याद है… जब हमने विनोद के यहाँ फ़िल्म देखी थी?”
“हाँ तो… क्या हुआ? उसमें याद ना रहने वाली क्या बात है?”
“उसके बाद का याद है?”
“ये सब मैं भूलता नहीं हूँ…”
“बस सोच ले… कुछ, उसी सब कारण से डिवोर्स हुआ….”
“मतलब… तुझे चूत…”
“हाँ शायद…”
“तो?”
“यार, अब मेरे मुह से क्यों कहलवाना चाह रहा है…”
पन्द्रह साल के बाद, आज उसने जब अपना हाथ मेरी जाँघ पर रखा तो मैने अपना हाथ उसके कंधों पर रख दिया! वो वैसा ही सुंदर था, जैसा तब था… बस अब थोडा मच्योर हो गया था, थोडा वेट गैन कर लिया था मगर फ़िर भी बॉडी मेन्टेन करके रखे हुये था!
“यार, तो तुझे शादी करनी ही नहीं चाहिये थी…”
“अब मैने सोचा, काम चल जायेगा… मगर साला क्या बताऊँ, एक मिनिट भी दिल नहीं लगता था!”
“हाँ, वो तो है… जब ख्वाहिश ही नहीं हो जो चीज़ खाने की, उसका स्वाद कहाँ अच्छा लगेगा…”
“हाँ, ये तो है… तो क्या तूने घर वालों को बता दिया?”
“क्या?”
“यही, कि तू गे है…”
“पागल है क्या… यार मैं अमरिका में थोडी हूँ… बस कोई ना कोई बहाना बना के काम चलाता हूँ…”
तभी ऊपर से एक दिलफ़रेब, दिलकश, दिलनशीं सी आवाज़ आयी!
“चाचू…??”
“हाँ, सोमू उठ गये? आओ, नीचे आ जाओ…”
और फ़िर दो गोरे पैरों के हसीन से तल्वे दिखे! मैने अपनी राइट तरफ़ सर उठाया तो एक व्हाइट ट्रैक, जिस पर साइड में ब्लैक लाइनिंग थी, दिखा… जो थोडा ऊपर उठा हुआ था, उसके अंदर से दो गोरे गोरे पैर दिखे, जिन पर बस रोंये थे, जो अभी बालों में तब्दील भी नहीं हुये थे!
“नीचे आ जाऊँ?”
“हाँ, आ जाओ… देखो, मेरे एक फ़्रैंड मिल गये है… आओ, मुह हाथ धो लो… चाय मँगवाता हूँ…”
फ़िर धम्म से सोमू मेरे बगल में नीचे उतर गया और समझ लीजिये कि मेरे जीवन में हसीन पल की तरह समाँ गया!
‘सौम्यदीप सिँह चौहान’ ये उसका पूरा नाम था! उस समय वो ११वीँ में था और जैसा नाम वैसा हुस्न… एकदम सौम्य! गुलाबी जिस्म, गुलाबी होंठ, हल्की ग्रे आँखें, सैन्ट्रली पार्टेड हल्के भूरे बाल, चौडा माथा, गोरे गाल, तीर की तरह आई-ब्रोज़, मोतियों की तरह दाँत, और संग-ए-मर्मर सा तराशा हुआ हसीन जिस्म! जब वो नीचे उतरा तो उसकी टी-शर्ट उठी रह गयी, जिस कारण मुझे सीधा उसका चिकना सा सपाट पेट दिखा! उसकी ट्रैक में आगे हल्का सा उभार था, जो जवान लडकों को अक्सर सुबह सुबह होता है! बिल्ट और बॉडी मस्क्युलर थी, गदराया हुआ बदन था… होता भी कैसे नहीं, साला डिस्ट्रिक्ट लेवल का स्विमिंग चैम्पियन जो था! मैने उससे हाथ मिलाया तो उसकी जवानी का अन्दाज़ हुआ! उसकी ग्रिप बढिया था, हाथ मुलायम और गर्म!
“चलो जाओ, जल्दी से ब्रश वगैरह कर लो… फ़िर चाय मँगाते हैं!” आकाश ने उससे कहा!
“जी चाचू…”
सौम्य ने झुक कर अपना बैग खोला और जब वो झुका तो उसकी टी-शर्ट और उठ गयी! अब उसकी पीठ और कमर दिखे! बिल्कुल चिकनी गोरी कमर, जिस पर से ट्रैक की इलास्टिक कुछ नीचे ही हो गयी थी और शायद मुझे उसकी चिकनी गाँड का ऊपरी हिस्सा दिखा रही थी!
जैसे ही वो गया, आकाश ने उठ के कैबिन को अंदर से बन्द कर दिया और खडा खडा ही मुझे देखने लगा!
“क्या हुआ?”
“कुछ नहीं…” उसने कहा!
मैं समझ गया कि वो क्या चाहता है… इसलिये मैं भी उसके सामने खडा हुआ! हम दोनों ने एक दूसरे को देखा और बिना कुछ कहे, बिना एक भी पल बर्बाद किये, मैं उसकी तरफ़ बढा और अपना एक हाथ उसके सर के पीछे रख कर और दूसरे को उसकी कमर में डाल के उससे चिपक गया! उसने मुझे अपनी बाहों में भरा और हम एक दूसरे के होंठ चूसने लगे! गहरी जुदायी के बाद मिलन वाला प्यासा सा मुह खोल खोल के ज़बान से ज़बान भिडा के भूखा, एक दूसरे में समाँ जाने वाला, एक दूसरे को खा लेने वाला चुम्बन… जिसमें हमारी आँखें बन्द थी, बदन आपस में टकराये हुए और चिपके हुये थे! दोनो एक दूसरे का लँड महसूस करते हुये बस गहरे चुम्बन की आग़ोश में डूब गये! हमने पाँच मिनिट के बाद साँस लेने के लिये चुम्बन तोडा और फ़िर एक और चुम्बन में खो गये जो उससे भी बडा था! उसका हाथ मेरी गाँड पर आया और मेरा उसकी गाँड पर चला गया!
“अभी तक वैसी ही है…” उसने कहा!
“हाँ, बस छेद फ़ैल गया है…”
“वो तो तुम खूब ऑइलिंग करवाते होगे ना…”
“तुम्हारा लँड बडा हो गया है…” मैने उसके लँड को सहलाते हुये कहा!
“हाँ, निखर गया है… तुम्हारा तो पहले ही बडा था…”
“सब याद है?”
“हाँ बेटा, तू भूलने वाली चीज़ तो था ही नहीं… याद है ना, वो बस में कैसे हुआ था?”
“हाँ यार, सब याद है… मैं भी तुझे भूला नहीं कभी…” कहकर मैने फ़िर अपने होंठ उसके होंठ पर रख दिये!
तभी दरवाज़े पर दस्तक हुई तो हम हडबडा कर अलग हो गये! मैं जल्दी से बैठ गया और आकाश ने दरवाज़ा खोल दिया! नमकीन सौम्य वापस आ गया था!
“यार, मैं ज़रा बोल के आता हूँ कि मैं यहाँ हूँ… वरना सब सोचेंगे कि मैं कहाँ गया…”
“ठीक है…”
आकाश ने एक्स्पोर्ट का काम किया हुआ था और भोपाल में बेस्ड था! सौम्य ग्वालियर के सिन्धिया स्कूल में था! आकाश को बनारस में साडी के किसी कारीगर से मिल के कुछ माल देखना था, इसलिये सौम्य भी साथ हो लिया क्योंकि उसका ननीहाल बनारस में था!
जब मैं वापस आया तो चाय आ चुकी थी! सौम्य ने मुझे भी चाय दी और मैने आकाश के साथ साथ सोमू से भी खूब बात की! लौंडा रह रह कर मेरी जान ले रहा था! साले ने वही आकाश वाली चिकनाहट पायी थी! इन्फ़ैक्ट उससे भी ज़्यादा… क्योंकि उसके खून में तो बनारस की रेशमी लचक, देसी अल्हडपन और पुरवईया नमक भी था!
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07-26-2017, 11:26 AM,
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RE: Hindi Lesbian Stories समलिंगी कहानियाँ
बनारस पहुँच कर भी मैं सोमू का हुस्न नहीं भुला पा रहा था… और ज़ाइन तो तिरछा तिरछा भाग रहा था! मैने आकाश का नम्बर ले लिया था, जब घर पर बोर होने लगा तो सोचा कि किसी घाट की सैर लूँ! मैं अक्सर नाव लेकर घंटों वहाँ घूमा करता था! कभी कभी बिल्कुल गँगा के दूसरी तरफ़ जाकर रेत पर चड्डी पहन के लेट जाता था! वहाँ भीड नहीं होती थी, बडा मज़ा आता था! साथ में दो पेग भी लगा लेता था और ठँडी ठँडी हवा जब चेहरे को छूती थी तो मौसम हसीन हो जाता था! और जब चड्डी पहन के रेत पर बैठता था तो ठँडी ठँडी रेत बदन गुदगुदाती थी! मैं घर से निकला ही था कि अचानक आकाश का फ़ोन आ गया! मैने मन ही मन प्रोग्राम बना के उसको भी अपने साथ नाव की सैर पर चलने को कहा तो वो तैयार हो गया! नाव मेरे घर के एक ड्राइवर की थी! उसके चाचा का लडका रिशिकांत चलाया करता था! वो अक्सर मुझे दूसरे किनारे छोड के वापस आ जाया करता था! फ़िर घंटे-दो घंटे, जितना मैं कहता, उसके बाद वापस आकर मुझे ले जाता था! मैं घर से निकल के जब अपनी मेल चेक करने के लिये एक कैफ़े में गया तो अपने मेल बॉक्स में ज़ायैद की बहुत सी मेल्स देखीं! मैने उसको एक अच्छा लम्बा सा जवाब दिया! वो कहीं घूमने के लिये गया हुआ था और सिर्फ़ मेरा नाम ले लेकर ही मुठ मार रहा था! ज़ायैद के साथ मुझे रिलेशनशिप अजीब सी लग रही थी! ना देखा, ना जाना… फ़िर भी डेढ साल से कॉन्टैक्ट! दिल से दिल लगा रखा था! पता नहीं कौन होगा कैसा होगा मगर फ़िर भी…
मुझे वहाँ से निकल के आकाश से मिलते मिलते ही पाँच बज गये! जब हम घाट पर पहुँचे, काफ़ी भीड हो चुकी थी और फ़िर रिशी को ढूँढ के जब तक हम दूसरी तरफ़ पहुँचे, सूरज नीचे जाने लगा था! चारों तरफ़ सुनहरी रोशनी थी! वहाँ तक पहुँचते पहुँचते आकाश ने तीन और मैने दो पेग लगा लिये थे और हम एक दूसरे के बगल में बैठ के कंधों पर हाथ रख के हल्के हल्के सहला रहे थे!
“और बताओ यार…” हमें वहाँ बात करने में कोई प्रॉब्लम नहीं थी क्योंकि रिशी हमसे काफ़ी दूर बैठा नाव के चप्पू चला रहा था! वो २२-२३ साल का हट्टा कट्टा देसी लौंडा था जो उस दिन एक ब्राउन कलर का ट्रैक पहने था और ऊपर एक गन्दी सी टी-शर्ट… जिसकी गन्दगी के कारण उसके कलर का अन्दाज़ लगाना मुश्किल था! मगर चप्पू चला चला के उसके हाथ पैर और जाँघों की मसल्स गदरा के उचर गयी थी! उसकी छाती के कटाव उसकी शर्ट के ऊपर से उभर के अलग से दिखते थे! उसके देसी चेहरे के नमकीन रूखेपन को मैं हमेशा ही देखा करता था! मैने देखा कि आकाश भी उसको देख रहा था!
“तुमने काफ़ी पैसा कमा लिया है…”
“हाँ यार…”
“शादी नहीं करोगे दोबारा?”
“अब क्या करूँगा यार… एक बार ही सम्भालना मुश्किल हो गया था…”
“हुआ क्या था? डिवोर्स क्यों ले लिया?”
“क्या बताऊँ यार… एक बार ठरक में एक नौकर से गाँड मरवा रहा था, साली बीवी ने देख लिया…”
“तो समझा देता उसको…”
“समझी नहीं साली… मैने भी सोचा, बात दबा देने के लिये डिवोर्स सही रहेगा…”
“तो तूने उसकी चूत चोदी कि नहीं?”
“हाँ, मगर बस कभी कभी… फ़ॉर्मलिटी में… इसलिये वो और ज़्यादा फ़्रस्ट्रेटेड रहने लगी थी…”
“तो कहीं और ले जा कर नौकर के साथ करता ना…”
“यार, साली सो चुकी थी… मैने सोचा, जल्दी जल्दी काम हो जायेगा… वरना मैने तो फ़ैक्टरी में ही जुगाड कर रखा था…”
“अब क्या कहूँ, चाँस चाँस की बात है… वैसे भी अगर तुझे सही नहीं लग रहा था तो आज नहीं तो कल बात बिगडनी ही थी…”
“हाँ, वो तो है… अच्छा है, अब मैं अपने आपको ज़्यादा फ़्री महसूस कर रहा हूँ!”
“हाँ, वो तो लगता है… शादी से फ़्रीडम खत्म हो जाती है…”
“तो उस नौकर के अलावा भी कोई लडके फ़ँसाये तूने, मेरे बाद?”
“पूछ मत, गिनती नहीं है… मैं तो अपने साले पर भी ट्राई मारता… साला, बडा चिकना सा था… मगर उसके पहले ही काँड हो गया!”
“पहले ही साले को फ़ँसा लेता तो उसकी बहन भी शक़ नहीं करती और अगर देख भी लेती तो अपने भाई के कारण किसी को कहती नहीं!”
“हाँ, अब क्या कहूँ… जो होना था, हो गया…”
“वैसे तेरी बॉडी अब और गठीली हो गयी है…” मैने उसकी जाँघ पर हाथ रख के उसका घुटना हल्के हल्के से सहलाना शुरु कर दिया!
“अच्छा? मगर तू तो अभी भी वैसा चिकना ही है… हा हा हा…”
“वो बस वाली घटना याद है?”
“हाँ… और मुझे तो उसके बाद वाला सीन ज़्यादा याद आता है…”
“हाँ, वो तो असली सीन था ना… इसलिये तुझे याद आता है… थैंक्स यार, तू अभी तक भूला नहीं…”
जब हम दूसरे किनारे पर पहुँचे तो हमने एक एक पेग और लगा लिया!
“आज तेरे साथ पीने में मज़ा आ रहा है…” आकाश ने कहा!
“तो मज़ा लो ना… इतने सालों बाद मिले हैं, मज़ा तो आयेगा… क्या चाँस था यार, वरना ट्रेन में कोई ऐसे कहाँ मिलता है…”
“हाँ, मिलना था… सो मिल गये…”
फ़िर हम बॉटल और ग्लास लेकर नाव से उतर गये और रेत की तरफ़ चलने लगे! अब अँधेरा सा होने लगा था, मैने रिशी से कहा!
“तुम जाओ, डेढ-दो घंटे में आ जाना…”
“अच्छा भैयाजी, आ जाऊँगा…” कहकर वो नाव लेकर मुड गया!
“नहाना भी है क्या?” आकाश ने मुझसे पूछा! मगर मेरे जवाब के पहले ही अपने कपडे उतारने लगा और बोला “मैं तो सोच रहा हूँ, थोडा ठँडे ठँडे पानी में नहा लूँ…”
उसने अपनी शर्ट और बनियान उतार दिये! फ़िर अपनी पैंट खोली तो अंदर से उसकी इम्पोर्टेड शॉर्ट्स स्टाइल की चुस्त चड्डी दिखी! उसका जिस्म सच में काफ़ी मस्क्युलर होकर गदरा गया था! पिछली बार वो चिकना सा नवयुवक था, इस बार वो हसीन जवान सा मर्द बन गया था! उसकी जाँघें मस्क्युलर हो गयी थी! उसने अपनी एक जाँघ को स्ट्रैच किया और अपनी चड्डी की इलास्टिक अड्जस्ट की!
“तू भी आ जा ना…” उसने मुड के मुझसे कहा!
मैने भी बिना कुछ कहे अपने कपडे उतारना शुरु कर दिये! मैं उस दिन एक व्हाइट कलर की पैंटी पहने था जिसमें मेरा लँड खडा होकर उफ़ान मचा रहा था! पहले हम साथ खडे खडे सामने पानी देखते रहे, फ़िर हमारे हाथ एक दूसरे की कमर में चले गये… और बस फ़िर शायद आग लग गयी! हम घुटने घुटने पानी में गये और वहीं बैठ गये! फ़िर नहीं रहा गया तो एक दूसरे की तरफ़ मुह करके लेटे और फ़िर एक दूसरे के होंठों का रस निचोड निचोड के पीने लगे! उसने देखते देखते मेरी चड्डी में पीछे से हाथ डाल दिया तो मैने आगे उसका लँड सहलाना शुरु कर दिया! वो अपनी जाँघ को मेरे ऊपर चढा के मुझे अपने बदन से मसल रहा था! मैं कभी उसकी जाँघ, कभी पीठ तो कभी लँड मसल रहा था! हम ठँडे ठँडे पानी में लेटे हुये थे! उसकी बदन में सरप्राइज़िंगली ज़्यादा बाल नहीं आये थे… बस जाँघों पर हल्के से, छाती पर हल्के से, और हल्के से गाँड और झाँटों पर…
“चल, किनारे पर चल…” मैने उससे कहा और हम रेत पर लेट गये और एक दूसरे में गुथ गये!
उसने अपनी पैंट की पैकेट में कुछ ढूँढा!
“क्या ढूँढ रहा है?”
“ये…” उसने एक तेल की शीशी और कॉन्डोम का पैकेट दिखाया!
“अच्छा, पूरा इन्तज़ाम कर रखा है तुमने?”
“इतने दिनों के बाद ये तो होना ही था…”
“हाँ, मैं भी चाह रहा था… जब से आज तुमसे मिला, बस मेरा ये ही दिल कर रहा था!”
मैने उसके होंठों पर फ़िर होंठ रख दिये! मगर वो अपने लँड पर कॉन्डोम लगा रहा था!
“आज, पहले मैं लूँगा…”
“नहीं यार, पहले मुझे दे ना… तेरी गाँड को मैने बहुत याद किया है…” और मैने पलट के अपनी गाँड उसकी तरफ़ कर दी! फ़िर अपना एक पैर मोड कर उसकी जाँघ पर ऐसे रखा कि मेरी गाँड खुल गयी! मैने अपना सर मोड लिया और अपने हाथ उसकी गरदन में डाल दिये और अपनी गाँड को हल्के हल्के अपनी कमर मटका के उसके लँड पर रगडने लगा! उसने अपने लँड को अपने हाथ से पकड के मेरे छेद के आसपास लगाये रखा!
“इस बार सोच रहा हूँ, किसी लौंडे से शादी कर लूँ…”
“किससे करेगा?”
“तू कर ले…”
“ना बाबा ना… और कोई कमसिन सा ढूँढ ले, ज़्यादा दिन साथ निभायेगा…”
“तू ढूँढ दे ना…”
“कोई मिलेगा तो बताऊँगा… फ़िल्हाल काम चलाने के लिये मैं हूँ…”
“तूने भी काफ़ी लौंडे फ़ँसा रखे होंगे?” उसका सुपाडा मेरे छेद पर हल्के हल्के आगे पीछे होकर दब रहा था, जिससे मेरा छेद कुलबुला के खुल रहा था! मेरी चुन्नटें फ़ैलना शुरु कर रहीं थीं!
“हाँ, बहुत फ़ँसाये…” मेरे मन में ना जाने क्या आया, मैने उसको ज़ायैद के बारे में भी बताया!
“सही है… ऐसी फ़्रैंडशिप भी एक्साइटिंग होती है और ब्लाइंड डेट की तरह एण्ड में पता नहीं बन्दा कैसा हो…”
“हाँ यार, ये तो रिस्क है ही…” उसने मेरे निचले होंठों को अपने दाँतों से पकड के अपने सुपाडे को मेरी गाँड में घुसाया और मैने हल्के से ‘आह’ कहा!
“मज़ा आया ना?”
“हाँ, अब मुझे सिर्फ़ इसी में मज़ा आता है जानम…”
“अगर पता होता, तुझसे तब ही शादी कर लेता…”
“हाँ, तब सही रहता… बाकि सब लफ़डे से बच जाता…”
“हाँ और हम दोनो आराम से रहते…”
“हाँ वो तो है… मगर अब मेरा और लोगों से भी कमिटमेंट है ना… मैं इस तरह सिर्फ़ एक का बन के नहीं रह सकता…” मैने उससे कहा! उसने अब तक आधा लँड मेरी गाँड में घुसा के, मेरी वो जाँघ जिसका पैर उसकी जाँघ पर मुडा हुआ था, अपने मज़बूत हाथ से पकड ली… फ़िर उसने अपनी गाँड पीछे कर के एक ज़ोरदार धक्का दिया और उसका लँड मेरी गाँड में पूरा घुस गया!
“अआहहह… अभी भी दम है तेरे में…”
“हाँ, अब ज़्यादा एक्स्पीरिएंस और दम है… तब तो नया नया था…”
“इसीलिये तो लौंडे मच्योर मर्दों को ढूँढते हैं राजा…”
“हाँ…”
फ़िर वो सीधा हो गया और अपनी टाँगें फ़ैला के चित लेट गया तो मैं समझ गया कि मुझे उसके ऊपर बैठ कर सवारी करनी है! मैं उसके ऊपर बैठ गया और उसका लँड अपनी गाँड में खुद ही ले लिया और अपनी गाँड ऊपर नीचे करने लगा!
वो अपनी गाँड उठा उठा के मेरी गाँड में धक्के लगा रहा था! मैने उसकी छाती पर अपने दोनो हाथ रखे हुये थे!
“आह… हाँ… आकाश हाँ… आकाश… हाँ… बहु..त अच्छा ल..ग र..हा है… और डालो… मेरी गाँड में लँड डाल..ते र..हो…”
“आह… मेरी रानी ले ना… डाल तो रहा हूँ… तेरी गाँड मारने में बडा मज़ा आ रहा है…” उसने कहा और खूब गहरे गहरे धक्के देता रहा! कभी कभी वो मुझे बिल्कुल हवा में उछाल देता!
उसके बाद मैने उसको सीधा लिटाया और उसके पैर उसकी छाती पर ऐसे मुडवा दिये कि उसके दोनो घुटने उसके सर के इधर उधर थे! उसकी गाँड बिल्कुल मैक्सिमम चिर गयी थी! मैने उसके छेद पर मुह रखा और उसको एक किस किया! फ़िर अपनी ज़बान से उसकी गाँड को खोलने लगा! जब रहा ना गया तो मैं वैसे ही अपने घुटनों के बल वहाँ उसी पोजिशन में बैठ गया और अपना लँड उसकी गाँड की फ़ैली हुई दरार में रगडने लगा! मैने उसके छेद पर सुपाडा लगाया जो धडक रहा था! मैने दबाया तो उसकी साँस रुकी!
“साँस क्यों रुक गयी? यार, लगता है इस साइज़ का नहीं मिला कोई…”
“हाँ, मगर कम मिलता है इसीलिये तो याद रहा इतने साल… थोडा तेल लगा ले…”
“मैने उसकी गाँड पर और अपने लँड पर तेल लगाया! फ़िर अपना सुपाडा उसके छेद पर रखा और हल्के से दबाया और दबाता चला गया! जब मेरा दबाव लगातार बना रहा तो उसकी गाँड फैलने लगी और आखिर मेरा सुपाडा ‘फ़चाक’ से उसकी गाँड में घुसा!
“उहहह…”
“क्या हुआ?”
“हल्का सा दर्द…”
“बस, एक दो धक्के में सही हो जायेगा…”
“हाँ” उसने कहा!
मैने घप्प से अपना लँड उसकी गाँड में गहरायी तक सरका दिया तो वो हल्का सा चिहुँका!
“अबे… क्या कमसिन लौंडे की तरह उछल रहा है…” मैने कहा और लँड बाहर खींचा और फ़िर जब मैं लँड अंदर बाहर करने लगा तो उसकी गाँड अड्जस्ट हो गयी!
“आजा… तू नहीं बैठेगा लँड पर?”
इस बार मैने उसको अपने लँड पर बिठा लिया और उसको उछालने लगा!
अभी कुछ ही धक्के ही हुये थे कि हमें अपने बगल में कुछ आहट सी हुई! देखा तो बिल्कुल नँगे रिशिकांत को अपने नज़दीक खडे पाया! हम उसी पोजिशन में रह गये!
रिशिकांत हमारे बगल में खडा अपने खडे हुये लँड की मुठ मार रहा था! उसका नँगा बदन दूर से आती रोशनी में चमचमा रहा था! चाँदनी में दमकता उसका जिस्म पत्थर की मूरत की तरह लग रहा था! उसका चेहरा कामुकता से सुन्न पड चुका था! आँखों पर बस वासना की चादर थी! उसकी टाँगें हल्की सी फ़ैली थी, बदन के मसल्स दहक रहे थे! आकाश वहीं मेरे लँड पर बैठा रह गया! उसने रिशी को बुलाया!
“आ जाओ, इतनी दूर क्यों हो… इधर आ जाओ…”
रिशी उसकी तरफ़ आया और उसके इतना नज़दीक खडा हो गया कि रिशी का लँड उसके कँधे पर था!
“परेशान क्यों हो… आओ, तुम भी मज़ा ले लो…” कह कर आकाश ने अपने कंधे पर रखे उसके लँड को अपने गालों से सहलाया, जिसको देख के मैं भी मस्त होने लगा! अब मैने आकाश की गाँड में धक्के देना शुरु किया और उसने रिशी का लँड चूसना शुरु कर दिया! एक्साइटमेंट के मारे रिशिकांत के घुटने मुड जाते थे! वो अपने घुटने मोड कर गाँड आगे-पीछे करके आकाश के मुह में अपना लँड डालता और निकलता था! रिशिकांत का लँड उसके बदन के हिसाब से ज़्यादा बडा या ज़्यादा मोटा नहीं था मगर था देसी और गबरू और ताक़तवर! उसने आकाश के सर को अपने दोनो हाथों में पकड लिया और उसको अपने लँड पर धकाधक मारने लगा!
मैने आकाश की कमर पकड ली! फ़िर रिशी ने अपना लँड उसके मुह से निकला!
“आप भी कुछ करो ना…”
मैने उसका लँड देखा वो सीधा सामने हवा में खडा था और आकाश के थूक से भीगा हुआ था! मैने उसको अपने ऊपर खींचा और अपनी छाती पर घुटने इधर उधर कर के बिठा लिया और आकाश के थूक में भीगे उसके लँड को चाटा तो उसकी देसी खुश्बू से मस्त हो गया!
“तू मेरी गाँड में अपना लँड डाल… ऐसे ही डाल सकता है क्या?”
“हाँ, डाल दूँगा…” मेरे लँड पर आकाश बैठा था मगर फ़िर भी मैने अपने घुटने मोड लिये! आकाश की पीठ मेरी तरफ़ थी! रिशी मेरी फैली हुई जाँघों के बीच आ गया! उसने अपने घुटने मोड रखे थे! फ़िर मुझे अपनी गाँड पर उसका सुपाडा महसूस हुआ! क्योंकि वो आकाश के सामने पड रहा था, आकाश ने उसको अपनी बाहों में ले लिया और उसके होंठ चूसने लगा मगर रिशी का ध्यान नीचे था! उसने अपने हाथ से अपना लँड मेरी गाँड पर लगाया! आकाश की गाँड से काफ़ी तेल बह कर मेरी गाँड तक आ चुका था इसलिये कोई दिक्कत नहीं हुई! फ़िर रिशी का लँड ज़्यादा बडा भी नहीं था! साथ में उसकी देसी अखाडे वाली ताक़त… उसने घपाघप दो तीन धक्कों में अपना लौडा मेरी गाँड के अंदर खिला दिया! उसने अपना एक हाथ अपने चूतडों पर और दूसरा आकाश की पीठ पर रख लिया और आराम से आकाश के होंठ चूस चूस कर मेरी गाँड में अपना लँड डालने लगा!
“टट्टी निकाल दूँगा यार, तेरी गाँड से… टट्टी निकाल दूँगा…”
“अआह… हाँ, निकाल दे…” अब वो धीरे धीरे जोश में आ रहा था! तमीज़ के दायरे से बाहर हो रहा था! उसका मर्दानापन जाग कर उसके लडकपन को दूर कर रहा था!
“बेटा… मर्द का लौडा लिहिओ तो गाँड से टट्टी बाहर खींच देई…” उसने देसी अन्दाज़ में कहा!
“तो निकाल देओ ना…”
“हाँ साले, अभी अपने आपही हग देओगे… चल घोडा बन ज़रा… तू हट तो…” उसने आकाश को मेरे ऊपर से हटाया और मुझे पलटवा के घोडा बनवा दिया! फ़िर उसने अपने दोनो हाथ मेरे कमर पर रखे और मेरी गाँड के अंदर सीधा अंदर तक अपना लँड डालने लगा! कुछ देर में वो धकधक मेरी गाँड मारने लगा! आकाश बस बगल में अपना लँड मेरी कमर में चिपका के क्नील हो गया और रिशी के बाज़ू सहलाने लगा!
“क्या देख रहा है? है ना कररा माँस…”
“हाँ… बहुत…”
“रुक जा बेटा, अभी तेरी गाँड में भी पेलेंगे… गाँडू साले, बडी देर से तुम दोनो को साइड से देख रहा था…”
उसने थोडी देर के बाद आकाश को मेरे बगल बिल्कुल मेरी तरह घोडा बना लिया और कभी उसकी मारने लगता कभी मेरी! साले में बडा दम था! नाव खे खे कर उसने सारा ज़ोर अपने लँड में जमा कर लिया था! सच में जब उम्मीद के बाद भी उसका माल नहीं झडा और उसके धक्के तीखे होकर अंदर तक जाने लगे तो मेरी टट्टी ढीली होने लगी!
“क्यों बेटा गाँडू, टट्टी हुई ना…” उसने कहा!
“हाँ…”
“रुक, तू इधर आ… जरा लौडा मुह में ले….” उसने आकाश को खींचा और अपना लँड मेरी गाँड से निकाल के आकाश के मुह में देने लगा! मगर तभी शायद उसका पतन ट्रिगर हो गया और वो चिल्लाया!
“अआह मा…ल…” कहकर उसने आकाश का सर पकड लिया और उसके मुह में ही अपनी धार मार दी!
“अब इसको चटवा…” उसके कहने पर मैने आकाश के मुह पर मुह रख कर रिशिकांत का नमकीन देसी वीर्य उसके मुह से अपनी ज़बान से चाटा! रिशिकांत की देसी जवानी तो उस शाम का बोनस थी! हम दोनो उससे मस्त हो गये थे! फ़िर हमने अपना अपना माल झाडा और कपडे पहन के वापसी का सफ़र पकड लिया!
उस रात मैने आकाश को अपने साथ ही सुला लिया! हम लिपट के सोये, रात काफ़ी बातें हुई! आकाश ने मुझे बताया कि उसको अक्चुअली थ्रीसम बहुत पसंद है और अगर कोई और मिले तो मैं उसको बुला सकता हूँ! मैने भी कह दिया कि मिलेगा तो बता दूँगा! अगली सुबह वो चला गया! मगर रात भर हमनें खूब बातें की!
उधर रिशिकांत का मज़ा चखने के बाद मैने शिवेन्द्र को देखा तो वो भी कामुक लगा! वो करीब २७ साल का था जिसकी शादी हो चुकी थी मगर टाइट कपडे पहनता था!
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07-26-2017, 11:26 AM,
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RE: Hindi Lesbian Stories समलिंगी कहानियाँ
उस दिन शाम को काशिफ़ का रिसेप्शन था! मैं सुबह उठा और आकाश के जाने के बाद बिना नहाये ही सामने राशिद भैया के घर चला गया! मेरी नज़रें ज़ाइन को ही ढूँढ रहीं थी! उसने मुझे निराश नहीं किया और कुछ ही देर में अपने दो कजिन्स के साथ आया! मैने उसकी नमकीन जवानी के दर्शन से अपना दिन शुरु किया! उस दिन के बाद से ज़ाइन को वापस अकेले लाकर उस मूड में लाना मुश्किल हो रहा था! शादी के चक्कर में मौका ही नहीं मिल रहा था! ट्रेन पर मौका था तो आकाश मिल गया! इलाहबाद में मौका था तो वहाँ वसीम और आसिफ़ मिल गये! फ़िर मैने सोचा कि राशिद भाई के सिस्टम पर ही मेल चेक कर लूँ! उस दिन भी ज़ायैद की मेल आयी थी!
“आज मैं बहुत हॉर्नी फ़ील कर रहा हूँ… यू नो, मेरे होल में गुदगुदी हो रही है… जब उँगली से सहलाता हूँ तो बहुत अच्छा लगता है! माई फ़्रैंड्स जस्ट टॉक अबाउट गर्ल्स, बट आई कीप लुकिंग एट माई फ़्रैंड्स… समटाइम्स आई वाँट टु हैव सैक्स विथ दैम ऑल्सो! अब तो पुराने पार्टनर्स से गाँड मरवाने में मज़ा भी नहीं आता है! अब तो आपसे मिलने का दिल भी करता है! आई वाँट टु होल्ड युअर कॉक एंड फ़ील इट! आई ऑल्सो वाँट टु सक इट एंड फ़ील इट डीप इन्साइड माई होल! आपका लँड अंदर जायेगा तो दर्द होगा… मे बी आई माइट इवन शिट बट आई स्टिल वाँट इट…”
ये और ऐसी और भी बातें उसने लिखी थी! मैने उसका जवाब दिया और लॉग ऑउट हो गया! ये एक एक्सिडेंट ही था कि ज़ायैद को एक दिन हिन्दी-गे-ग्रुप के बारे में पता चला, जहाँ उसने मेरी कहानियाँ पढीं और हमारे बीच ये एक तरह का अफ़ेअर सा शुरु हो गया! ज़ायैद धीरे धीरे डेस्परेट हो रहा था!
एक बार जब मैने उससे पूछा कि उसको क्या पसंद है तो उसने लिखा था!
“अआह… मैं किसी मच्योर आदमी की वाइफ़ की तरह बहाने करना चाहता हूँ… नयी नयी चीज़ें एक्सपेरिमेंट करना चाहता हूँ! मेरे फ़्रैंड्स सिर्फ़ सैक्स करते हैं बट आई वाँट टु डू मोर… मे बी गैट लिक्ड… मे बी ट्राई इवन पिस एंड थिंग्स लाइक दैट… यु नो ना? लडका था तो गर्म, मगर था मेरी पहुँच से बहुत दूर… ना जाने कहाँ था ज़ायैद…
उस दिन मैने एक नया लडका भी देखा! उसका नाम शफ़ात था और वो मेरे एक दोस्त का छोटा भाई था जो राशिद भाई के यहाँ भी आता जाता था! उसकी काशिफ़ से दोस्ती थी! उस समय में बी.एच.यू. में एम.बी.बी.एस. सैकँड ईअर में था! पहले उसको देखा तो था मगर अब देखा तो पाया कि वो अच्छा चिकना और जवान हो गया है! मैने उससे हाथ मिलाया! वो कुछ ज़्यादा ही लम्बा था, करीब ६ फ़ीट ३ इँच का जिस कारण से उसकी मस्क्युलर बॉडी सैक्सी लग रही थी! मैने उसको देखते ही ये अन्दाज़ लगाया कि ना जाने वो बिस्तर में कैसा होगा! ये बात मैं हर लडके से मिल कर करता हूँ! मैने नोटिस किया कि ज़ाइन शफ़ात से फ़्रैंक था! मुझे कम्प्यूटर मिला हुआ था इसलिये मैं अपनी गे-स्टोरीज़ की मेल्स चेक करता रहा! कुछ इमजेज़ भी देखीं, दो विडीओज़ देखे और गर्म हो गया! फ़िर बाहर सबके साथ बैठ गया! मैने देखा कि शफ़ात की नज़रें घर की लडकियों पर खूब दौड रहीं थी… खास तौर से राशिद भाई की भतीजी गुडिया पर! वैसे स्ट्रेट लडको के लिये १२वीँ में पढने वाली गुडिया अच्छा माल थी! वो बिल्कुल वैसी थी जैसे लडके मैं ढूँढता हूँ! नमकीन, गोरी, पतली, चिकनी! शफ़ात के चिकने जवान लँड के लिये उसकी गुलाबी कामुक चूत सही रहती! गुडिया मुझसे भी ठीक ठाक फ़्रैंक थी! बस ज़ाइन मेरे हाथ नहीं आ रहा था… किसी ना किसी बहाने से बच जाता था!
उस दिन बैठे बैठे ही सबका राजधरी जाने का प्रोग्राम बन गया! क्योंकि राशिद भैया के काफ़ी रिश्तेदार थे, सबने सोचा, अच्छी पिकनिक हो जायेगी! राजधरी बनारस से करीब दो घंटे का रास्ता है और मिर्ज़ापुर के पास पडता है! वहाँ एक झरना और ताल है जिसमें लोग पिकनिक के लिये जाते हैं! उसके पास छोटे छोटे पहाड भी हैं! जब मुझे ऑफ़र मिला तो मैं भी तैयार हो गया! अगली सुबह रिसेप्शन के बाद जाने का प्रोग्राम बना! सब मिला कर करीब ३० लोग हो गये थे!
शाम के रिसेप्शन में भीड भाड थी, घर के पास ही पन्डाल लगा था, लाइट्स थी, गाने बज रहे थे, सब इधर उधर चल फ़िर रहे थे! वहाँ के घर पुराने ज़माने के बने हुये हैं… हैपज़ार्ड! जिस कारण कहीं एक दम से चार मन्ज़िलीं हो गईं थी, कहीं एक ही थी! मेरे और राशिद भैया के घर में एक जगह बडी छत कहलाती थी, जो एक्चुअली फ़िफ़्थ फ़्लोर की छत थी, फ़िफ़्थ फ़्लोर पर सिर्फ़ एक छोटी सी कोठरी थी… ये उसकी छत थी जिसके एक साइड मेरा घर था और एक साइड उनका! मैं अक्सर वहाँ जाकर सोया करता था! उसकी एक छोटी सी मुंडेर थी ताकि कोई करवट लेकर नीचे ना आ जाये! ज़्यादा बडी नहीं थी! वहाँ से पूरा मोहल्ला दिखता था!
फ़िल्हाल मैं चिकने चिकने जवान नमकीन लौंडे ताड रहा था! साफ़ सुथरे कपडों में नहाये धोये लौंडे बडे सुंदर लग रहे थे! मगर वो शाम सिर्फ़ ताडने में ही गुज़री! कोई फ़ँसा नहीं! क्योंकि अगली सुबह जल्दी उठना था मैं तो जल्दी सोने भी चला गया!
दूसरे दिन काफ़िले में पाँच गाडियाँ थीं और कुल मिलकर करीब आठ चिकने लौंडे जिसमें ज़ाइन और शफ़ात भी थे और उनके अलावा कजिन्स वगैरह थे! राजधारा पर पहुँच के पानी का झरना देख के सभी पागल हो गये! सभी पानी में चलने लगे! कुछ पत्थरों पर चढ गये! कुछ कूदने लगे! कुछ दौडने लगे! मैने पास के बडे से पत्थर पर जगह बना ली क्योंकि वो उस जगह के बहुत पास थी जहाँ सब लडके अठखेलियाँ कर रहे थे… खास तौर से ज़ाइन! उस जगह की ये भी खासियत थी कि वो उस जगह से थोडी हट के थी जहाँ बाकी लोग चादर बिछा कर बैठे थे! यानि पहाडों के कारण एक पर्दा सा था! इसलिये लडके बिना रोक टोक मस्ती कर रहे थे! मेरी नज़र पर ज़ाइन था! वो उस समय किनारे पर बैठा सिर्फ़ अपने पैरों को भिगा रहा था!
“ज़ाइन… ज़ाइन…” मैने उसे पुकारा!
“नहा लो ना… तुम भी पानी में जाओ…” मैने कहा!
“नहीं चाचा, कपडे नहीं हैं…”
“अच्छा, इधर आ जाओ.. मेरे पास… यहाँ अच्छी जगह है…”
“आता हूँ…” उसने कहा मगर उसकी अटेंशन उसके सामने पानी में होते धमाल पर थी! सबसे पहले शफ़ात ने शुरुआत की! उसने अपनी शर्ट और बनियान उतारते हुए जब अपनी जीन्स उतारी तो मैं उसका जिस्म देख के दँग रह गया! वो अच्छा मुस्च्लुलर और चिकना था, साथ में लम्बा और गोरा! उसने अंदर ब्राउन कलर की फ़्रैंची पहन रखी थी! मैने अपना फ़ोन निकाल के उस सीन का क्लिप बनाना शुरु कर दिया! शफ़ात ने जब झुक के अपने कपडे साइड में रखे तो उसकी गाँड और जाँघ का बहुत अच्छा, लँड खडा करने वाला, व्यू मिला! मेरा लौडा ठनक गया! उसको देख के सभी ने बारी बारी कपडे उतार दिये… और फ़ाइनली ज़ाइन ने भी!
मैने ज़ाइन के जिस्म पर अपना कैमरा ज़ूम कर लिया! वो किसी हिरनी की तरह सुंदर था! उसके गोरे बदन पर एक भी निशान नहीं था! व्हाइट चड्डी में उसकी गाँड क़यामत थी! गाँड की मस्क्युलर गोल गोल गदरायी फ़ाकें और फ़ाँकों के बीच की दिलकश दरार! पतली चिकनी गोरी कमर पर अँडरवीअर के इलास्टिक… फ़्लैट पेट… छोटी सी नाभि… तराशा हुआ जिस्म… छाती पर मसल्स के कटाव… सुडौल जाँघें और मस्त बाज़ू… वो खिलखिला के हँस रहा था और हँसता हुआ पानी की तरफ़ बढा! मेरा लँड तो जैसे झडने को हो गया! उसको उस हालत में देख कर मेरा लौडा उफ़न गया! फ़िर सब मुझे भी पानी में बुलाने लगे! जब देखा कि बच नहीं पाऊँगा तो मैं तैयार हो गया!
जब मैं किनारे पर खडा होकर अपने कपडे उतर रहा था तो मैने देखा कि ज़ाइन मेरी तरफ़ गौर से देख रहा था! उसने मेरे कपडे उतरने के एक एक एक्ट को देखा और फ़िर मेरी चड्डी में लँड के उभार की तरफ़ जाकर उसकी आँखें टिक गयी! मैं सबके साथ कमर कमर पानी में उतर गया! पानी में घुसते ही मेरे बदन में इसलिये सिहरन दौड गयी कि ये वही पानी था जो ज़ाइन और शफ़ात दोनो के नँगे बदनों को छू कर मुझे छू रहा था! एक तरफ़ वॉटरफ़ॉल था! मैने शफ़ात से उधर चलने को कहा! हम सीधे पानी के नीचे खडे हो गये! वो भी खूब मस्ती में था, मैं भी और बाकी सब भी…
“आपने इसके पीछे देखा है?” शफ़ात ने कहा!
वो मुझे गिरते पानी के पीछे पत्थर की गुफ़ा के बारे में बता रहा था… जहाँ चले जाओ तो सामने पानी की चादर सी रहती है!
“नहीं” मैने वो देखा हुआ तो था मगर फ़िर भी नहीं कह दिया !
“आइये, आपको दिखाता हूँ… बहुत बढिया जगह है…”
पानी में भीगा हुआ, स्लिम सा गोरा शफ़ात अपनी गीली होकर बदन से चिपकी हुई चड्डी में बहुत सुंदर लग रहा था… बिल्कुल शबनम में भीगे हुये किसी फ़ूल की तरह! उसके चेहरे पर भी पानी की बून्दें थमी हुई थी! जब हम वहाँ पहुँचे तो मैने झूठे एक्साइटमेंट में कहा!
“अरे ये तो बहुत बढिया है यार…”
“जी… ये जगह मैने अपने दोस्तों के साथ ढूँढी है…” मैने जगह की तारीफ़ करते हुये उसके कंधे पर हाथ रखते हुये उसकी पीठ पर हाथ फ़ेरता हुआ अपने हाथ को उसकी कमर तक ले गया तो ऐसा लगा कि ना जाने क्या हुलिया हो! उसका जिस्म चिकना तो था ही, साथ में गर्म और गदराया हुआ था!
“तुम्हारी बॉडी तो अच्छी है… लगता नहीं डॉक्टर हो…”
“हा हा हा… क्यों भैया, डॉक्टर्स की बॉडी अच्छी नहीं हो सकती क्या? हम तो बॉडी के बारे में पढते हैं…”
“ये जगह तो गर्ल फ़्रैंड लाने वाली है…”
“हाँ है तो… मगर अब सबके साथ थोडी ला पाता…”
“मतलब है कोई गर्ल फ़्रैंड?”
“हाँ है तो…” मेरा दिल टूट गया!
“मगर हर जगह उसको थोडी ला सकता हूँ… उसकी अपनी जगह होती है…”
मैने सोचा कि ये लौंडा तो फ़ँसेगा नहीं, इसलिये एक बार दिल बहलाने के लिये फ़िर उसकी पीठ सहलायी!
“तो बाकी जगह पर क्या होगा?”
“हर जगह का अपना पपलू होता है… पपलू जानते हैं ना?”
“हाँ, मगर तुम्हारा मतलब नहीं जानता… हा हा हा…”
“कभी बता दूँगा…”
“अच्छा, तुमने ऊपर देखा है? जहाँ से पानी आता है…”
“हाँ… चलियेगा क्या?”
“हाँ, चलो…”
“वो तो इससे भी ज़्यादा बढिया जगह है… आप तो यहाँ ही कमर सहलाने लगे थे… वहाँ तो ना जाने क्या मूड हो जाये आपका…”
“चलो देखते हैं…” लौंडे ने मेरा इरादा ताड लिया था… आखिर था हरामी…
ऊपर एक और गहरा सा तलाब था और उसके आसपास घनी झाडियाँ और पेड… और वहाँ का उस तरफ़ से रास्ता पत्थरों के ऊपर से था!
“कहाँ जा रहे है… मैं भी आऊँ क्या?” हमको ऊपर चढता देख ज़ाइन ने पुकारा!
“तुम नहीं आ पाओगे…” शफ़ात ने उससे कहा!
“आ जाऊँगा…”
“अबे गिर जाओगे…”
शायद ज़ाइन डर गया! हम अभी ऊपर पहुँचे ही थे कि हमें पास की झाडी में हलचल सी दिखी!
“अबे यहाँ क्या है… कोई जानवर है क्या?”
“पता नहीं…” मगर तभी हमे जवाब मिल गया! हमें उसमें गुडिया दिखी!
“ये यहाँ क्या कर रही है?” शफ़ात ने चड्डी के ऊपर से लँड रगडते हुए कहा!
“कुछ ‘करने’ आयी होगी…”
“‘करने’ के लिये इतनी ऊपर क्यों आयी?”
“इसको ऊपर चढ के ‘करने’ में मज़ा आता होगा…” मैने कहा!
“चुप रहिये… आईये ना देखते हैं…” उसने मुझे चुप रहने का इशारा करते हुये कहा!
उसके ये कहने पर और गुडिया को शायद पिशाब करता हुआ देखने के ख्याल से ही ना सिर्फ़ मेरा बल्कि शफ़ात का भी लँड ठनक गया! अब हम दोनो की चड्डियों के आगे एक अजगर का उभार था! हम चुपचाप उधर गये! गुडिया की गाँड हमारी तरफ़ थी और वो शायद अपनी जीन्स उतार रही थी! उसने अपनी जीन्स अपनी जाँघों तक सरकायी तो उसकी गुलाबी गोल गाँड दिखी… बिल्कुल किसी चिकने लौंडे की तरह… बस उसकी कमर बहुत पतली थी और जाँघें थोडी चौडी थी! उसकी दरार में एक भी बाल नहीं था! फ़िर वो बैठ गयी और शायद मूतने लगी!
“हाय… क्या गाँड है भैया..” शफ़ात ने मेरा हाथ पकड के दबाते हुए हलके से कहा!
“बडी चिकनी है…” मैने कहा!
“बुर कितनी मुलायम होगी… मेरा तो खडा हो गया…” उसने अब मेरा हाथ पकड ही लिया था!
मुझे गुडिया की गाँड देखने से ज़्यादा इस बात में मज़ा आ रहा था कि मेरे साथ एक जवान लडका भी वो नज़ारा देख के ठरक रहा था! देखते देखते मैने शफ़ात की कमर में हाथ डाल दिया और हम अगल बगल कमर से कमर, जाँघ से जाँघ चिपका के खडे थे!
फ़िर गुडिया खडी हुई, खडे होने में कुछ गिरा तो वो ऐसे मुडी कि हमें उसकी चूत और भूरी रेशमी झाँटें दिखीं! उसका फ़ोन गिरा था! उसने अपनी जीन्स ऊपर नहीं की! वो फ़ोन में कुछ कर रही थी… शायद एस.एम.एस. भेज रही थी!
“तनतना गया है क्या?” मैने मौके का फ़ायदा देखा और सीधा शफ़ात के खन्जर पर हाथ रख दिया!
“और क्या? अब भी नहीं ठनकेगा क्या?” उसने कोई प्रतिक्रिया नहीं की, बस हल्की सी सिसकारी भर के बोला!
तभी शायद गुडिया के एस.एम.एस. का जवाब सामने की झाडी में हलचल से आया, जिस तरफ़ वो देख रही थी! उधर झाडी से मेरे बाप का ड्राइवर शिवेन्द्र निकला! गुडिया ने उसको देख के अपनी नँगी चूत उसको दिखाई! उसने आते ही एक झपट्टे में उसको पकड लिया और पास के एक पत्थर पर टिका के उसका बदन मसलने लगा!
“इसकी माँ की बुर… यार साली… ड्राइवर से फ़ँसी है…” शफ़ात ने अपना लँड मुझसे सहलवाते हुये कहा!
“चुप-चाप देख यार.. चुप-चाप…”
देखते देखते जब शिवेन्द्र ने अपनी चुस्त पैंट खोल के चड्डी उतारी तो मैने उसका लँड देखा! शिवेन्द्र साँवला तो था ही, उसका जिस्म गठीला था और लँड करीब १२ इँच का था और नीचे की तरफ़ लटकता हुआ मगर अजगर की तरह फ़ुँकार मारता हुआ था… शायद वो अपने साइज़ के कारण नीचे के डायरेक्शन में था और उसके नीचे उसकी झाँटों से भरे काले आँडूए लटक रहे थे! गुडिया ने उसके लँड को अपने हाथ में ले लिया और शिवेन्द्र उसकी टी-शर्ट में नीचे से हाथ डाल कर उसकी चूचियाँ मसलने लगा! देखते देखते उसने अपना लँड खडे खडे ही गुडिया की जाँघों के बीच फ़ँसा के रगडना शुरु किया तो हमें अब सिर्फ़ उसकी पीठ पर गुडिया के गोरे हाथ और शिवेन्द्र की काली मगर गदरायी गाँड, कभी ढीली कभी भिंचती, दिखाई देने लगी!
इस सब में एक्साइटमेंट इतना बढ गया कि मैने शफ़ात का खडा लँड उसकी चड्डी के साइड से बाहर निकाल के थाम लिया और उसने ना तो ध्यान दिया और ना ही मना किया! बल्कि और उसने अपनी उँगलियाँ मेरी चड्डी की इलास्टिक में फ़ँसा कर मेरी कमर रगडना शुरु कर दिया! वो गर्म हो गया था!
फ़िर शिवेन्द्र गुडिया के सामने से हल्का सा साइड हुआ और अपनी पैंट की पैकेट से एक कॉन्डोम निकाल के अपने लँड पर लगाने लगा तो हमें उसके लँड का पूरा साइज़ दिखा! जब वो कॉन्डोम लगा रहा था, गुडिया उसका लँड सहला रही थी!
“बडा भयँकर लौडा है साले का…” शफ़ात बोला!
“हाँ… और चूत देख, कितनी गुलाबी है…”
“हाँ, बहनचोद… इतना भीमकाय हथौडा खायेगी तो मुलायम ही होई ना…”
शिवेन्द्र ने गुडिया की जीन्स उतार दी और फ़िर खडे खडे अपने घुटने मोड और सुपाडे को जगह में फ़िट कर के शायद गुडिया की चूत में लौडा दिया तो वो उससे लिपट गयी! कुछ देर में गुडिया की टाँगें शिवेन्द्र की कमर में लिपट गयी! वो पूरी तरह शिवेन्द्र की गोद में आ गयी! शिवेन्द्र अपनी गाँड हिला हिला के उसकी चूत में लँड डालता रहा! उसने अपने हाथों से गुडिया की गाँड दबोच रखी थी!
“भैया… कहाँ हो??? भैया… चाचा… चाचा…” तभी नीचे से आवाज़ आयी! ज़ाइन था, जिसकी आवाज़ शायद गुडिया और शिवेन्द्र ने भी सुनी! शिवेन्द्र हडबडाने लगा! जब आवाज़ नज़दीक आने लगी तो दोनो अलग हो गये और जल्दी जल्दी कपडे पहनने लगे!
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RE: Hindi Lesbian Stories समलिंगी कहानियाँ
शिवेन्द्र पहले भाग गया, गुडिया ने भागते भागते मुझे देख लिया! शफ़ात ने अपना लँड चड्डी में कर लिया! तभी ज़ाइन आ गया मगर जब ज़ाइन आया तो उसने मेरे और शफ़ात की चड्डियों में सामने उभरे हुये लँड देखे!
“क्या हुआ? साले, इतनी गलत टाइम में आ गया…” शफ़ात बोला!
“क्यों, क्या हुआ?”
“कुछ नहीं…”
मगर ज़ाइन की नज़र हमारे लँडों से हटी नहीं क्योंकि उस समय हम दोनो के ही लौडे पूरी तरह से उफ़न रहे थे! मेरा लँड चड्डी में नीचे आँडूओं की तरफ़ था इसलिये उसका तना मुड के सामने से बहुत बडा उभार बना रहा था, जब्कि शफ़ात का लँड उसकी राइट जाँघ की तरफ़ सीधा कमर के डायरेक्शन में खडा था जिस कारण उसकी पूरी लेंथ पता चल रही थी! बदन की गर्मी से हमारे बदन तो सूख गये थे मगर चड्डियाँ हल्की गीली थी!
“साले टाइम देख के आता ना…”
“किसका टाइम?”
“भोसडी के… लौडे का टाइम…” शफ़ात ने खिसिया के कहा!
“देख क्या रहा है?” उसने जब ज़ाइन को कई बार अपने लँड की तरफ़ देखता हुआ देखा तो पूछा!
“कुछ नहीं…”
“कुछ नहीं देखा तो बेहतर होगा… वरना चल नहीं पायेगा…”
मैं चाह रहा था, या तो शफ़ात ज़ाइन को रगडना शुरु कर दे या वहाँ से भगा दे! मगर वैसा कुछ नहीं हुआ!
“चलो भैया नीचे चलते हैं… देखें तो कि फ़ूल मसलने के बाद कितना खिल रहा है…” शायद शफ़ात के दिमाग पर गुडिया का नशा चढ गया था!
“चलो” मैने भारी मन से कहा मगर मैने फ़िर भी ज़ाइन हाथ पकड लिया!
“हाथ पकड के चलो वरना गिर जाओगे…”
हम जिस रास्ते से आये थे वो चढने के टाइम तो आसान था मगर उतरने में ध्यान रखना पड रहा था क्योंकि पानी का बहाव तेज़ था! फ़िर एक जगह काफ़ी स्टीप उतार था! शफ़ात तो जवानी के जोश में उतर गया मगर ज़ाइन को मेरी मदद की ज़रूरत पडी! पहले मैं नीचे कूदा फ़िर ज़ाइन को उतारा और उतरने में पहले तो उसकी कमर पकडनी पडी जिसमें एक बार तो उसके पैर का तलवा मेरे होंठों से छू गया, और फ़िर जब उसको नीचे उतारा तो जान-बूझ के उसकी कमर में ऐसे हाथ डाला कि आराम से काफ़ी देर उसकी गदरायी गाँड की गुलाबी गोल फ़ाँकों पर हथेली रख रख के दबाया! मुझे तो उसकी चिकनी गाँड दबा के फ़िर मज़ा आ गया और छोडते छोडते भी मैने अपनी हथेली उसकी पूरी दरार में फ़िरा दी! ज़ाइन हल्का सा चिँहुक गया और उसने आगे चलते शफ़ात की तरफ़ देखा! शफ़ात भी मेरे सामने चड्डी पहने पत्थरों पर उतरता हुआ बडा मादक लग रहा था! उसकी गाँड कभी मटकती, कभी टाँगें फैलती, कभी पैर की माँसपेशियाँ तनाव में हो जातीं, कभी गाँड भिंचती! मैने बाकी की उतराई में ज़ाइन की कमर में हाथ डाले रखा!
“हटाइये ना…” उसने कहा!
“अबे गिर जायेगा.. पकड के रखने दे…” मैने कहा!
नीचे तलाब में समाँ अभी भी मस्ती वाला था, सब जोश में थे! खेल-कूद चल रहा था!
“आओ ना, ज़ाइन को गुफ़ा दिखाते हैं…” मैने कहा!
“आप दिखा दीजिये, मुझे कुछ और देखना है ज़रा…” शफ़ात ने जल्दबाज़ी से उतरते हुये कहा!
“कैसी गुफ़ा?” ज़ाइन ने पूछा!
“अभी दिखता हूँ… बहुत सैक्सी जगह है…” मैने जानबूझ के उस शब्द का प्रयोग किया था! मैने ज़ाइन का हाथ पकडा और पहले उसको पानी के नीचे ले गया क्योंकि उसके पीछे जाने का रास्ता उसके नीचे से ही था! फ़िर मैने जब मुड के देखा तो शफ़ात अपनी गीली चड्डी पर ही कपडे पहन रहा था! फ़िर मैं और ज़ाइन जब पानी की चादर के पीछे पहुँचे तो वो खुश हो गया!
“सच, कितनी अच्छी जगह है…”
“अच्छी लगी ना तुम्हें?” मैने उसकी कमर में अपना हाथ कसते हुये कहा!
उसको अपने बदन पर मेरे बदन की करीबी का भी आभास हो चला था! उसको लग गया था कि जिस तरह मैने अब उसकी कमर में हाथ डाला हुआ है वो कुछ और ही है!
“उंहू… चाचा क्या…” वो हल्के से इठलाया मगर मैने उसको और इठलाने का मौका ना देते हुये सीधा उसकी गाँड पर हथेली रख कर उसकी गाँड की एक गदरायी फ़ाँक को दबोच लिया और उसको कस के अपने जिस्म के पास खींच लिया!
“उस दिन की किसिंग अधूरी रह गयी थी ना… आज पूरी करते हैं…” मैने कहा!
“मगर चाचा यहाँ? यहाँ नहीं, कोई भी आ सकता है…”
“जल्दी करेंगे, कोई नहीं आयेगा…” मैने उसको और बोलने का मौका ही नहीं दिया और कसके उसको अपने सामने खींचते हुये सीधा उसके गुलाबी नाज़ुक होंठों पर अपने होंठ रख कर ताबडतोड चुसायी शुरु कर दी और उसके लँड पर अपना खडा हुआ लँड दबा दिया! वो शुरु में थोडा सँकोच में था, फ़िर जैसे जैसे उसका लँड खडा हुआ, उसको मज़ा आने लगा! उसने भी मुझे पकड लिया! उसके होंठों का रस किसी शराब से कम नहीं था! उसके होंठों चूसने में उसकी आँखें बन्द हो गयी थी! मैने अपने एक हाथ को उसकी गाँड पर रखते हुये दूसरे को सामने उसके लँड पर रख दिया और देखा कि उसका लँड भी खडा है! मैने उसको मसल दिया तो उसने किसिंग के दरमियाँ ही सिसकारी भरी! मैने फ़िर आव देखा ना ताव और उसकी चड्डी नीचे सरका दी!
शुरु में उसने हल्का सा रोका, मेरा हाथ पकडने की कोशिश भी की मगर जब मैने उसके नमकीन ठनके हुये लँड को हाथ में पकड के दबाना शुरु किया तो वो मस्त हो गया! इस बीच मैने उसकी गाँड फ़ैला के उसकी दरार में अपना हाथ घुसाया और फ़ाइनली अपनी उँगली से उसके छेद को महसूस किया!
“उफ़्फ़… साला क्या सुराख है…” मैने कहा और उसका एक हाथ लेकर अपने लँड पर रख दिया तो उसने जल्द ही मेरे लँड को चड्डी के साइड से बाहर कर के थाम लिया और जैसे उसकी मुठ मारने लगा!
“चाचा.. अआह… कोई आ ना जाये…”
“नहीं आयेगा कोई… एक चुम्मा पीछे का दे दो…”
“ले लीजिये…”
मैने झट नीचे झुकाते हुये उसको पलटा और पहले तो उसकी कमर में ही मुह घुसा के उसके पेट में एक बाँह डाल दी और दूसरे से उसकी गाँड दबाई! फ़िर रहा ना गया तो मैं और नीचे झुका और पहली बार उसके गुलाबी छेद को देखा तो तुरन्त ही उस पर अपनी ज़बान रख दी! उसने सिसकारी भरी!
“अआह… हाय… ज़ाइन हाय…” मैने भी सिसकारी भरी! जब मैं उसकी गाँड पर होंठ, मुह और ज़बान से बेतहाशा चाटने औए चूमने लगा तो वो खुद ही अपनी गाँड पीछे कर कर के हल्का सा आगे की तरफ़ झुकने लगा!
“सही से झुक जाओ…” मैने कहा!
“कोई आयेगा तो नहीं?”
“नहीं आयेगा.. झुक जाओ…”
उसने सामने के पत्थर की दीवार पर अपने दोनो हाथ टेक दिये और ऑल्मोस्ट आधा झुक गया! अब उसकी जाँघें भी फैली हुई थी! मैने उसके गाँड की चटायी जारी रखी, जिसमें उसको भी मज़ा आ रहा था!
पहले दादा! फ़िर बाप… और अब पोता…
तीनों अपनी अपनी तरह से गर्म और सैन्सुअल थे! तीनों ने ही मुझे मज़ा दिया और मेरा मज़ा लिया! ये मेरे जीवन में एक स्पेशल अनुभव था… शायद पहला और आखरी…
मेरे चाटने से उसकी गाँड खुलने लगी थी और उसका छेद और उसके आसपास का एरिया मेरे थूक में पूरी तरह से भीगा था! मैं ठरक चुका था… और वो भी! मैने उसकी गाँड के छल्ले पर उँगली रखी तो वो आराम से आधी अंदर घुस गयी! उसके अंदर बहुत गर्मी थी! मैने उँगली निकाली और उसको चाटा तो मुझे उसका टेस्ट मिला… उसकी नमकीन जवानी का टेस्ट! फ़िर मैं खडा हुआ और उसको कस के भींच लिया और अपना मुह खोल के उसके खुले मुह पर रख दिया तो हम एक दूसरे को जैसे खाने लगे! मैं अब साथ साथ उसकी गाँड में उँगली भी दिये जा रहा था! वो उचक उचक के मेरे अंदर घुसा जा रहा था! हमारे लँड आपस में दो तलवारों की तरह टकरा रहे थे! मैने उसको फ़िर झुकाया और अपनी उँगलियों पर थूक के अपने लँड पर रगड दिया! इस बार मैने उसके छेद को अपने सुपाडे से सहलाया! वो हल्का सा भिंच गया, मगर फ़िर खुल भी गया! जैसे ही सुपाडा थोडा दबा वो खुल भी गया, देखते देखते मैने अपना सुपाडा उसकी गाँड में दे दिया! उसकी गर्म गाँड ने मेरे सुपाडे को भींच लिया! मैने और धक्का दिया, फ़िर मेरा काफ़ी लँड उसके अंदर हो गया तो मैने धक्के देना शुरु कर दिये क्योंकि मुझे पता था कि उसकी बाकी की गाँड धक्कों से ढीली पड के खुल जायेगी! उसको मज़ा देने के लिये मैने उसका लँड थाम के उसकी मुठ मारना शुरु कर दी और फ़िर मेरा लँड उसकी गाँड में पूरा घुसने और निकलने लगा!
वो कभी सीधा खडा हो जाता कभी झुक जाता और उसका लँड मेरे हाथ में हुल्लाड मारने लगा!
“चाचा, अब झड जायेगा… मेरा झड जायेगा… माल गिरने वाला है…” कुछ देर में वो बोला!
मैं भी काँड खत्म करके नीचे जाना चाहता था, इसलिये मैने ना सिर्फ़ अपने धक्के गहरे और तेज़ कर दिये बल्कि उसका लँड भी तेज़ी से मुठियाने लगा! फ़िर उसकी गाँड इतनी कस के भिंची कि मेरा लँड ऑल्मोस्ट लॉक हो गया! फ़िर उसका लँड उछला! जब लँड उछलता, उसकी गाँड का छेद टाइट हो जाता! फ़िर उसके लँड से वीर्य की धार निकली तो मैने अपने हाथ को ऐसे रखा कि उसका पूरा वीर्य मेरी हथेली पर आ गया! मैने उसके वीर्य को उसके लँड पर रगड रगड के उसकी मुठ मारना जारी रखा! फ़िर उसकी एक एक बून्द निचोड ली और अपने धक्के तेज़ कर दिये! मैने अपनी वो हथेली, जो उसके वीर्य में पूरी सन चुकी थी, पहले तो अपने होंठों पर लगाई! उसका वीर्य नमकीन और गर्म था! फ़िर मैने उसको ज़बान से चाटा और फ़ाइनली जब मैं उसको अपने मुह पर क्रीम की तरह रगड रहा था तो मैं बहुत एक्साइटेड हो गया और मेरा लँड भी हिचकोले खाने लगा!
“आह… मेरा भी… मेरा भी झडने वाला है…” मैं सिसकारी भर उठा! और इसके पहले वो समझ पाता, मैने लँड बाहर खींचा और उसको खींच के अपने नीचे करते हुये उसके मुह में लँड डालने की कोशिश की! मगर इसके पहले वो मुह खोलता, मेरे लँड से वीर्य की गर्म मोटी धार निकली और सीधा उसके मुह, चिन, गालों और नाक पर टकरा गयी! वो हडबडाया और इस हडबडाहट में उसका मुह खुला तो मैने अपना झडता हुआ लँड उसके मुह में अंदर तक घुसा के बाकी का माल उसके मुह में झाड दिया!
वो शायद हटना चाहता था, मगर मैने उसको ज़ोर से पकड लिया था… आखिर उसने साँस लेने के लिये जब थूक निगला तो साथ में मेरा वीर्य भी पीने लगा! फ़िर अल्टीमेटली उसने मेरे झडे हुये लौडे को चाटना शुरु कर दिया! मुझे तो मज़ा आ गया! मैने अपने गे जीवन में एक खानदानी अध्याय लिख दिया था!
इस सब के दरमियाँ मैने ये ताड लिया था कि ज़ाइन ने जिस आराम से मेरे जैसे लौडे को घुसवा लिया था और चाटने के टाइम जो उसका रिएक्शन था और जिस तरह उसकी गाँड का सुराख ढीला हुआ था, उसको गाँड मरवाने का काफ़ी एक्स्पीरिएंस था और वो उस तरह का नया नहीं था जिस तरह का मैं शुरु में समझ रहा था! लडका खिलाडी था, काफ़ी खेल चुका था! मगर मुझे ये पता नहीं था कि उसने ये खेल किस किस के साथ खेला था! अब खाने का इन्तज़ाम हो चुका था और शफ़ात वहाँ पहले से बैठा था! गुडिया की रँगत चुदने के बाद उडी उडी सी थी! वो अक्सर शिवेन्द्र से नज़रें मिला रही थी! जब उसने मुझे देखा तो शरमा गयी और कुछ परेशान भी लगी! उसने मुझे देखते हुये देख लिया था! शफ़ात अब सिर्फ़ गुडिया की चूत के सपने संजो रहा था! शिवेन्द्र मस्त था! घर में बीवी थी जिससे दो बच्चे थे और यहाँ उसने ये कॉन्वेंट में पढने वाली चिकनी सी चुलबुली ख़रगोशनी पाल रखी थी! उसका लँड तो हर प्रकार से तर था! अब मुझे ज़ाइन को भी आराम से देखने में मज़ा आ रहा था! चोदने के बाद अब उसकी गाँड जीन्स पर से और भी सैक्सी लग रही थी… वैसे मेरी नज़र शफ़ात के लँड की तरफ़ भी जा रही थी और बीच बीच में मैं शिवेन्द्र को भी देख रहा था जो मुझे मर्दानगी का अल्टीमेट सिम्बल लग रहा था! दोस्तों मुठ मारना बुरी बात है बहूत हो गया मैं कहानी को यहीं ख़तम करता हूँ अब तो अपना हाथ लुंड से हटालो यार
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यार बना प्रीतम - भाग (1)
प्रीतम से परिचय
प्रीतम से मेरा परिचय पहली बार तब हुआ जब मैं शहर में कॉलेज में पढ'ने के लिए आया. हॉस्टिल में जगह ना होने से मैं एक घर ढूँढ रहा था. तब मैं सोलह वर्ष का किशोर था और फर्स्ट एअर में गया था. शहर में कोई भी पहचान का नहीं था, इस'लिए एक होटेल में रुका था.
रोज शाम को कॉलेज ख़तम होते ही मैं घर ढूँढ'ने निकलता. मेरी इच्च्छा शहर के किसी अच्छे भाग में घर लेने की थी. मुझे यह आभास हो गया था कि इस'के लिए काफ़ी किराया देना पडेग और किराया बाँट'ने के लिए किसी साथी की ज़रूरत पडेगी. इसी खोज में था कि कौन मेरे साथ घर शेयर कर'के रहेगा.
एक दिन एक मित्र ने मेरी मुलाकात प्रीतम से करा दी. देखते ही मुझे वह भा गया. वा फाइनल एअर में था; उम्र में मुझसे पाँच छह वर्ष बड़ा होगा. उसका शरीर बड़ा गठा हुआ और सजीला था. हल्की मून्छे थी और नज़र बड़ी पैनी थी. रंग गेहुआ था और चेहरे पर जवानी का एक जोश था. ना जा'ने क्यों उस'के उस मस्ता'ने मर्दा'ने रूप को देख'कर मेरे मन में एक अजीब सी टीस उठ'ने लगी.
मुझे अपनी ओर घूरते देख वह मुस्कराया. उस'ने मुझे बताया कि वह भी एक घर ढूँढ रहा है क्योंकि हॉस्टिल से ऊब गया है. उस'की नज़र मुझे बड़े इंटरेस्ट से देख रही थी. उस'की पैनी नज़र और उसका पुष्ट शरीर देख कर मुझे भी एक अजीब सी मीठी सुर'सरी होने लगी थी.
हम ने तय कर लिया कि साथ साथ रहेंगे और आज से ही साथ साथ घर ढूंढ़ेंगे. शाम को उस'ने मुझे हॉस्टिल के अप'ने कमरे पर आने को कहा. वहाँ से दोनों एक साथ घर ढूँढ'ने जाएँगे ऐसा हमारा विचार था. सारा दिन मैं उस'के विचार में खोया रहा. सच तो यह है कि आज कल मेरी जवानी पूरे जोश में थी और मेरा लंड इस बुरी तरह से खड़ा होता था की रोज रात और दोपहर में भी कॉलेज के बाथ रूम में जा'कर दो तीन बार हस्तमैथुन किए बिना मन नहीं मान'ता था. लड़कियाँ या औरतें मुझे अच्छी तो लग'ती थी पर आज कल गठे हुए शरीर के चिक'ने जवान मर्द भी मुझे आकर्षित कर'ने लगे थे. और यह आकर्षण बहुत तीव्र था. ख़ास कर तब से जब से मैने गे सेक्स की कुच्छ सचित्र किताबें देख ली थी. सच तो यह है कि मुझे अहसास होने लगा था कि मैं बाइसेक्सुअल हूँ.
पिच्छाले साल भर से मूठ मारते हुए मैं अक्सर यही कल'पना कर'ता था कि कोई जवान मेरी गान्ड मार रहा है या मैं किसी का लंड चूस रहा हूँ. या फिर मा की उम्र की किसी अधेड भरे पूरे बदन की महिला की गान्ड मार रहा हूँ. मुझे अब ऐसा लग'ने लगा था कि औरत हो या मर्द, जो भी हो पर जल्दी किसी के साथ मेरी कामलीला शुरू हो. मुझे यहाँ नये शहर में संभोग के लिए कोई नारी मिलना तो मुश्किल लग रहा था, मेरे जैसे शर्मीले लड़'के के लिए तो यह करीब करीब असंभव था. इस'लिए आज प्रीतम को देख'कर मैं काफ़ी बेचैन था. अगर हम साथ रहे तो यह गठीला नौजवान मेरे करीब होगा, ज़रूर कुच्छ चक्कर चल जाएगा, इस'की मुझे पूरी आशा थी! पर मुझे यह पक्का पता नहीं था कि वह मेरे बारे में क्या सोच'ता है. खुद पहल कर'ने का साहस मुझ'में नहीं था.
उस शाम इतनी बारिश हुई कि मैं बिलकुल भीग गया. मैं जब प्रीतम के कमरे में पहुँचा तो सिर्फ़ जांघिया और बनियान पह'ने हुए वह कमरे में रब्बर की हवाई चप्पल पहन'कर घूम रहा था. मुझे देख उस'के चेहरे पर एक खुशी की लहर दौड़ गयी. मुझे कमरे में लेते हुए बोला
आ गया सुकुमार, मुझे लगा था कि बारिश है तो तू शायद नहीं आएगा. इसीलिए मैं तैयार भी नहीं हुआ. तू बैठ, मैं कपड़े पहन'ता हूँ और फिर चलते हैं. मेरे भीगे कपड़े देख कर वह बोला.
यार, तू सब कपड़े उतार के मुझे दे दे, यह तौलिया लपेट कर बैठ जा, तब तक मैं प्रेस से ये सूखा देता हूँ. नहीं तो सर्दी लग जाएगी तुझे, वैसे भी तू नाज़ुक तबीयत का लग रहा है. मैने सब कपड़े उतारे और तौलिया लपेट'कर कुर्सी में बैठ गया. मेरे कपड़े उतार'ने पर मुझे देख कर वह मज़ाक में बोला.
सुकुमार, तू तो बड़ा चिकना निकला यार, लड़कियों के कपड़े पहन ले और बॉल बढ़ा ले तो एक खूबसूरत लड़'की लगेगा. वह प्रेस ऑन कर'के कपड़े सूखा'ने लगा और मुझसे बातें कर'ने लगा. बार बार उस'की नज़र मेरे अधनन्गे जिस्म पर से घूम रही थी. मैं भी तक लगा कर उस'के कसे हुए शरीर को देख रहा था. मन में एक अजीब आकर्षण का भाव था. हम दोनों में ज़मीन आसमान का अंतर था और लग'ता है कि यही अंतर ह'में एक दूसरे की ओर आकर्षित कर रहा था.
मेरे छरहरे चीक'ने गोरे दुबले पतले पचपन किलो और साढ़े पाँच फुट के शरीर के मुकाबले में उसका गठा हुआ पुष्ट शरीर करीब पचहत्तर किलो वजन का होगा. मुझसे वह करीब चार पाँच इंच ऊँचा भी था. भरी हुई पुष्ट छा'ती का आकार और चूचुकों का उभार बनियान में से दिख रहा था. छा'ती मेरी ही तरह एकदम चिकनी थी, कोई बाल नहीं थे.
मैं सोच'ने लगा कि आख़िर क्यों उस'के चूचुक इत'ने उभरे हुए दिख रहे हैं. फिर मुझे ध्यान आया कि औरतों की तरह ही कयी मर्दों के भी चूचुक उत्तेजित होने पर खड़े हो जाते हैं. मैने समझ लिया कि शायद मुझे देख'कर उसका यह हाल हुआ हो. मेरा भी हाल बुरा था और मेरा लंड उस'के अर्धनग्न शरीर को पास से देख'कर खड़ा होना शुरू हो गया था.
मेरा ध्यान अब उस'की मासल जांघों और बड़े बड़े चूतदों पर गया. उसका जांघिया इतना फिट बैठ था की चूतदों के बीच की लाइन सॉफ दिख रही थी. जब भी वह घूम'ता तो मेरी नज़र उस'के जांघीए में छुपे हुए लंड पर पड़'ती. कपडे के नीचे से सिकुडे और शायद आधे खड़े आकार में ही उसका उभार इतना बड़ा था की जब मैने यह अंदाज़ा लगाना शुरू लिया कि खड होकर यह कैसा दिखेगा तो मैं और उत्तेजित हो उठा.
मेरी नज़र बार बार उस'की चप्पलो पर भी जा रही थी. मेरा शुरू से ही चप्पालों की ओर बहुत आकर्षण रहा है. ख़ास कर'के रब्बर की हवाई चप्पलें मुझे दीवाना कर देती हैं. मेरे पास भी मेरी पुरानी चप्पलो के छह जोड़े हैं. उन्हें हमेशा धो कर सॉफ रख'ता हूँ क्योंकि रोज के हस्तमैथुन में चप्पलो का मेरे लिए बड महत्व है. मूठ मारते समय मैं पहले उनसे खेल'ता हूँ, चूम'ता हूँ, चाट'ता हूँ और फिर मुँह में लेकर चबाते हुए झड जाता हूँ. यही कल'पना कर'ता हूँ कि वो चप्पलें किसी मतवाली नारी या जवान मर्द की हैं. कभी यह कल'पना कर'ता हूँ कि कोई जवान मुझे रेप कर रहा है और मुझे चीख'ने से रोक'ने के लिए मेरे मुँह में अपनी चप्पल ठूंस दी है.
प्रीतम की सफेद रब्बर की चप्पलें भी एकदम सॉफ सुथरी और धुली हुई थी. पहन पहन कर घिस कर बिलकुल मुलायम और चिकनी हो गयी थी. जब प्रीतम चल'ता तो वे चप्पलें सपाक सपाक की आवाज़ कर'के उस'के पैरों से टकरातीं. उन्हें देख'कर मेरा लंड और खड हो गया. मैं सोच'ने लगा कि काश ये खूबसूरत चप्पलें मुझे मिल जाएँ!
अब तक कपड़े सूख गये थे और प्रीतम ने मुझे पहन'ने के लिए वे वापस दिए. मुझे उस'ने आप'ने शरीर और चप्पालों की ओर घूरते देख लिया था पर कुच्छ बोला नहीं, सिर्फ़ मुस्करा दिया. मैं कुर्सी पर से उठ'ने को घबरा रहा था कि उसे तौलिया में से मेरा तन कर खड लंड ना दिख जाए. उस'ने शायद मेरी शरम भाँप ली क्योंकि वह खुद भी मूड कर मेरी ओर पीठ कर'के खड हो गया और कपड़े पहन'ने लगा.
हम लोग बाहर निकले. अब हम ऐसे गप्पें मार रहे थे जैसे पूरा'ने दोस्त हों. उस'ने बताया कि पिछले हफ्ते उस'ने एक घर देखा था जो उसे बहुत पसंद आया था पर एक आदमी के लिए बड़ा था. वह मुझे फिर वहीं ले गया. फ्लैट बड़ा अच्च्छा था. एक बेड रूम, बड बैठ'ने का कमरा, एक किचन और बड़ा बाथ रूम. घर में सब कुच्छ था, फर्नीचर, बर्तन, गैस, ह'में सिर्फ़ अप'ने कपड़े लेकर आने की ज़रूरत थी. किराया कुच्छ ज़्यादा था पर प्रीतम ने मेरी पीठ पर प्यार से एक चपत मार कर कहा कि घर मैं पसंद कर लूँ, फिर ज़्यादा हिस्सा वह दे देगा. कल से ही आने का पक्का कर के हम चल पड़े.
हम दोनों खुश थे. मुझे लग'ता है कि हम दोनों को अब तक मन में यह मालूम हो गया था कि एक साथ रह'ने पर कल से हम एक दूसरे के साथ क्या क्या करेंगे. प्रीतम मेरा हाथ पकड़'कर बोला.
चल यार एक पिक्चर देखते हैं. मैने हामी भर दी क्योंकि प्रीतम से अलग होने का मेरा मन नहीं हो रहा था. प्रीतम ने पिक्चर ऐसी चुनी कि जब हम अंदर जा'कर बैठे तो सिनेमा हॉल एकदम खाली था. मैने जब उससे कहा कि पिक्चर बेकार होगी तो वह हंस'ने लगा.
बड़ा भोला है तू यार, यहाँ कौन पिक्चर देख'ने आया है? ज़रा तेरे साथ अकेले में बैठ'ने को तो मिलेगा. उस'की आवाज़ में छुपी शैतानी और मादक'ता से मेरा दिल धडक'ने लगा और मैं बड़ी बेसब्री से अंधेरा होने का इंतजार कर'ने लगा.
पिक्चर शुरू हुई और सारी बत्तियाँ बुझा दी गयीं. हम दोनों पीछे ड्रेस सर्कल में बैठे थे. दूर दूर तक और कोई नहीं था, कोने में एक दो प्रेमी युगल अलग बैठे थे. सिर्फ़ हमीं दोनों लड़'के थे. मेरे मन में ख्याल आया कि असल में उन युगलों में और हम'में कोई फरक नहीं है. हम भी शायद वही करेंगे जो वे कर'ने आए हैं. मेरा तो बहुत मूड था पर अभी भी मैं पहल कर'ने में डर रहा था. मैने आख़िर यह प्रीतम पर छोड दिया और देख'ने लगा कि उस'के मन में क्या है. मेरा अंदाज़ा सही निकला. अंधेरा होते ही प्रीतम ने बड़े प्रेम से अपना एक हाथ उठ'कर मेरे कंधों पर बड़े याराना अंदाज में रख दिया. फुसफुसा कर हल्की आवाज़ में मेरे कान में वह बोला.
यार सुकुमार, कुच्छ भी कह, तू बड़ा चिकना छ्हॉकरा है दोस्त, बहुत कम लड़कियाँ भी इतनी प्यारी होती हैं. मैने भी अपना हाथ धीरे से उस'की जाँघ पर रखते हुए कहा.
यार प्रीतम, तू भी तो बड मस्त तगड़ा और मजबूत जवान है. लड़कियाँ तो तुझ पर खूब मर'ती होंगीं? उसका हाथ अब नीचे खिसक'कर मेरे चेहरे को सहला रहा था. मेरे कान और गाल को बड़े प्यार से अपनी उंगलियों से धीरे धीरे गुदगुदी कर'ता हुआ वह अपना सिर बिलकुल मेरे सिर के पास ला कर बोला
मुझे फराक नहीं पड़ता, वैसे भी छ्हॉकरियों में मेरी ज़्यादा दिलचस्पी नहीं है. मुझे तो बस तेरे जैसा एकाध चिकना दोस्त मिल जाए तो मुझे और कुच्छ नहीं चाहिए. और उस'ने झुक कर बड़े प्यार से मेरा गाल चूम लिया.
मुझे बहुत अच्च्छा लगा, बिलकुल ऐसे जैसे किसी लड़'की को लग'ता होगा अगर उसका प्रेमी उसे छूता होगा. मेरा लंड अब तक पूरी तरह खड़ा हो चुका था. मैने अपना हाथ अब साहस कर'के बढ़ाया और उस'की पैंट पर रख दिया. हाथ में मानो एक बड तंबू आ गया. ऐसा लग'ता था कि पैंट के अंदर उसका लंड नहीं, कोई बड़ा मूसल हो. उस'के आकार से ही मैं चकरा गया. इतना बड़ा लंड! अब तक हम दोनों के सब्र का बाँध टूट चुका था. प्रीतम ने अपना हाथ मेरी छा'ती पर रखा और मेरे चूचुक शर्त के उपर से ही दबाते हुए मुझे बोला.चल बहुत नाटक हो गया, अब ना तड़पा यार, एक चुम्मा दे जल्दी से. मैने अपना मुँह आगे कर दिया और प्रीतम ने अपना दूसरा हाथ मेरे गले में डाल कर मुझे पास खींच'कर अप'ने होंठ मेरे होंठों पर रख दिए. हमारा यह पहला चुंबन बड़ा मादक था. उस'के होंठ थोड़े खुरदरे थे और उस'की छोटी मूँछहों से मेरे ऊपरी होंठ पर बड़ी प्यारी गुदगुदी हो रही थी. उस'की जीभ हल्के हल्के मेरे होंठ चाट रही थी. उस'के मुँह से हल्की हल्की आफ्टर शेव की खुशबू आ रही थी. मेरा मन हो रहा था कि उस'के मुँह में जीभ डाल दूँ या उस'की जीभ चूस लूँ, किसी भी तरह उस'के मुखरस का स्वाद लूँ, पर अब भी थोड़ा शरमा रहा था.
हम एक दूसरे को बेतहाशा चूमते हुए अप'ने अप'ने हाथों से एक दूसरे के लंड टटोल रहे थे. हमारी चूमा चॅटी अब ह'में इतनी उत्तेजित कर उठी थी कि मुझे लगा कि वहीं उसका लंड चूस लूँ. पर जब हमारे आस पास अचानक होती हलचल से ये समा टूट तो हम'ने चुंबन तोड़ कर इधर उधर देखा. पता चला कि काफ़ी दर्शक हॉल में आना शुरू हो गये थे. वे सब हमारे आस पास बैठ'ने लगे थे. धीरे धीरे काफ़ी भीड़ हो गयी. ह'में मजबूरन अपना प्रेमालाप बंद करना पड़ा. अप'ने उछलते लंड पर मैने किसी तरह काबू किया. प्रीतम भी खिसक'कर बैठ गया और वासना थोड़ी दब'ने पर बोला.
चल यार, चलते हैं, यहाँ बैठ'कर अब कोई फ़ायदा नहीं. साली भीड़ ने आ'कर अपनी 'के एल डी' कर डी मैने पूचछा कि 'के एल डी' का मतलब क्या है तो हंस कर बोला.
यार, इसका मतलब है - खड़े लंड पर धोखा. हम बाहर निकल आए. एक दूसरे की ओर देख'कर प्यार से हँसे और हाथ में हाथ लिए चल'ने लगे. प्रीतम ने कहा
अच्च्छा हुआ यार, असल में ह'में अपना पहला रोमास आराम से अप'ने घर में मज़े ले लेकर करना चाहिए, ऐसा च्छूप कर जल्दी में नहीं. चल, कल रात को मज़ा करेंगे. मैने चलते चलते धीरे से पूचछा
प्रीतम, मेरे राजा, यार तेरा लंड लग'ता है बहुत बड़ा है, कितना लंबा है? वह हंस'ने लगा.
क्रमशः................
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07-26-2017, 11:51 AM,
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यार बना प्रीतम - भाग (2)
गतान्क से आगे........
डर लग रहा है? कल खुद नाप लेना मेरी जान, पर घबरा मत, बहुत प्यार से दूँगा तुझे. प्रीतम का लंड लेने की कल'पना से मैं मदहोश सा हो गया. अब हम चलते चलते एक बाग में से गुजर रहे थे. अंधेरा था और आगे पीछे कोई नहीं था. प्रीतम ने अपना हाथ मेरी कमर में डाला और पैंट के अंदर डाल कर मेरे नितंब सहला'ने लगा. जब उस'की एक उंगली मेरे गुदा के छेद को रगड़'ने और मसल'ने लगी तो मैं मस्ती से सिसक उठा. प्रीतम मेरी उत्तेजना देख कर मुस्कराया और हाथ बाहर निकाल कर बीच की उंगली मुँह में लेकर चूस'ने लगा. मैने जब उस'की ओर देखा तो वह मुस्कराया पर कुच्छ बोला नहीं.
अब उस'ने फिर से हाथ मेरी पैंट और जांघीए के अंदर डाला और अपनी गीली उंगली धीरे धीरे मेरे गुदा में घुसेड दी. मैं मस्ती और दर्द से चिहुन्क कर रह गया और रुक गया. वह बोला.
चलते रहो यार, रूको नहीं, दर्द होता है क्या? दर्द ना हो इस'लिए तो मैने उंगली थूक से गीली की थी और उस'ने मुझे पास खींच'कर फिर चूमना शुरू कर दिया. मुझे अब बड़ा सुख मिल रहा था, लंड ज़ोर से खड़ा था और गान्ड में भी एक बड़ी मीठी कसक हो रही थी. प्रीतम अब पूरी उंगली अंदर डाल चुका था और इधर उधर घुमा रहा था जैसे मेरी गान्ड का अंदर से जायज़ा ले रहा हो. मुझे थोड़ा दर्द हो रहा था पर उस'में भी एक मिठास थी. जब मैने यह बात उससे कही तो फिर उस'ने मुझे ज़ोर से चूम लिया.
तू सच्चा गान्डू है मेरे यार मेरी तरह, तभी इतना मज़ा आ रहा है गान्ड में उंगली का. पर एक ही उंगली में तेरा यह हाल है मेरे यार, फिर आगे क्या होगा? खैर तू यह मुझ पर छोड दे. तू मेरे लंड का ख्याल रखना, मैं तेरी इस प्यारी कुँवारी गान्ड का ख्याल रखूँगा, बहुत प्यार से लूँगा तेरी. फाड़ूँगा नहीं.
मैं अब मानो हवा में चल रहा था. लग'ता था की कभी भी झड जाऊँगा. मैने भी एक हाथ उस'की पैंट में डाल दिया और उस'के चूतड सहला'ने लगा. बड़े ठोस और भरे हुए चूतड थे उसके. प्रीतम मुझे चूम'ता हुआ मेरी गान्ड में उंगली कर'ता रहा और हम चलते रहे. प्रीतम आगे बोला.
राजा, असल में मैं देख रहा था कि कितनी गहरी और कसी है तेरी गान्ड . एकदम मस्त और प्यारी निकली यार. लग'ता है कि कुँवारी है, कभी मरवाई नहीं लग'ता है? मैने जब कुँवारा होने की हामी भरी तो वह बड खुश हुआ. मुझे लगा ही इस'की सकराई देख कर. यार तू इस'में कुच्छ तो डाल'ता होगा मूठ मारते समय. मैने कुच्छ शरमा कर कहा कि कभी कभी पतली मोमबत्ती या पेन मैं ज़रूर डाल'ता था. वह खुश होकर बोला.
वाहा, मेरे यार, राजा, तूने अपनी कुँवारी गान्ड लग'ता है सिर्फ़ मेरे लिए संभाल कर रखी है, मज़ा आ गया राजा. उसका हॉस्टिल आ गया था. उस'ने उंगली मेरी गान्ड में से निकाली और हम अलग हो गये. हॉस्टिल के गेट पर खड़े होकर उस'ने मुझसे कहा.
देख मेरे प्यारे, आज मूठ नहीं मारना, मैं भी नहीं मारूँगा. अपनी मस्ती कल के लिए बचा कर रख, समझ हमारा हनीमून है, ठीक है ना? मैने हामी भरी पर मेरा लंड अभी भी खड़ा था और उसे मैं दबा कर बैठ'ने की कोशिश कर रहा था. यह देख कर उस'ने पूच्छा.
वीक्स है ना तेरे पास? जब मैने हां कहा तो बोला.
आज रात और कल दिन में वीक्स लगा लेना अप'ने लौडे पर. जलेगा थोड़ा पर देख एकदम ठंडा हो जाएगा. कल रात नहा कर धो डालना, आधे घंटे में फिर तनताना जाएगा. हम'ने एक दूसरे से विदा ली. हम'ने सामान लेकर शाम को सीधा नये घर में मिल'ने का प्लान बनाया. मेरे साम'ने अब प्रीतम ने बड़ी शैतानी से अपनी वही उंगली, जो उस'ने मेरी गान्ड में की थी, मुँह में ले ली और चूस'ने लगा.
इनडाइरेक्ट स्वाद ले रहा हूँ प्यारे तेरी मीठी गान्ड का, कल एकदम डाइरेक्ट स्वाद मिलेगा मुझे. वैसे बड़ा मीठ टेस्ट है, मैं तो खा जाऊँगा कल उसे मैं फिर शरमा गया और वापस चल पड़ा. कामुक'ता से मेरा बुरा हाल था. मन में प्रीतम छ्चाया हुआ था. मूठ मार'ने को मैं मरा जा रहा था पर प्रीतम को दिए वायदे के अनुसार मैने लंड पर वीक्स लगाया और फिर एक नींद की गोली लेकर सो गया.
साथ रह'ने की शुरुआत
दूसरे दिन शुक्रवार था और कॉलेज जल्दी छूट'ता था. दिन भर मेरी हालत खराब रही, वीक्स के कारण लंड तो नहीं खड हुआ पर उसमे अजीब से मीठी चुभन होती रही. छ्हुट्टी होने पर मैने होटेल आ'कर अपना सूटकेस बाँधा और नये घर में आ गया. प्रीतम अभी नहीं आया था. मैने घर जमाना शुरू कर दिया जिससे प्रीतम के आने पर जल्दी से जल्दी अपना असली काम शुरू किया जा सके. बेड रूम में दो पलंग अलग अलग थे. मैने वे जोड़ दिए. मुझे ऐसा लग रहा था जैसे कि मैं कोई नयी दुल्हन हूँ जो अप'ने पिया का इंतजार कर रही हो.
अपनी चप्प्लो की जोड़ी में से मैने गुलाबी रंग की चप्पल निकाल कर पहन ली. मेरे गोरे रंग पर वह फॅब'ती थी यह मैं जान'ता था. फिर मैं खूब नहाया, बदन पर खुशबूदार पाउडर लगाया और सिर्फ़ एक जांघिया और हाफपैइंट पहन कर प्रीतम का इंतजार कर'ने लगा.
प्रीतम को रिझा'ने को मेरा ऊपरी गोरा चिकना बदन जानबूझ'कर मैने नंगा रखा था. हाफपैइंट भी एकदम छोटी थी जिससे मेरी गोरी गोरी जांघें आधे से ज़्यादा दिख रही थी. वीक्स धो डाल'ने से कुच्छ ही मिनटों में मेरा लंड खड़ा होने लगा. प्रीतम के आने के समय तक मैं पूरा कामातूर हो चुका था.
आख़िर बेल बजी और दौड़ कर मैने प्रीतम के लिए दरवाजा खोला. उस'ने मेरा अधानांगा बदन और हाफपैइंट में से सॉफ दिखते खड़े लंड का आकार देखा तो उस'की आँखों में कामवासना झलक उठी. मुझे लगा कि शायद वह मेरा चुंबन ले पर उस'ने आप'ने आप पर काबू रखा. अपना सूटकेस कमरे में रख कर वह सीधा नहा'ने चला गया. मुझे बोल गया कि मैं सब दरवाजे बंद कर लूँ और सूटकेस में से उस'के कपड़े और किताबें निकाल कर जमा दूं. वह भी इस तरह अधिकार से बोल रहा था जैसे मैं उसका दोस्त नहीं, पत्नी हूँ. मैने बड़ी खुशी से वह काम किया और उसका इंतजार कर'ने लगा.
दस मिनिट बाद प्रीतम फ्रेश होकर बाहर आया. वह सिर्फ़ तौलिया लपेटे हुए था. मैं बेड रूम में बैठ'कर उसका इंतजार कर रहा था. उस ने आ'कर बेड रूम का दरवाजा बंद किया और मुस्कराता हुआ मेरी ओर मुडा. उसका गठा हुआ सुडौल शरीर मैं देख'ता ही रह गया. गोरी तगडी जांघें, मजबूत पेशियों वाली बाँहें, पुष्ट छा'ती और उनपर भूरे रंग के चूचुक. उस'के चूचुक काफ़ी बड़े थे, करीब करीब बेरों जीत'ने बड़े. तौलिया में इतना बड़ा तंबू बन गया था जैसे की कोई बड़ा डंडा अंदर से टीका कर लगाया हो.
प्रीतम मेरी ओर बढ़ा और मुझे बाँहों में भर के चूम'ने लगा. उस'के बड़े बड़े थोड़े खुरदरे होंठों का मेरे होंठों पर अहसास मुझे मदहोश कर रहा था. चूमते चूमते धकेल'ता हुआ वह मुझे पलंग पर ले गया और पटक'कर मेरे ऊपर चढ बैठा. फिर बेतहाशा मुझे अपनी प्रेमिका जैसा चूम'ने लगा. मेरा मुँह अपनी जीभ से खोल'कर उस'ने अपनी लंबी जीभ मेरे मुँह में डाल दी और मेरे तालू, जीभ और गले को अंदर से चाट'ने लगा. मैने भी उस'की जीभ चूसना शुरू कर दी. वह गीली रस भरी जीभ मुझे किसी मिठायी की तरह लग रही थी. आख़िर उस'के मादक मुखरस का स्वाद मुझे मिल ही गया था.
चूमते चूमते वह अप'ने हाथ मेरे पूरे शरीर पर फिरा रहा था. मेरी पीठ, कंधे, कमर और मेरी च्छा'टी को उस'ने सहलाया और हाथ से मेरी जांघें दबा'ने लगा. फिर झुक कर मेरे गुलाबी चूचुक चूस'ने लगा. मेरे चूचुक ज़रा ज़रा से हैं, किसमिस जैसे, पर उस'की जीभ के स्पर्श से अंगूर से कड़े हो गये.
क्या चूचुक हैं यार तेरे. लड़कियों से भी खूबसूरत! कह'कर उस'ने मेरी हाफपैइंट उस'ने खींच कर निकाल दी और फिर उठ कर मेरे साम'ने बैठ कर मुझे अपनी भूकी आँखों से ऐसे देख'ने लगा जैसे कच्चा चबा जाएगा. मेरे शरीर पर अब सिर्फ़ एक टांग छोटा सफेद पैंटी जैसा जांघिया था जिस'में से मेरा तन्नाया हुआ लंड उभर आया था. असल में वह एक पैंटी ही थी जो कल मैं खरीद लाया था.
वाह यार, क्या खूबसूरत चिकना लौंडा है तू, और जांघिया भी एकदम सेक्सी है, पैंटी है क्या? चल अपना असली माल तो जल्दी से दिखा. लौंदियो से कम खूबसूरत नहीं होगा तेरा माल कहते हुए उस'ने आख़िर मेरा जांघिया खींच कर अलग कर दिया और मुझे पूरा नग्न कर दिया. मेरा शिश्न जांघीए से छूटते ही तंन से खड हो गया. प्रीतम ने उसे देख'कर सीटी बजाई और बोला.
वाह मेरी जान, क्या माल है, ऐसा खूबसूरत लंड तो आज तक रंगीली किताबों में भी नहीं देखा. असल में मेरा लंड बहुत सुंदर है. आज तक मेरा सब से बड दुख यही था कि मैं खुद उसे नहीं चूस सकता. मेरा लंड मैने बहुत बार नापा था. डेढ इंच मोटा और साढ़े पाँच इंच लंबा गोरा गोरा डंडा और उसपर खिला हुआ लाल गुलाबी बड़ी लीची जितना सुपाडा. गोरे डंडे पर कुच्छ हल्की नीली नाज़ुक नसें भी हैं.
मस्ती में थिरकते हुए उस लंड को देख'कर प्रीतम का भी सब्र टूट गया. वह झट से पलंग पर चढ गया और हाथ में लेकर उसे हौले हौले दबाते हुए अपनी हथेली में भर लिया. दूसरे हथेली में उस'ने मेरी गोरी गोरी गोटियों को पकड़ लिया. मेरी झाँटें भी छोटी और रेशम जैसी मुलायम हैं. प्रीतम उन'में उंगलियाँ चलाते हुए बोला.
तू तो माल है मेरी जान, इतना कमसिन है कि झाँटें भी अभी पूरी नहीं उगी. और ये लाल लीची, हाय खा जा'ने को जी कर'ता है, अब चख'ना पडेग नहीं तो मैं पागल हो जाऊँगा. झुक'कर उस'ने बड़े प्यार से मेरे सुपाडे को चूम और अप'ने गालों, आँखों और होंठों पर घुमा'ने लगा. फिर अपनी जीभ निकाल कर उसे चाट'ने लगा. उस'की खुरदरी जीभ के स्पर्श से मेरे लंड में इतना मीठा संवेदन हुआ कि मैं सिसक उठ और बोला.
प्रीतम मेरे राजा, मत कर यार, मैं झड जाऊँगा. वह जीभ से पूरे लंड को चाट'ता हुआ बोला.
तो झड जा यार, तेरा रस पीने को तो मैं कब से बेताब हूँ, चल तुझे चूस ही डाल'ता हूँ, अब नहीं रहा जाता मुझसे. और उस'ने अपना मुँह खोल कर पूरा लंड निगल लिया और गन्ने जैसा चूस'ने लगा. मुझे जो सुख मिला वह कल'पना के बाहर था. मैने कसमसा कर उसका सिर पकड़'कर अप'ने पेट पर दबा लिया और गान्ड उचका उचका कर उस'के मुँह को चोद'ने की कोशिश कर'ने लगा. प्रीतम की जीभ अब मेरे लंड को और सुपाडे को घिस घिस कर मुझे और तड़पा रही थी. मैने कल से अपनी वासना पर काबू किया हुआ था इस'लिए इस मीठे खेल को और ना सह सका और दो ही मिनिट में झड गया.
हाय यार, ऊ ... मया ... मर गया ... कह'कर मैं पस्त हो गया. मेरा वीर्य उबल उबल कर लंड में से बाहर निकल रहा था और प्रीतम आँखें बंद कर'के बड़े चाव से उसे चख चख कर खा रहा था. . जब लंड उछलना थोड़ा कम हुआ तो वह मेरे लंड के छेद पर अपनी जीभ रगडते हुए बूँद बूँद को बड़ी अधीर'ता से निगल'ने लगा. आख़िर जब उस'ने मुझे छोडा तो मैं पूरा लस्त हो गया था.
मेरी जान, तू तो रसमलाई है, अब यह मिठायी मैं ही लूँगा रोज, इतना मीठा वीर्य तो कभी नहीं चखा मैने. कहते हुए प्रीतम उठा और बहुत प्यार से मेरा एक चुंबन लेकर पलंग से उतर'कर खड़ा हो गया. मेरी ओर प्यार से देख'कर उस'ने आँख मारी और अपना तौलिया उतार कर फेक दिया.
अब देख, तेरे लिए मैं क्या उपहार लाया हूँ! तुझे ज़रूर भाएगा देखना, बिलकुल तेरी खूबसूर'ती के लायक तोहफा है उसका लंड तौलिया की गिरफ़्त से छूट'कर उच्छल कर थिरक'ने लगा. उस मस्त भीमकाय लंड को मैं देख'ता ही रह गया.
दो ढाई इंच मोटा और सात-आठ इंच लंबा तगड़ा गोरा गोरा शिश्न उस'के पेट से सॅट'कर खड़ा था. लंड के डंडे पर फूली हुई नसें उभरी हुई थी. लंड की जड़ में घनी काली झाँटें थी. प्रीतम के पूरे चीक'ने शरीर पर बालों की कमी उन झांतों ने पूरी कर दी थी. नीचे दो बड़ी बड़ी भरी हुई गोतियाँ लटक रही थी. उस लंड को देख'कर मेरा सिर चकरा'ने लगा और मुँह में पानी भर आया. डर भी लगा और एक अजीब सी सुखद अनुभूति मेरे गुदा में होने लगी. उसका सुपाड़ा तो पाव भर के लाल लाल टमाटर जैसा मोटा था और टमाटर जितना ही रसीला लग रहा था.
देख राजा, क्या माल तैयार किया है तेरे लिए. बोल मेरी जान? कैसे लेगा इसे? तेरे किस छेद में दूँ? आज से यह बस तेरे लिए है. प्रीतम अप'ने लंड को प्यार से अपनी मूठी में भर कर सहलाता हुआ बोला. मैं उस हसीन मस्त लौडे को देख'कर पथारा सा गया था. चुपचाप मैं उठ और जा'कर प्रीतम के साम'ने घुट'ने टेक कर बैठ गया जैसे पुजारी मंदिर में भगवान के आगे बैठते हैं. ठीक भी था, आख़िर वह मेरे लिए कामदेव से कम नहीं था. समझ में नहीं आ रहा था कि उस शानदार लिंग का कैसे उपभोग करूँ. चूसूं या फिर सीधा अपनी गान्ड में ले लूँ ! मेरे चेहरे पर डर के भाव देख'कर प्रीतम मेरी परेशानी समझ गया. प्यार से मेरे बाल सहलाते हुए बोला.
क्रमशः................
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07-26-2017, 11:51 AM,
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RE: Hindi Lesbian Stories समलिंगी कहानियाँ
यार बना प्रीतम - भाग (3)
गतान्क से आगे........
यार, तू चूस ले पहले, इतना गाढा वीर्य पिलाऊँगा कि रबडी भी उस'के साम'ने फीकी पड़ जाएगी. और असल में अभी इससे अगर तुझे चोदून्गा तो ज़रूर तेरी फट जाएगी. तू नहीं झेल पाएगा. अपनी जान की नाज़ुक गान्ड मैं फाड़ना नहीं चाहता. आख़िर रोज मारनी है! एक बार झड'ने के बाद जब थोड़ा ज़ोर कम हो जाए इस मुस्टंडे का, तो फिर मारूँगा तेरी प्यार से. और वह अपना सुपाड मेरे गालों और मुँह पर बड़े लाड से रगड़'ने लगा.
मैने प्रीतम के लंड को हाथ में लिया. वह ऐसा थिरक रहा था जैसे की कोई जिंदा जानवर हो. उस'की नसें सूज कर रस्सी जैसी फूल गयी थी. शुपाडे की बुरी तरह तनी हुई लाल चमडी बिलकुल रेशम जैसी मुलायम थी. शुपाडे के बीच के छेद से बड़ी भीनी खुशबू आ रही थी और छेद पर एक मोटी जैसी बूँद भी चमक रही थी. पास से उस'की घनी झाँटें भी बहुत मादक लग रही थी, एक एक घूंघराला बाल साफ दिख रहा था.
मैं अब और ना रुक सका और जीभ निकाल कर उस मस्त चीज़ को चाट'ने लगा. पहले तो मैने उस अमृत सी बूँद को जीभ की नोक से उठ लिया और फिर पूरे लंड को अपनी जीभ से ऐसे चाट'ने लगा जैसे की आइसक्रीम की कैंडी हो. प्रीतम ने एक सुख की आह भारी और मेरे सिर को पकड़'कर अप'ने पेट पर दबाना शुरू किया.
मज़ा आ गया यार, बड मस्त चाट'ता है तू, अब मुँह में ले ले मेरे राजा, चूस ले. मैं भी उस रसीले लंड की मलाई का स्वाद लेने को उत्सुक था इस'लिए मैने अप'ने होंठ खोले और सुपाड़ा मुँह में लेने की कोशिश की. वह इतना बड़ा था कि दो तीन बार कोशिश कर'ने पर भी मुँह में नहीं समा रहा था और मेरे दाँत बार बार उस'की नाज़ुक चमडी में लग'ने से प्रीतम सिसक उठ'ता था. आख़िर प्रीतम ने बाँये हाथ में अपना लौड पकड़ा और दाहिने से मेरे गालों को दबाते हुए बोला.
लग'ता है मेरे यार ने कभी लंड नहीं चूसा, चल तुझे सिखाऊँ, पहले तू अप'ने होंठों से अप'ने दाँत ढक ले. शाब्बा ... स. अब मुँह खोल. इतना सा नहीं राजा! और खोल! समझ डेन्टिस्ट के यहाँ बैठा है. उसका हाथ मेरे गालों को कस कर पिचका कर मेरा मुँह खोल'ने लगा और साथ ही मैने भी पूरी शक्ति से अपना मुँह चौड़ा दिया. ठीक मौके पर प्रीतम ने सुपाड़ा थोड़ा दबाया और मेरे मुँह में सरका दिया. पूरा सुपाड़ा ऐसे मेरे मुँह में भर गया जैसे बड़ा लड्डू हो. उस मुलायम चिक'ने लड्डू को मैं चूस'ने लगा.
प्रीतम ने अब लंड पर से हाथ हटा लिया और मेरे बालों में उंगलियाँ प्यार से चलाता हुआ मुझे प्रोत्साहित कर'ने लगा. मैने उस'के लंड का डंडा हाथ में लिया और दबा'ने लगा. ढाई इंच मोटे उस सख़्त नसों से भरे हुए डंडे को हाथ में लेकर ऐसा लग'ता था जैसे किसी मोटी ककडी को पकड़ा हुआ हूँ. अपनी जीभ मैने उस'के सुपाडे की सतह पर घुमाई तो प्रीतम हुमक उठा और दोनों हाथों से मेरा सिर पकड़'कर अपनी ओर खींच'ता हुआ बोला.
पूरा ले ले मुँह में सुकुमार राजा, निगल ले, पूरा लेकर चूस'ने में और मज़ा आएगा. मैने अपना गला ढीला छोडा और लंड और अंदर लेने की कोशिश की. बस तीन चार इंच ही ले पाया. मेरा मुँह पूरा भर गया था और सुपाड भी गले में पहुँच कर अटक गया था. प्रीतम ने अब अधीर होकर मेरा सिर पकड और अप'ने पेट पर भींच लिया. वह अपना पूरा लंड मेरे मुँह में घुसेड'ने की कोशिश कर रहा था.
पर गले में सुपाड फँस'ने से मैं गोंगिया'ने लगा. लंड मुँह में लेकर चूस'ने में मुझे बहुत मज़ा आ रहा था पर अब ऐसा लग रहा था जैसे मेरा दम घुट जाएगा. मुझे छटपाटाता देख प्रीतम ने अपनी पकड़ ढीली कर दी.
लग'ता है पहली बार है मेरे यार का, लंड नहीं चूसा कभी. चल कोई बात नहीं, पहली बार है, अगली बार पूरा ले लेना. अब चल, पलंग पर चल. वहाँ आराम से लेट कर तुझे अपना लंड चुसवाता हूँ कह'ता हुआ प्रीतम पलंग पर बैठ गया. पीच्चे सरक'कर वह सिराहा'ने से सॅट कर आराम से लेट गया और मुझे अपनी जाँघ पर सिर रख कर लिटा लिया. उसका लंड अभी भी मैने मुँह में लिया हुआ था और चूस रहा था.
देख अब मैं तेरे मुँह में साडाका लगाता हूँ, तू चूस'ता रहा, जल्दी नहीं करना मेरे राजा, आराम से चूस, तू भी मज़ा ले, मैं भी लेता हूँ. कह'कर उस'ने मेरे मुँह के बाहर निकले लंड को अपनी मूठी में पकड और मेरे सिर को दूसरे हाथ से तान कर सहारा दिया. फिर वह अपने हाथ आगे पीछे कर'ता हुआ सटासट साडाका लगा'ने लगा.
जैसे उसका हाथ आगे पीछे होता, सुपाड़ा मेरे मुँह में और फूल'ता और सिकुडता. मैं प्रीतम की जाँघ पर सिर रखे उस'की आँखों में आँखें डाल'कर मन लगा'कर उसका लॉडा चूस'ने लगा. प्रीतम बीच बीच में झुक'कर मेरा गाल चूम लेता. उस'की आँखों में अजब कामुक'ता और प्यार की खुमारी थी. पंद्रह बीस मिनिट तक वह सडक लगाता रहा. जब भी वह झड'ने को होता तो हाथ रोक लेता. बड़ा जबरदस्त कंट्रोल था अपनी वासना पर, मंजा हुआ खिलाड़ी था.
वह तो शायद रात भर चुसवाता पर अब मैं ही बहुत अधीर हो गया था. मेरा लंड भी फिर से खड़ा होने लगा था. प्रीतम का वीर्य पीने को मैं आतुर था. आख़िर जब फिर से वह झड'ने के करीब आया तो मैने बड़ी याचना भरी नज़रों से उस'की ओर देखा. उस'ने मेरी बात मान ली.
ठीक है, चल अब झाड़'ता हूँ, तैयार रहना मेरे दोस्त, एक बूँद भी नहीं छोडना, मस्त माल है, तू खुशकिस्मत है, सब को नहीं पिलाता मैं अप'ने लौडे की मलाई. कह कर वह ज़ोर ज़ोर से हस्तमैथुन कर'ने लगा. अब उस'के दूसरे हाथ का दबाव भी मेरे सिर पर बढ गया था और लंड मेरे मुँह में और गहराई तक ठूंस'ता हुआ वह सपासाप मूठ मार रहा था.
अचानक उस'के मुँह से एक सिस'की निकली और उसका शरीर ऐंठ सा गया. सुपाड़ा अचानक मेरे मुँह में एकदम फूला जैसे गुब्बारा फूल'कर फट'ने वाला हो. फिर गरम गरम घी जैसी बूँदें मेरे मुँह में बरस'ने लगीं. शुरू में तो ऐसा लग रहा था कि जैसे किसी ने मलाई का नाल खोल दिया हो इस'लिए मैं उन्हें मुँह से ना निकल'ने देने के चक्कर में सीधा निगल'ता गया, जबकि मेरी इच्च्छा यह हो रही थी कि उन्हें जीभ पर लूं और चाखूँ.
जब लंड का उछलना कुच्छ कम हुआ तब जा'कर मैने अपनी जीभ उस'के छेद पर लगाई और बूँदों को इकठ्ठा कर'ने लगा. चम्मच भर माल जमा होने पर मैने उसे चखा. मानो अमृत था. गाढ़ा गाढा पिघले मक्खन सा, खारा और कुच्छ कसैला. मैने उस चिपचिपे द्रव्य को अपनी जीभ पर खूब घुमाया और जब वह पानी हो गया तो निगल लिया. तब तक प्रीतम का लंड एक और चम्मच माल मेरी जीभ पर उगल चुका था.
पाँच मिनिट लगे मुझे मेरे यार के इस अमूल्य उपहार को निगल'ने में. प्रीतम का लंड अब ठंडा होकर सिकुड'ने लगा था पर मैं उसे तब तक मुँह में लेकर प्यार से चूस'ता रहा जब तक वह बिलकुल नहीं मुरझा गया. आख़िर जब मैने उसे मुँह से निकाला तो प्रीतम ने मुझे खींच कर अप'ने साथ बिठ लिया और मेरा चुंबन लेते हुए बोला.
मेरे राजा, मेरी जान, तू तो लंड चूस'ने में एकदम हीरा है, मालूम है, साले नये नौसिखिए छोकरे शुरू में बहुत सा वीर्य मुँह से निकल जा'ने देते हैं पर तूने तो एक बूँद नहीं बेकार की. बस पूरा लंड मुँह में लेना तुझे सिखाना पड़ेगा, फिर तू किसी रंडी से कम नहीं होगा लंड चूस'ने में मैं उस'की इस शाबासी पर कुच्छ शरमा गया और उसे चूम'ने लगा.
अब हम आपस में लिपट'कर अप'ने हाथों से एक दूसरे के शरीर को सहला रहे थे. चुंबन जारी थे. एक दूसरे के लंड चूस'ने की प्यास बुझ'ने के बाद हम दोनों ही अब चूम चाटी के मूड में थे. पहले तो हम'ने एक दूसरे के होंठों का गहरा चुंबन लिया. प्रीतम की मून्छ मेरे ऊपरी होंठ पर गड़'कर बड़ी मीठी गुदगुदी कर रही थी.
फिर हम'ने अपना मुँह खोला और खुले मुँह वाले चुंबन लेने लगे. अब मज़ा और बढ गया. प्रीतम ने अपनी जीभ मेरे होंठों पर चलाई और फिर मेरे मुँह में डाल दी और मेरी जीभ से लड़ा'ने लगा. मैने भी जीभ निकाली और कुच्छ देर हम हँसते हुए सिर्फ़ जीभ लडाते रहे. फिर एक दूसरे की जीभ मुँह में लेकर चूस'ने का सिलसिला शुरू हुआ.
प्रीतम के मुँह के रस का स्वाद पहली बार मुझे ठीक से मिला और मुझे इतना अच्च्छा लगा कि मैं उस'की जीभ गोली जैसे चूस'ने लगा. उसे भी मेरा मुँह बहुत मीठा लगा होगा क्योंकि वह भी मेरी जीभ बार बार अप'ने होंठों में दबा कर चूस लेता. प्रीतम ने सहसा प्यार से मुझे डाँट कर कहा
साले मादरचोद, मुँह खोल और खुला रख, जब तक मैं बंद कर'ने को ना कहूँ, खुला रखना और फिर मेरे खुले मुँह में उस'ने अपनी लंबी जीभ डाली और मेरे दाँत, मसूडे, जीभ, तालू और आख़िर में मेरा गला अंदर से चाट'ने लगा. उसे मैने मन भर कर अप'ने मुँह का स्वाद लेने दिया. फिर उस'ने भी मुझे वही कर'ने दिया. अब हम दोनों के लंड फिर तन कर खड़े हो गये थे. एक दूसरे के लंडों को मूठी में पकड़'कर हम मुठिया रहे थे. बड़ा मज़ा आ रहा था.
अब क्या करें यार? मैने पूच्छा. हंस कर मेरा चुम्मा लेते हुए प्रीतम बोला.
अब तो असली काम शुरू होगा मेरी जान, गान्ड मार'ने का.
आज ही? मैने थोड़ा डर कर पूच्छा. मुझे उस'के मतवाले लंड को देख'कर मरवा'ने की इच्च्छा तो हो रही थी पर गान्ड में दर्द का भय भी था.
हां राजा, आज ही, इसीलिए तो दोपहर में सोए थे, आज रात भर जाग कर मस्ती करेंगे, कल तो छुट्टी है, देर तक सोएंगे. पहली बार गान्ड मरा रहा है तू, कल आराम मिल जाएगा! प्रीतम की प्यार भरी ज़ोर ज़बरदस्ती पर मैने भी जब यह सोचा कि अपनी गान्ड मरवा'ने के साथ साथ मैं भी प्रीतम की मोटी ताजी गान्ड मार सकूँगा तो मेरा डर कम हुआ और साथ साथ एक अजीब खुमार लंड में चढ गया.
पहले तू मरवाएगा या मैं मरवाऊ? प्रीतम ने अपना लॉडा मुठियाते हुए पूच्छा. मेरी झिझक देख'कर फिर खुद ही बोला.
चल तू ही मार ले. तेरे मस्त लंड से चुदवा'ने को मरी जा रही है मेरी गान्ड, साली बहुत कुलबुला रही है तेरा लॉडा देख'कर, बिलकुल चूत जैसी पुकपुका रही है वह ओन्धे मुँह बिस्तर पर लेट गया और अप'ने चूतड हिला कर मुझे रिझाता हुआ बोला.
देख अब मेरे चूतड तेरे हैं, जो करना है कर, तेरी गान्ड तो बहुत प्यारी है यार, बिलकुल लौन्दियो जैसी, मेरे चूतड ज़रा बड़े हैं, भारी भरकम. देख अच्छे लगते हैं तुझे या नहीं. मैं उस'के पास जा'कर बैठ गया और उस'के चूतड सहला'ने लगा. पहली बार किसी की गान्ड इतनी पास से सॉफ देख रहा था, और वह भी किसी औरत की नहीं बल्कि एक हट्टे कट्टे नौजवान की. प्रीतम के चूतड बहुत भारी भरकम थे पर पिलपिले नहीं थे. घठे हुए मास पेशियों से भरे, चिक'ने और गोरे उन नितंबों को देख मेरे लंड ने ही अपनी राय पहले जाहिर की और कस कर और तंन कर खड़ा हो गया. दोनों चूतदों के बीच गहरी लकीर थी और गान्ड का छेद भूरे रंग के एक बंद मुँह सा लग रहा था.
उस'में उंगली कर'ने का मेरा मन हुआ और मैने उंगली अप'ने मुँह से गीली कर के धीरे से उस'में डाली. मुझे लगा कि मुश्किल से जाएगी पर उस'की गान्ड में बड़ी आसानी से वह उतर गयी. उसका गुदाद्वार अंदर से बड कोमल था. मेरे उंगली करते ही प्रीतम ने हुमक कर कहा.
हाय यार मज़ा आ गया, और उंगली कर ना, इधर उधर चला. ऐसा कर जा'कर मक्खन ले आ, फ़्रिज़ में रखा है. मक्खन लगा कर उंगली कर, मस्त फिसलेगी मैं जा'कर मक्खन ले आया. ठोड उंगली पर लिया और उस'के गुदा में चुपड दिया.
दो उंगली डाल मेरे राजा, प्लीज़. ! मैने उंगली अंदर घुमामी और फिर धीरे से दूसरी भी डाल दी. फिर उन्हें अंदर बाहर कर'ने लगा. मेरी उंगलियाँ आराम से मक्खन से चिक'ने उस मुलायम छेद में घुस रही थी जैसे गान्ड नहीं, किसी युव'ती की चूत हो.
मैने झुक'कर उस'के नितंबों को चूम लिया. फिर चूम'ता हुआ और जीभ से चाट'ता हुआ उस'के छेद की ओर बढ़ा. मुँह छेद के पास ला'कर मैने उंगलियाँ निकाल ली और उन्हें सूँघा. नहाते हुए अपनी ही गान्ड में उंगली कर के मैने बहुत बार सूँघा था, आज प्रीतम की गान्ड की वह मादक गंध मुझे बड़ी मतवाली लगी. मैने उंगलियाँ मुँह में ले लीं और चूस'ने लगा. मक्खन में मिली गान्ड की सौंधी सौंधी खुशबू थी.
चुम्मा दे दे यार उसे, बिचारी तेरी जीभ के लिए तडप रही है. प्रीतम ने मज़ाक किया. वह मेरी ओर देख रहा था कि गान्ड चूस'ने से मैं कतराता हूँ या नहीं. मैं तो अब उस गान्ड की पूजा करना चाह'ता था, इस'लिए तुरंत अप'ने होंठ उस'के गुदा पर रख दिए और चूस'ने लगा.
उस सौंधे स्वाद से जो आनंद मिला वाह क्या कहूँ. प्रीतम ने भी अप'ने हाथों से अप'ने ही चूतड फैला कर अपनी गुदा कोखोला. मैं देख'कर हैरान रह गया. मुझे लग रहा था कि जैसा सबका होता है वैसा छोट सकरा भूरा छेद होगा. पर प्रीतम का छेद तो किसी चूत जैसा खुल गया. उस'के अंदर की गुलाबी कोमल झलक देख कर मैने उस'में जीभ डाल दी. मक्खन से चिकनी उस गान्ड को चूस'ने में ऐसा आनंद आया जैसे कोई मिठायी खा'कर भी नहीं आता.
शाब्बास मेरे राजा, मस्त चाट'ता है तू गान्ड, ज़रा जीभ और अंदर डाल. जीभ से चोद दे यार. जीभ डाल डाल कर मैने उस'की गान्ड को खूब चॅटा और चूसा. बीच में प्यार से उस'में नाक डाल कर सूंघ'ता पड़ा रहा. अंत में मन नहीं माना तो मुँह में उस'के नितंब का मास भर'कर उसे दाँतों से हल्के हल्के काट'ने लगा. प्रीतम बोला.
गांद खाना चाह'ता है मेरी? खिला दूँगा यार वह भी, क्या याद करेगा तू. अपनी गान्ड भरपूर चुसवा कर प्रीतम ने मुझे पास खींच कर ज़ोर ज़ोर से मेरा लंड चूस कर गीला किया और फिर बोला.
चढ़ जा यार, मार ले मेरी, अब नहीं रहा जाता. मस्त गीली है गान्ड तेरे चूस'ने से, मक्खन भी लगा है, आराम से घुस जाएगा तेरा लौडा मैं प्रीतम के कूल्हों के दोनों ओर घुट'ने जमा कर बैठ और अपना सुपाड़ा उस'के गुदा में दबा दिया. प्रीतम ने अप'ने चूतड पकड़ कर खींच रखे थे इस'लिए बड़े आराम से उस'के खुले छेद में सपप से मेरा शिश्न अंदर हो गया. उस मुलायम छेद के सुखद स्पर्श से मैं और उत्तेजित हो उठ और एक धक्के में अपना लंड जड़ तक प्रीतम की गान्ड में उतार दिया.
क्रमशः................
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